जम्मू एवं कश्मीर में आतंकवाद की समस्या के समाधान के लिए फौजी ताकत का इस्तेमाल समझदारी भरा कदम नहीं है
कश्मीर में आतंकवादी से जुड़ी घटनाओं को लेकर बवाल चरम पर पहुंच गया है। भारतीय जनता पार्टी के समर्थन वापस लेने के बाद राज्य में गठबंधन सरकार गिर चुकी है। सरकार गिरने से करीब हफ्ता भर पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने माओवाद प्रभावित क्षेत्र बस्तर को चर्चा का विषय बना दिया। उन्होंने जगदलपुर में हवाई अड्डे का उद्घाटन करते वक्त कहा कि इससे क्षेत्र में गतिशीलता बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि इससे क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियां में वृद्धि और क्षेत्र में लोग माओवादियों के खिलाफ होंगे।
कश्मीर और बस्तर दोनों संघर्ष क्षेत्र अत्यधिक पिछड़ेपन का सामना कर रहे हैं। बस्तर देश के सबसे गरीब इलाकों में शामिल है जबकि जम्मू एवं कश्मीर में 20 प्रतिशत से अधिक आबादी गरीबी रेखा से नीचे जिंदगी गुजार रही है। यह भी व्यापक रूप से स्वीकार किया गया है कि गरीबी के कारण बेरोजगार युवक बंदूक उठा रहे हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो आतंकवादी संगठनों में शामिल हो रहे हैं।
इस बहस के दो पहलू हैं- क्या गरीबी युवाओं को चरमपंथ की ओर धकेलने में अहम भूमिका निभाती है और क्या चरमपंथ गरीबी को बढ़ावा देता है? दूसरा, इस बात पर सहमति बन रही है कि गरीबी उन्मूलन संघर्ष को टालने में अहम भूमिका निभा रहा है। पिछले साल 17 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस का थीम था- “समग्र समाज और शांतिपूर्ण पथ की ओर अग्रसर”। इससे संघर्ष से निपटने में गरीबी का महत्व पता चलता है, बढ़ावा देने के रूप में भी और नतीजे के रूप में भी।
इससे चंद रोज पहले यूएनडीपी ने महत्वपूर्ण सर्वेक्षण जारी किया था। सर्वेक्षण में उन कारणों का जिक्र था जिनसे अफ्रीका के युवा हिंसक आतंकवाद की ओर बढ़ रहे थे। सर्वेक्षण के सैंपल में 500 लोगों का शामिल किया गया था जो चरमपंथी संगठनों जैसे अल शबाब, बोको हरम या अनसर डाइन से प्रेरित हुए।
उनसे इन संगठनों में शामिल होने के कारणों को पूछा गया। कुछ लोगों ने धार्मिक कारणों को इसकी वजह बताया जबकि बहुसंख्यक ने बेरोजगारी, स्वास्थ्य सेवाओं में कमी, शिक्षा, सुरक्षा और आवास से इसे जोड़ा। बहुत से अध्ययन बताते हैं कि बढ़ती असमानता आर्थिक विकास और सामाजिक लगाव में बाधक है। इससे सामाजिक और राजनीतिक कटुता बढ़ती है और संघर्ष को बढ़ावा मिलता है।
दूसरी तरफ संघर्ष गरीबी को बढ़ाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं और अपने दुष्चक्र में लोगों को फंसा रहे हैं। इस साल जून में जब संयुक्त राष्ट्र ने सतत विकास के लक्ष्यों का जायजा लिया तो उसने पाया कि दशक में पहली बार ऐसा हुआ है कि भुखमरी में इजाफा हुआ है। ऐसा जलवायु परिवर्तन के विनाश और संघर्ष के चलते हुआ। संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के सांख्यकीय डिवीजन के सहायक निदेशक फ्रांसेका पेरुक्की ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण अतिशय मौसम से हुए विनाश और संघर्ष के चलते तरक्की में रुकावट आई है।
अमेरिका ने 9/11 के बाद इस पहलू की तरफ ध्यान दिया। तब यह पता चला कि गरीबी आतंकवाद को बढ़ावा देती है और लोग आतंकवादी संगठनों से जुड़ते हैं। तमाम अध्ययनों में एक चीज सामान्य है कि असमानता और आर्थिक स्थितियां आतंकवाद के लिए ईंधन का काम करती हैं। व्यक्ति के अंदर पनप रहा असंतोष इस दिशा में उन्हें मोड़ देता है।
पिछले साल जम्मू एवं कश्मीर ऐसा पहला राज्य बना जिसने यूनिवर्सल बेसिक इनकम योजना की घोषणा की ताकि गरीबी का मुकाबला किया जा सके और युवाओं को आतंकवादी संगठनों से दूर रखा जा सके। यह योजना अब तक शुरू नहीं हो पाई है। अब वक्त आ गया है कि नीति निर्माता और रणनीतिकार गरीबी और संघर्ष के बीच संबंध पर ध्यान दें। इस समस्या के समाधान के लिए फौजी ताकत का इस्तेमाल समझदारी भरा कदम नहीं है।
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