जलवायु आपातकाल

मानव इतिहास का दूसरा सबसे गर्म वर्ष रिकॉर्ड किया गया 2019, 1850 से 1900 के औसत की तुलना में 1.1 डिग्री सेल्सियस अधिक रिकॉर्ड किया गया तापमान


 

दिन प्रतिदिन हमारी धरती और गर्म होती जा रही है। क्या यह बढ़ता तापमान अपने साथ नए खतरों को भी लेकर आएगा। दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका भले ही इस की सच्चाई को झुठलाता रहे, पर सच यही है जो विश्व मौसम विज्ञान संगठन द्वारा जारी आंकड़े दिखाते हैं कि धरती न केवल गर्म हो रही है, बल्कि उसका असर भी सारी दुनिया में साफ दिखाई देने लगा है। जो कहीं बाढ़, कहीं सूखा, कहीं तूफ़ान और कहीं अन्य मौसमी घटनाओं के रूप में सामने आ रहा है।

आइए विस्तार से समझते हैं, कितनी गर्म हो रही है धरती, और दुनिया के देशों पर क्या पड़ रहा है इसका असर



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स्रोत: स्रोत: यू.एस. नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) और नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा)

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्लूएमओ) द्वारा किये विश्लेषण के अनुसार 2016 के बाद वर्ष 2019 मानव इतिहास का दूसरा सबसे गर्म वर्ष रिकॉर्ड किया गया। डब्ल्यूएमओ ने इस बात की पुष्टि कई अंतरराष्ट्रीय डेटासेटों के विश्लेषण के बाद की है। आंकड़े दिखाते हैं कि 2019 के वार्षिक वैश्विक तापमान में 1850 से 1900 के औसत की तुलना में 1.1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो चुकी है। जबकि 2016 का नाम अभी भी रिकॉर्ड में सबसे गर्म साल के रूप में अंकित है। जिसके प्रमुख कारण 2016 में एल नीनो प्रबल घटना का होना था। इसके साथ ही 2010 से 2019 के बीच के दस साल का औसत तापमान उसे इतिहास का अब तक का सबसे गर्म दशक बनाता हैं। वहीं वैज्ञानिकों के अनुसार वैश्विक रूप से जिस तरह ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन हो रहा है, उसके चलते इस प्रवृत्ति आगे भी 2020 में जारी रहने की सम्भावना है।





भारत में रिकॉर्ड किया गया इतिहास का सबसे गर्म दशक
2001 के बाद रिकॉर्ड किये गए 20 में से 18 सबसे गर्म वर्ष

इस वर्ष ऑस्ट्रेलिया में जहां जनवरी का औसत तापमान पहली बार 30 डिग्री सेल्सियस के पार चला गया। जैसा पहले कभी देखने को नहीं मिला। यही वजह है कि ऑस्ट्रेलिया के लिए भी 2019 सबसे गर्म साल रहा, जब तापमान ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए । जिसकी निशानी के रूप में ऑस्ट्रेलिया के जंगल में लगी आग आज भी धधक रही है। वहीं न्यूज़ीलैंड में मई का तापमान पिछले 111 साल में सबसे अधिक रिकॉर्ड किया गया। हांगकांग में भी पिछले 135 साल में सबसे गर्म रहा सर्दियों का मौसम। वहीं बहरीन में पिछले 117 साल में पांचवी बार सबसे अधिक बारिश रिकॉर्ड की गयी। भारत के मौसम विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 2010-2019 सदी का सबसे गर्म दशक था। पिछले 31 वर्षों में दूसरी बार सबसे अधिक समय तक इतना उच्च तापमान रिकॉर्ड किया गया था।

क्या आप जानते हैं? 1998 को छोड़कर, दुनिया भर के 19 सबसे गर्म वर्षों में से अठारह 2001 के बाद ही रिकॉर्ड किये गए हैं। वहीं 2016 इतिहास में अब तक का सबसे गर्म वर्ष था

यूरोप में भी स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, जहां कई जगह तापमान ने पिछले 40 से 110 साल तक का रिकॉर्ड तोड़ दिया था। यूनाइटेड किंगडम में फरवरी का औसत तापमान 110 वर्षों में दूसरी बार सबसे अधिक रिकॉर्ड किया गया। वहीं 28 फरवरी को तापमान ने ऑस्ट्रिया में एक नया कीर्तिमान स्थापित कर दिया था। अमेरिका में जहां इतिहास का सबसे ठंडा जनवरी महीना रिकॉर्ड किया गया। वहीं जून में आयी हीटवेव ने दक्षिण-पूर्व में एक सदी पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया था। जबकि अलास्का में पिछले 94 वर्षों में सबसे नम मार्च का महीना रिकॉर्ड किया गया।

2016 के बाद दूसरा सबसे गर्म साल रहा 2019
(1951-1980 के औसत के सापेक्ष तापमान) अधिक जानकारी के लिए ग्राफ पर अंकित लाइन पर जाएं

स्रोत: स्रोत: यू.एस. नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए)
और नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा)



आज भी देर नहीं हुई है, बंद कर दीजिए प्रकृति से खिलवाड़

तापमान में हो रही यह बढ़ोतरी हालांकि अब आम बात बनती जा रही है। और शायद आम लोगों को इसका असर पता नहीं चल रहा या फिर वो उसे अनदेखा कर रहे हैं। लेकिन जिस तरह से और जिस रफ्तार से तापमान में यह बढ़ोतरी हो रही है, उसके चलते बाढ़, सूखा, तूफान, हीट वेव, शीत लहर जैसी घटनाएं बहुत आम बात हो जाएंगी और यह हो भी रहा है। जिसका सबसे ज्यादा असर आम जन पर ही पड़ेगा। कुछ पर सीधा और कुछ पर उसके अन्य रूपों में। कभी दशकों में पड़ने वाला विकराल सूखा आज हर साल पड़ रहा है। बाढ़ और तूफानों का आना भी आम बात बनता जा रहा है। हम इन आपदाओं का बेहतर प्रबंधन कर सकते हैं। पर इसके असर को टाल नहीं सकते। डर है कि कहीं इंसानी महत्वाकांक्षा उसके ही विनाश का कारण तो नहीं बन जाएगी।

हम कितने भी शक्तिशाली हो जाएं पर प्रकृति से नहीं जीत सकते। हमें उसके साथ सामंजस्य बना कर ही चलना होगा। और यही मानव विकास का मूल है। इतिहास गवाह है, जब भी इंसान ने प्रकृति से आगे जाने की होड़ लगायी है, उसमें हार और नुक्सान इंसान को ही उठाना पड़ा है। अभी भी समय है चेत जाइये, नहीं तो न जाने कब आने वाली बाढ़, सूखा, और अन्य आपदाओं का कहर आप पर टूटेगा, इसका पता भी नहीं चलेगा और तब संभलने का मौका भी नहीं मिलेगा।


आंकड़ों का स्रोत:

✸   यू.एस. नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए)
✸   नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा)
✸   सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट
✸   काउंटिंग दा कॉस्ट ऑफ कटस्ट्रोफे, डाउन टू अर्थ