औद्योगिक त्रासदी के 120 साल

दुनिया भर में पिछले 120 सालों में 1519 ऐसे हादसे हो चुके हैं| जिनका असर काफी व्यापक था| इन हादसों में अब तक करीब 6.4 लाख लोग अपनी जान गंवा चुके हैं, जबकि 44 लाख से ज्यादा प्रभावित हो चुके हैं|


 

हाल ही में विशाखापट्टनम गैस त्रासदी ने एक बार फिर से भोपाल की यादें ताजा कर दी| जब प्लांट खोलने की हड़बड़ी में मेंटेनेंस के नियमों की अनदेखी कर दी गई, जिसकी कीमत 11 लोगों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी थी| यह कोई पहला मामला नहीं है जब उद्योगों की गलती का खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ा है| इससे पहले 1984 में भोपाल गैस त्रासदी में 5,295 से ज्यादा लोगों की जानें गई थी| वहीं लाखों लोगों पर उसका असर पड़ा था| आज भी भोपाल में जन्मे बच्चों के शरीर पर इस त्रासदी के निशान देखे जा सकते हैं|





सिर्फ भारत ही नहीं दुनिया के कई विकसित और विकाशील देश भी इन त्रासदियों को झेल चुके हैं| अंतरराष्ट्रीय आपदा डेटाबेस (इएम-डेट) ने पिछले 120 सालों में हुई औद्योगिक त्रासदियों का रिकॉर्ड रखा है| जिसके विश्लेषण से पता चला है कि पिछले 120 सालों (1900 - 2020) में करीब 1519 ऐसे हादसे हो चुके हैं| जिनका असर काफी व्यापक था| इन हादसों में अब तक करीब 6.4 लाख लोग अपनी जान गंवा चुके हैं| जबकि 44 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हो चुके हैं| वहीं इनसे करीब 3,27,701.35 करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है| नुकसान का यह जो मूल्य आंका गया है, यह सभी सीधे तौर पर हुआ नुकसान है| जबकि प्रभावितों की संख्या और नुकसान का आंकड़ा तो वास्तविकता में इससे कई गुना ज्यादा होगा|

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स्रोत: अंतरराष्ट्रीय आपदा डेटाबेस (इएम-डेट)


भारत में भी औद्योगिक आपदाओं ने लील ली है 10 हजार से ज्यादा लोगों की जान

भारत में 1901 से लेकर अब तक 116 औद्योगिक दुर्घटनाओं का रिकॉर्ड उपलब्ध है| यह दुर्घटनाएं ऐसी है जिनका व्यापक असर पड़ा था| इनमें अब तक करीब 10,316 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं| 9 लाख से ज्यादा प्रभावित हैं| साथ ही लगभग 5,280 करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है| हालांकि नुकसान का यह आंकड़ा सीधे तौर पर हुए नुकसान को ही बयां करता है| पर प्रभावितों कि संख्या और जो नुकसान हुआ है वो इससे कई गुना ज्यादा होगा| जिसका अनुमान लगा पाना मुश्किल है| देश में अब तक की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटना 1984 में हुई भोपाल गैस त्रासदी थी| जिसमें 5,295 या उससे भी ज्यादा लोगों की जानें गई थी| वहीं लाखों लोगों पर इसका असर पड़ा था|

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स्रोत: अंतरराष्ट्रीय आपदा डेटाबेस (इएम-डेट)

अनुमान है कि करीब 6 लाख लोग इससे प्रभावित हुए थे| इसके पहले 1944 में बॉम्बे डॉक यार्ड में जो विस्फोट हुआ था| उसमें करीब 800 लोगों की जान गई थी| इसके बाद 1975 में धनबाद की एक खान में विस्फोट हुआ था जिसमें करीब 372 लोग मारे गए थे| अभी कुछ दिनों पहले ही 7 मई को एलजी पोलिमर्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के प्लांट में स्टीरिन गैस का रिसाव हुआ था, जिसके चलते विशाखापट्टनम में 11 लोगों की जान गई थी| वहीं 5,000 से ज्यादा को हॉस्पिटल में भर्ती करना पड़ा था|




जरुरी है सख्त कार्रवाई

हालांकि देश और दुनिया में जो यह आंकड़ें रिकॉर्ड किये गए हैं| वो पूरे नहीं हैं| भारत सहित दुनिया के कई हिस्सों में होने वाली अनगिनत ऐसी दुर्घटनाओं के बारे में अब तक कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है| यही वजह है कि इनका पूरा विवरण उपलब्ध नहीं है| पर जो भी आंकड़ें उपलब्ध हैं उनसे एक बात तो साफ़ हो जाती है| कि कहीं न कहीं कंपनियां अपने फायदे के लिए इंसानों कि जानों से खेल रही हैं| और नियमों को अनदेखा कर रही हैं| जिसमें कहीं-कहीं पर सरकार भी उनका साथ दे रही है| यह हमारी लचर कानून व्यवस्था का ही नतीजा है कि 36 साल बाद भी भोपाल त्रासदी से पीड़ित लोगों को इन्साफ नहीं मिल पाया है| जिसका फायदा यह कंपनियां उठा रही हैं| क्या यह सही वक्त नहीं है कि इनसे जुड़े नियमों में बदलाव किया जाये और उन्हें और सख्त किया जाये| जिससे फिर कोई कंपनी किसी की जान से ने खेल सके| जवाबदेही तय करनी होगी| इन नियमों का पालन क्यों नहीं किया जाता और क्या यह सरकार की जिम्मेदारी नहीं है कि यदि कोई कंपनी जान बूझकर नियमों को तोड़ती है तो उसपर सख्त कार्रवाई की जाए| ताकि भविष्य में ऐसे हादसों को टाला जा सके|


आंकड़ों का स्रोत:

✸   अंतरराष्ट्रीय आपदा डेटाबेस (इएम-डेट)
✸   द लिविंग डेड: भोपाल गैस डिजास्टर, डाउन टू अर्थ
✸   भोपाल: वे अहेड, सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट
✸   30 इयर्स ऑफ भोपाल गैस ट्रेजेडी, डाउन टू अर्थ