Wildlife & Biodiversity

जीन ने बनाया दंतविहीन

वैज्ञानिकों और वन विभाग के अनुमान के मुताबिक, उत्तर-पूर्वी भारत में पाए जाने वाले हाथियों में 60 प्रतिशत दंतहीन हैं। वहीं दक्षिण भारत में इनकी संख्या सिर्फ 10 फीसदी है

 
By Kumar Sambhav Shrivastava
Published: Friday 11 August 2017

असम के काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान की चमकती दोपहरी में एक लापरवाह दंतहीन नर हाथी, जिसे मखणा भी कहते हैं, सोहोला बील के उथले पानी में अठखेलियां कर रहा है। उद्यान के अंदर इस मौसमी झील का निर्माण ब्रह्मपुत्र नदी में आने वाली बाढ़ के पानी से होता है। यहां से कुछ किलोमीटर दूर 25 हाथियों का एक झुंड, जिनके शरीर पूरी तरह कीचड़ से सने हैं, धीरे-धीरे बील की तरफ बढ़ रहा है। लंबे दांतों वाला एक हाथी, जिसे टस्कर भी कहते हैं, अन्य हाथियों से करीब एक फुट ऊंचा है और झुंड के पीछे-पीछे चल रहा है। जब झुंड के अन्य सदस्य चारागाह में चारा खाने के लिए बिखर गए, वहीं टस्कर, मादा हाथियों के साथ मेलजोल बढ़ाने की कोशिश करने लगा।

बील के आसपास के झुंड में मखणा काफी सावधान होते हैं। वह मादा हाथियों को पानी में उतरते हुए देखते हैं। कुछ मिनटों के बाद ये झुंड की तरफ जाते हैं और एकाएक रुक जाते हैं। झुंड की कुछ मादा हाथी मखणा की तरफ देखती हैं और उनमें से एक मखणा की तरफ कुछ कदम चलती हैं। मखणा वहीं खड़ा रहता है। टस्कर झुंड के बीचोंबीच खड़ा है और मखणा की तरफ घूर रहा है। कुछ देर उसी स्थिति में खड़े रहने के बाद मखणा पीछे मुड़कर भाग जाता है।

यहां एक अच्छी संभावना यह हो सकती है कि जो मादा हाथी मखणा की तरफ बढ़ रही थी, वह उसके साथ संभोग की इच्छुक हो। लेकिन उसी समय, टस्कर की आंख और कान के बीच की अस्थायी सूजन और उसकी ग्रंथि से हो रहे स्राव के कारण उसके गालों पर उभर आई तरल पदार्थ की लकीर इशारा कर रहे थे कि उसकी मस्त अवस्था शुरु हो चुकी है। मस्त होना एक ऐसी अस्थायी लेकिन तीव्र यौन अवस्था होती है, जिसमें टेस्टोस्टेराॅन (नर यौन हार्मोन) का स्राव चरम पर होता है। इस दौरान टस्कर अपनी मादा हाथियों को अन्य नर हाथियों से बचाकर रखते हैं। वह मखणा उस टस्कर से मुकाबला करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया और उसने बिना लड़े ही मैदान छोड़ दिया।

हालांकि, यौन चयन के डार्विन के सिद्धांत को मानने वाले लोगों को यह घटना इस बात के लिए आश्वस्त कर सकती है कि नर हाथियों में लंबे दांतों की उत्पत्ति मादा हाथियों पर जीत हासिल करने के लिए एक हथियार के रूप में और एक आभूषण के तौर पर उन्हें आकर्षित करने के लिए हुई है। मखणा के ऊपर टस्कर की जीत इस निष्कर्ष को और भी पुख्ता करती है। लेकिन दुर्भाग्यवश ऐसा है नहीं।

सोहोला बील का टस्कर अपने दांतों की वजह से जीत नहीं पाता। मखणा सिर्फ इस बात से डर गया कि टस्कर अपनी मस्त अवस्था के शुरुआती चरण में है और उसका शरीर काफी बड़ा है। शोध छात्र करपागम चेलिया और बैंगलोर स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान के पारिस्थितिकी विज्ञान केंद्र के रमन सुकुमार के एक अध्ययन के मुताबिक हाथियों की मस्त अवस्था और बड़ा शरीर प्रजनन में लाभ हासिल करने में उसकी बादशाहत को स्थापित करता है। लंबे दांतों की भूमिका इसमें नगण्य होती है। मस्त अवस्था में नर हाथी हमेशा प्रजनन के लिए तैयार मादा हाथियों की तलाश में रहते हैं। नर हाथी अपनी मस्त अवस्था को प्रदर्शित करने के लिए अपनी विशेष ग्रंथि से गंधयुक्त तरल पदार्थ का स्राव करते हैं और अपने मूत्र की फुहार छोड़ते हैं। 1980 के दशक में वैज्ञानिकों जाॅयस पूले और सिंथिया माॅस ने अफ्रीकी हाथियों में देखा कि एक मस्त नर हाथी एक साधारण लेकिन उससे आकार में बड़े नर हाथी को आसानी से हरा देता है। हालांकि नर बनाम नर प्रतिस्पर्धा में दांतों के महत्व का पता अभी तक नहीं लगाया गया है।

काजीरंगा के जंगली हाथियों के बीच नर बनाम नर प्रतिस्पर्धा को जानने के लिए चेलिया और सुकुमार ने व्यवस्थित और स्वभावगत प्रेक्षण किया, जो कि मखणा और टस्करों की बराबर संख्या होने के कारण संभवतः अनोखा है। उन्होंने पाया कि ज्यादातर मामलों में मस्त नर, गैर मस्त नर से मुकाबले में दांतों की किसी भूमिका के बिना जीत जाता है। यदि दोनों नर एक जैसी मस्त अवस्था से गुजर रहे हैं, तो उनमें से जिसका शरीर बड़ा होगा, वह जीत जाएगा। इस मामले में भी दांतों की कोई भूमिका नहीं होती। चेलिया ने बताया, “चूंकि ज्यादातर जोड़े असमान होते हैं, जैसे कि यदि एक नर मस्त अवस्था में है, तो दूसरा उस अवस्था में नहीं होगा या एक नर, शरीर के आकार में दूसरे से काफी बड़ा होगा। दांतों का लाभ तभी मिलता है, जब दोनों समान आकार के मस्त नर आपस में लड़ रहे हों। इस तरह की लड़ाई बहुत ही दुर्लभ होती है। ऐसे मामले 12 फीसदी ही देखने को मिलते हैं।”
चेलिया बताते हैं, “सोहोला बील के टस्कर की जीत का कारण उसका मस्त अवस्था में होना और मखणा से आकार में बड़ा होना था। इसलिए कोई यह निष्कर्ष नहीं निकाल सकता कि टस्कर ने दांतों की वजह से यह लड़ाई जीती। यदि मखणा भी मस्त अवस्था में होता और आकार में भी वह टस्कर से बड़ा होता, तो वह जीत भी सकता था।”

“ऐसे परिणाम उसके लिए उलझाने वाले थे। मैंने टस्कर को एक मस्त मखणा से दूर भागते हुए देखा है। मैं कल्पना करती हूं कि कैसे एक मखणा ने सिर्फ गंधयुक्त द्रव छोडकर टस्कर को घायल कर दिया।”, उन्होंने हंसते हुए कहा। चेलिया ने आगे बताया, “लेकिन उसके बाद हमने देखा कि मखणा ने अपनी सूंढ़ उठाकर विपक्षी के दांतों को पकड़ लिया और उसे अपने शरीर के भार से नीचे की तरफ दबाने लगा। इसके इतर, एशियाई हाथी के दांतों का तनाव बल कई प्रकार के बांसों से भी कम होता है। हाथी आसानी से बांसों को अपने शरीर के बल से झुका सकते हैं और यह भी संभव है कि वे अपने विपक्षी के दांतों के साथ भी ऐसा कर सकें।” उन्होंने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बताया कि, “मादा हाथियों को आकर्षित करने के लिए भी आभूषण के तौर पर दांतों का कोई लाभ नहीं मिलता है।” यह अध्ययन एनिमल बिहेवियर नामक जर्नल में सितम्बर 2013 को प्रकाशित हुआ है।
वैज्ञानिकों और वन विभाग के अनुमान के मुताबिक उत्तर-पूर्वी भारत में पाए जाने वाले हाथियों में 60 प्रतिशत नर दंतविहीन हैं।

इसके विपरीत, दक्षिण भारत में पाए जाने वाले हाथियों में से 10 प्रतिशत नर ही दंतविहीन हैं। पूर्वोत्तर में मखणा की संख्या ज्यादा होने का कारण वैज्ञानिक वन्य जीवों में दांतों के जीन के गायब होने को मानते हैं। पिछले 1,000 सालों में पूर्वोत्तर के जंगलों से टस्कर चुनिंदा तौर पर हटा दिए गए हैं। सुकुमार बताते हैं-”इस बात के ऐतिहासिक प्रमाण मिलते हैं कि असम और उसके पड़ोसी राज्यों से टस्करों की आपूर्ति सेना में भर्ती के लिए की जाती थी। कई शताब्दियों तक इस क्षेत्र में हाथी दांत के लिए टस्करों का शिकार भी होता रहा। दांतों के जीन के गायब होने की प्रक्रिया कई पीढ़ियों तक चली, और हाथियों की आबादी में आनुवंशिक परिवर्तन दंतहीनता के रूप में उभरकर सामने आया।” चेलिया ने बताया कि दक्षिण भारत में वर्ष 1970 से 2000 तक हाथी दांत के लिए हाथियों का शिकार बड़े पैमाने पर किया गया। हालांकि इससे सिर्फ एक पीढ़ी ही प्रभावित हुई जो कि जीनों के आनुवंशिक परिवर्तन के लिए नाकाफी है।

पूर्वोत्तर में टस्कर के मुकाबले मखणा की संख्या में ही वृद्धि हो रही है। वर्ष 1995 में जर्मनी के कील शहर स्थित क्रिस्चियन अलबर्ट्स यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक, 19वीं शताब्दी में पूर्वोत्तर भारत में मखणा बहुत कम दिखाई देते थे। हालांकि वर्ष 1950 तक मखणा की आबादी बढ़कर नर हाथियों में 48.7 प्रतिशत तक और 1970 तक 60 प्रतिशत हो गई। असम वन विभाग के आबादी अनुमान, जिसे भूपेन्द्र नाथ ठाकुर ने अपनी किताब “एलिफैंट्स इन असम” में संकलित किया है, के अनुसार असम में वयस्क और किशोर मखणा की आबादी 1993 से 2008 के बीच 62 से बढ़कर 76 प्रतिशत तक पहुंच गई।
क्या इसका मतलब यह निकाला जाए कि एशियाई हाथी अपने दंतहीन भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं? शायद सुकुमार यही कहना चाहते हैं। उन्होंने बताया, “दांतों का यौन चयन में मामूली लाभ होने के साथ ही दंत जीन के फिर से जीवित होने की भी संभावना अभी शेष है। कोई भी बाहरी कारक, जैसे कि हाथी दांतों के लिए शिकार, हाथियों को दंतहीनता की तरफ ले जाएगा। आखिर में टस्कर के मुकाबले मखणा की बढ़ती संख्या अन्य आबादियों को भी प्रभावित करेगी। लगता है कि एशियाई हाथियों के दांत अब विलुप्तता की ओर बढ़ रहे हैं।” श्रीलंका में नर हाथियों की कुल आबादी का 98 प्रतिशत दंतविहीन है। चूंकि इसका कोई वैज्ञानिक कारण पता नहीं चल पाया है, इसलिए ऐसा माना जा रहा है कि हाथियों की यह पहली आबादी होगी, जो अपने दांतों को पूरी तरह से खो दे।

एक अनसुलझा रहस्य

हाथियों में लंबे दांतों का विकास, वास्तव में विकासवादी जीव विज्ञान का एक बेहद पेचीदा और अनसुलझा रहस्य है। हाथियों की विलुप्त नस्लों के जो जीवाश्म मिले हैं, उनसे भी यह पता चलता है कि पूर्व में सभी हाथियों के काफी लंबे दांत होते थे। विश्व में वर्तमान में पाए जाने वाले हाथियों की तीनों नस्लों में से दंतहीनता सिर्फ एशियाई हाथियों में ही पाई जाती है। अफ्रीकी घास के मैदान सवाना और वहां के जंगलों में पाए जाने वाले हाथियों में, जहां इनका शिकार कम होता है, 99.9 प्रतिशत नर और 98 प्रतिशत मादाओं में लंबे दांत पाए जाते हैं।

“छह वर्ष पहले जब मैंने प्रोफेसर सुकुमार से पूछा कि क्यों कुछ एशियाई हाथियों को लंबे दांत नहीं होते हैं? उन्होंने मुझसे कहा- “पहले यह ढूंढो कि पूर्व में हाथियों को लंबे दांत क्यों होते थे?” चेलिया ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा-“विकास के क्रम में जब हाथियों में लंबे दांतों को यौन चयन का एक आधार माना जाता था, मैंने इसकी पुष्टि करने का निर्णय कर लिया।”

जब डार्विन नर जीवों में अतिरंजित सजावटी और अनुपयोगी विशेषताओं, जैसे कि मोर पंख या आइरिश एल्क के सींग, का अपने प्राकृतिक चयन के सिद्धांत के माध्यम से विकासक्रम की व्याख्या नहीं कर पाए, तो उन्होंने यौन चयन का एक तंत्र विकसित करने का प्रस्ताव रखा। उन्होंने कहा कि नर, मादा के साथ संभोग करने के लिए एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं और नर की कोई विशेषता एक हथियार के तौर पर काम कर सकती है या यह भी हो सकता है कि मादाएं ऐसे नर को सक्रिय रूप से संभोग के लिए चुनना पसंद करे, जो काफी भव्य और सजीला हो। तो क्या डार्विन का यौन चयन का यह सिद्धांत हाथियों में लंबे दांतों के विकास में भी लागू होता है? यह हाथियों की वर्तमान आबादी के लिए सत्यता की कसौटी पर खरा नहीं उतरता। साथ ही पूर्व में भी दो संभावनाएं हो सकती हैंः लंबे दांतों का विकास या तो यौन चयन के माध्यम से न हुआ हो या यदि हुआ है, तो यह मस्त क्रिया के विकास के पहले हुआ हो सकता है। इसकी पुष्टि के लिए और भी गहरे अध्ययन की जरूरत है।

उनके अध्ययन ने स्पष्ट कर दिया कि एशियाई हाथियों की आबादी में अब लंबे दांतों का अस्तित्व समाप्ति की ओर अग्रसर है। हालांकि, उम्मीद की किरण अभी भी बाकी है। सुकुमार का कहना है कि एक प्रजाति के रूप में हाथियों का अस्तित्व अभी सुरक्षित है। हाथियों में दंतहीनता का यह विकासक्रम उन्हें हाथी दांत के लिए होने वाले शिकार से बचाएगा। काजीरंगा के वन संरक्षक पापुल रभा अपना अनुभव साझा करते हुए बताते हैं- “मैंने हमेशा मखणा को टस्करों की तरह सिर ऊंचा करके चलते हुए देखा है। ऐसा शायद इसलिए क्योंकि उनके पास अब खोने के लिए कुछ भी बाकी नहीं बचा है।”

Subscribe to Daily Newsletter :

Comments are moderated and will be published only after the site moderator’s approval. Please use a genuine email ID and provide your name. Selected comments may also be used in the ‘Letters’ section of the Down To Earth print edition.