आखिर क्यों पक्षियों की कब्रगाह बनती जा
रही है सांभर झील

राजस्थान के सांभर जिले में प्रवासी पक्षियों की मौत का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। सूत्रों से मिली जानकारी से पता चला है कि यह आंकड़ा 17 हजार के पार पहुंच चुका है | शनिवार, 16 नवंबर को भी 2642 पक्षी मृत पाए गए, अब दूसरे इलाकों में भी पक्षियों के मौत की खबरें आ रही हैं।

रिपोर्टिंग माधव शर्मा, फोटोग्राफर विकास चौधरी





10 नवंबर, 2019 को पहली बार जयपुर में स्थित सांभर झील पर पर्यटकों को मृत मिले काले पंख वाले हजारों स्टिल्ट पक्षी

डाउन-टू-अर्थ की टीम ने 12 नवंबर को झील के झपोक डैम और सांभर कस्बे से महज एक किमी दूर दादूदयाल महाराज की छतरी के पास भी हजारों की संख्या में मृत पक्षी देखे हैं।झपोक डैम के पास किनारे से करीब एक किमी अंदर तक मृत पक्षी दिखाई दे रहे हैं। दादूदयाल महाराज की छतरी के पास भी कई पक्षी मरे हुए पड़े हैं। यह एरिया नमक उत्पादन क्षेत्र में आता है, लेकिन यहां मानसून का पानी जमा होता है इसीलिए प्रवासियों पक्षियों का एक ठिकाना यहां भी है।

हैरानी की बात यह है कि झपोक डैम के पास जहां पक्षी मरे हुए पड़े हैं, वहां पर्यटन विभाग ने कई बर्ड वॉच सेंटर बनाए हुए हैं। इन सेंटर्स से विभाग यहां आने वाले पर्यटकों को प्रवासी पक्षियों के दर्शन करवाता है। फिर भी किसी को पक्षियों के मरने की सूचना नहीं पहुंची।


जांच रिपोर्ट में देरी, प्रशासन ने दफनाने को ही जिम्मेदारी समझा

प्रशासन ने 10 नवंबर को ही 7 प्रजातियों के पक्षी, पानी और अन्य जरूरी सैंपल भोपाल स्थित आईसीएआर-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाई सिक्योरिटी एनिमल डिजीज केंद्र भेजे हैं। अधिकारियों के मुताबिक रिपोर्ट आने में करीब एक हफ्ता लग सकता है। रिपोर्ट नहीं आने तक पक्षियों को मौत से बचाने और उसके कारणों का पता नहीं चल पा रहा है। वन विभाग, पशु पालन विभाग सांभर साल्ट लिमिटेड और नगर पालिका के करीब 25 लोग मृत पक्षियों को दफनाने में लगे हैं। अधिकारी कह रहे हैं कि 20 नवंबर को बरेली से आने वाली रिपोर्ट से ही मौत के कारणों का पता चल सकेगा। तब तक मृत पक्षियों को झील क्षेत्र से हटाने का काम तेजी से किया जा रहा है।

सांभर, भारत की सबसे बड़ी अंतर्देशीय खारे पानी की झील है, जो की प्रमुख पर्यटक स्थल भी है। यहां बड़ी संख्या में पक्षी मृत पाए गए थे

पक्षियों की मौत का कारण अभी भी रहस्य बना हुआ है। उनके सैम्पल्स को भोपाल और लुधियाना की प्रयोगशालाओं में भेजा गया है। परीक्षणों के परिणामों की प्रतीक्षा है।

फोटोग्राफर घटनास्थल पर पहुंचने वाले पहले पत्रकारों में से एक थे। उनका कहना है कि इस इलाके में 2,300 से अधिक मृत पक्षियों को सामूहिक कब्रों में दफनाया गया है।

वन विभाग और पशुपालन विभाग का घायल पक्षियों को रेस्क्यू करने की कोई योजना नहीं दिख रही है। अभी भी झील के बीच गहरे कीचड़ में सैंकड़ों पक्षी फंसे हुए हैं, वही पक्षी रेस्क्यू हो पा रहे हैं जो झील के किनारे किसी तरह जिंदा पहुंच गए हैं।




मीडिया में छपी रिपोर्टों में अनुमान लगाया है कि क्षेत्र में विषाक्तता के कारण पक्षियों की मौत हो सकती है। किसी तरह की एवियन बीमारी का भी संदेह किया जा रहा है। लेकिन लैब टेस्ट की रिपोर्ट सामने आने के बाद ही कोई स्पष्ट तस्वीर सामने आएगी।

स्थानीय पक्षियों और जानवरों में भी बढ़ा इंफेक्शन का खतरा

मृत पक्षियों की तादात बढ़ने और शहर के नजदीक शव मिलने से यहां के स्थानीय पक्षियों और जानवरों में भी इस अज्ञात बीमारी के फैलने की आशंका बढ़ रही है। क्योंकि रात में कुत्ते और लोमड़ी इन पक्षियों को खाने के लिए झील तक पहुंच रहे हैं। कई पक्षी झील के बाहरी हिस्से में भी मिले हैं जिन्हें किसी जानवर द्वारा खाया गया है। राजेन्द्र सिंह जाखड़ आगे कहते हैं, ‘इंफेक्शन ना फैले इसीलिए पक्षियों को चूना और नमक के साथ जल्द से जल्द डिस्पोज किया जा रहा है। मौत के कारणों का खुलासा, रिपोर्ट के आने पर ही हो पाएगा।‘


ये है झील की पूरी स्थिति

राजस्थान की राजधानी जयपुर से करीब 95 किमी दूर सांभर झील देश की सबसे बड़ी खारे पानी की झील है। झील जयपुर, नागौर और अजमेर जिलों में लगभग 233 किमी में फैली हुई है। इसमें से करीब 156 किमी एरिया में प्राकृतिक झील है और लगभग 78 किमी एरिया में नमक का उत्पादन होता है।इस तरह सांभर में झील मुख्यरूप से दो हिस्सों में बंटी हुई है।आमतौर पर झील में दो-तीन फीट गहराई तक पानी रहता है, लेकिन मानसून के दिनों में यह गहराई दो मीटर तक हो जाती है। सांभर सॉल्ट लिमिटेड के मुताबिक झील में फिलहाल 2 फीट गहराई तक पानी है।

रेंजर राजेन्द्र सिंह बताते हैं कि सांभर झील में हर साल 2-3लाख प्रवासी पक्षी आते हैं।इनमें 50 हजार फ्लेमिंगो, 1 लाख से ज्यादा बगुले और करीब इतनी ही संख्या में अलग-अलग प्रजातियों के पक्षी आते हैं। इससे पहले इस तरह की घटना पहले कभी नहीं हुई। इतनी तादात में पक्षियों के मरने की यह पहली घटना है।



कम से कम 20 से 25 पक्षी भी जीवित पाए गए हैं, लेकिन उनकी स्थिति गंभीर हैं। वन विभाग के अधिकारियों द्वारा उनका इलाज किया जा रहा है।




गुजरात के कच्छ इलाके में 60 प्रवासी पक्षियों की मौत हो गई। फोटो: माधव शर्मा

कच्छ में भी सामने आया है प्रवासी पक्षियों की मौत का मामला

राजस्थान की सांभर झील में पक्षियों की मौत का सिलसिला जारी है, वहीं अब गुजरात के कच्छ के पास बानियारी गांव में 60 पक्षियों की मौत की खबर है। ये सभी प्रवासी पक्षी डेमोइसेल क्रेन हैं। कच्छ प्रशासन का दावा है कि भारी बारिश और ओलावृष्टि की वजह से इन पक्षियों की मौत हुई है।

वन विभाग वहां अन्य पक्षियों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। दावा किया गया है कि 15 क्रेन को बचा लिया गया है। उधर, राजस्थान के सांभर झील में शुक्रवार को 1830 प्रवासी पक्षी मृत मिले और 145 से ज्यादा पक्षियों को बचाया गया। प्रशासन का दावा है कि अब तक झील से 6700 पक्षी मृत मिले हैं। शुक्रवार को राज्य आपदा प्रबन्धन के 17 लोग और सहायता एवं नागरिक सुरक्षा विभाग की टीम के 60 लोगों ने पूरी झील से मृत पक्षियों की तलाश की। साथ ही इलाज के लिए 36 डॉक्टरों की टीम भी यहां मौजूद रही। टीम ने तीन बोट झपोक डैम सहित पूरी झील एरिया से पक्षी बरामद किए।


अनुमान है कि यहां करीब 25 प्रजातियों के प्रवासी पक्षियों की मौत हुई है। इनमें सबसे ज्यादा करीब 40 फीसदी नॉरहन शॉवलर और 20 फीसदी नॉरहन पिटेंल हैं। इसके अलावा कॉमन हील, गोडवेल, ब्लैक ब्राउन हैडेड गल, पलास गल, गल बीनर्टन, पायड एवोसेड, रफ, कॉमन रेड सैक, मार्स सेड पाइपर, बुडसेड पाइपर,कॉमन सेड पाइपर, लेसर सेड प्लाओर, कॉमन कुट, ब्लैक विड स्टील, रूडी सेल डक, लेसर विसलिग डक, टमनिक स्टीट, क्रीक, सिल्वर बील, मलार्ड और नोबिल डक शामिल है। झील का 20-25 किमी का क्षेत्र इससे प्रभावित है। हालांकि स्थानीय लोगों के मुताबिक पूरी झील ही इसकी चपेट में है।

प्रवासी पक्षियों की मौत के कारण थोड़े साफ होते दिखाई दे रहे हैं। भोपाल स्थित आईसीएआर-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाई सिक्योरिटी एनिमल डिजीज केंद्र की रिपोर्ट में एवियन फ्लू की संभावना को नकार दिया है। हालांकि राजस्थान पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, बीकानेर के विशेषज्ञ इन मौतों को एवियन बोट्यूलिज्म बीमारी से जोड़कर देख रहे हैं।