जॉन एल इंग्राहम सूक्ष्मजीव संसार से हमारे संबंध पर विस्तार से रोशनी डाल रहे हैं
क्या आपको पता है कि हमारे शरीर पर और अंदर रहने वाले सूक्ष्मजीवों की संख्या शरीर में मौजूद कुल कोशिकाओं से 10 गुना अधिक है? यदि नहीं तो आप भी उसी नाव पर सवार हैं जिस पर प्रसिद्ध प्रकृतिवादी चार्ल्स डार्विन सवार थे। उन्होंने जीवन विकास के सभी चरणों की चित्रात्मक अभिव्यक्ति प्रस्तुत की। सभी चरण एक-दूसरे से जुड़े हुए थे। आरंभ में वहां सूक्ष्मजीवों को नहीं दर्शाया गया था। बाद में वैज्ञानिकों ने जीवन वृक्ष में सूक्ष्मजीवों को दर्ज किया। आज इस जीवन वृक्ष के एक छोटे से तने के ऊपरी हिस्से में वनस्पति और प्राणी जगत की श्रृंखला खत्म हो जाती है, जबकि इसके तीन मुख्य तनों में सूक्ष्मजीवों की श्रृंखला का वर्चस्व है। प्रख्यात सूक्ष्मजीव विज्ञानी जॉन एल इंग्राहम अपनी किताब “किनः हाउ वी केम टू नो आवर माइक्रोब्स रिलेटिव्स” में इस पर रोशनी डालते हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के वयोवृद्ध अवकाश प्राप्त प्राध्यापक व लेखक डेविस को इस विषय का महारथी समझा जाता है। वह सूक्ष्मजीवों को “बग सोर्टिंग” नाम देते हैं। यह विभिन्न प्रकार के सूक्ष्मजीवों को वर्गीकृत करने का विज्ञान है। वह पाठकों को सूक्ष्मजीवों के संसार में ले जाते हैं। इंग्राहम सूक्ष्मजीवों की कहानी को वैज्ञानिक दृष्टि से एक गहन विषय होने के बावजूद बिना किसी बड़ी शब्दावली के कहते हैं। यह उन पाठकों के लिए सरल होता है जो सूक्ष्मजीवों के अदृश्य संसार की सामान्य जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं और जो अकादमिक दिशा में काम करते हैं। उनका नया काम “मार्च ऑफ द माइक्रोब्स: साइटिंग द अनसीन” किताब के रूप में साल 2010 में सामने आया है।
इंग्राहम सूक्ष्मजीव के विकास क्रम के सभी पड़ावों की बात करते हैं, जिसमें जीवन वृक्ष में उनकी अनुपस्थिति से लेकर उन्नीसवीं सदी के मध्य में महान वैज्ञानिक लुई पाश्चर द्वारा पहली बार खोजने, 20वीं शताब्दी में सूक्ष्मजीवों को पूरी तरह खोज लिए जाने से लेकर जीवन वृक्ष में सबसे ज्यादा संख्या वाले सदस्य दर्ज होने तक सब कुछ शामिल है।
यह किताब न केवल वैज्ञानिक विकास की बात करती है बल्कि यह भी बताती है कि यह विकास किस दौर से गुजरकर संभव हुआ। इसमें विश्व के महान वैज्ञानिकों के बीच हुए झगड़ों को भी रखा गया है। इंग्राहम बताते हैं कि कैसे कुछ नामी वैज्ञानिकों और पंडितों के बीच सूक्ष्मजीवों की प्रकृति और अस्तित्व को लेकर बहसें हुईं। इन्हीं में एक मजेदार बहस पाश्चर और फेलिक्स पचेट के बीच है। पचेट उस समय फ्रांस शहर के रोवेन में स्थित नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम के निदेशक थे। उन दोनों के बीच सूक्ष्मजीवों की “स्वतः नई पैदाइश” तथा पैदाइश की अनुकूल परिस्थितियों पर बहस चली। अर्थात वे परिस्थितियां जिनमें निर्जीव चीज सामान्यतया सजीव में परिवर्तित हो जाती है जैसे सड़े हुए मांस पर कीड़ों का पैदा हो जाना। पचेट ने प्रस्तावित किया कि अंडों की तरह सूक्ष्मजीव भी एक कोशिकीय है जो बिना किसी पूर्व तैयारी के पैदा होते रहते हैं, इसे पाश्चर ने अपने स्वान-नेक फ्लास्क परीक्षण द्वारा गलत साबित किया। यह परीक्षण बताता है कि धूल-कणों में सूक्ष्मजीव कोशिकाएं मौजूद होती हैं जो जैविक तत्व पर जम जाती हैं। उन्होंने एक ऐसे फ्लास्क में साफ मांस का शोरबा डाला, जिसका ऊपरी हिस्सा एस आकार में था, इस आकार की वजह से शोरबा पर धूल कण नहीं जम पाया, और शोरबा सूक्ष्मजीवों से सुरक्षित रहा।
इंग्राहम कहते हैं कि बहुत से लोग यह नहीं जानते कि जीव विज्ञान के इतिहास में प्राणी जगत को दो मुख्य समूहों वनस्पति तथा पशु में वर्गीकृत किया गया था। जब सूक्ष्मजीवों को खोजा गया और उस पर शोध किया गया तो उन्हें समूह में बहुत अजीब तरीके से बांटा गया। कभी मुख्य समूह के किसी एक श्रृंखला में तो कभी दूसरे समूह में। शुरू में जीवाणु और कवक को उनके स्थानांतरण क्षमता के आधार पर बांटा गया। यदि वे स्थानांतरण कर सकते थे तो जानवरों के समूह में, यदि नहीं तो वनस्पति के समूह में शामिल किया गया। यह वर्गीकरण सूक्ष्मजीवों के प्रति एक उदासीन रवैये को दर्शाता है, जबकि देखा जाए तो उनका पूरा एक साम्राज्य है।
इस नजरिए से इंग्राहम की किताब सूक्ष्मजीवों के प्रति काव्यात्मक प्रस्तुति है, जिन्हें वह प्राकृतिक विविधता के ऐसे नायकों की भांति चित्रित करते हैं जिनका महिमा मंडन नहीं हो पाया। किताब में वह न केवल हमारे वैज्ञानिक ज्ञान में सूक्ष्मजीवों के इतिहास को दर्ज कराते हैं, अपितु हमारे अस्तित्व की रक्षा के लिए उनके महत्व को भी स्वीकार करवाते हैं। वह लिखते हैं, “सूक्ष्मजीव हमारे शरीर की सबसे आधारभूत कोशिकाओं की जीवन-वाहक गतिविधियों में शामिल हैं, जिनसे हमें भोजन पचाने में मदद मिलती है व जिससे मेटाबोलिक ऊर्जा प्राप्त होती है। जैविक प्रक्रिया में यह समानता वृहत तौर देखी जा सकती है। जब हम बहुत तेज गति से दौड़ते हैं तब हमारे मांसपेशियों में दर्द होने के कारण जो लैक्टिक एसिड उत्सर्जित होता है, वह उसी तरह की ऊर्जा-उत्सर्जित प्रतिक्रिया का परिणाम होता है जिस तरह लैक्टिक एसिड जीवाणु दूध को खट्टा कर देते हैं।
वह प्रत्येक जीवाणु समूह के महत्व पर प्रकाश डालते हैं। कवक पर जो हमारा खास संबंधी हैं, इसका प्रयोग ब्रेड बनाने या वाइन बनाने में होता है। अपितु भोजन को अपघटित करने के अतिरिक्त कवक जैविक पदार्थ को मिट्टी में मिलाने में मदद करते हैं, जिससे वह अधिक उपजाऊ हो जाती है। इंग्राहम के अनुसार, यदि सूक्ष्मजीव नहीं होते तो कोई भी बहुकोशिकीय जीव अस्तित्व में नहीं आया होता। वह लिखते हैं कि सूक्ष्मजीव न केवल दूसरे जीवों को जीवन-वाहक गतिविधियों को संचालित करने में मदद करते हैं, बल्कि वे पृथ्वी को रहने लायक बनाते हैं। वह कहते हैं, “पृथ्वी के वातावरण के अधिकतर घटक सूक्ष्मजीवों की गतिविधियों के परिणाम हैं और उन्हीं के द्वारा संचालित होते हैं। वायुमंडल में मौजूद ऑक्सीजन और नाइट्रोजन गैसों का निर्माण सूक्ष्मजीवों के द्वारा ही संभव होता है।”
वह आगे कहते हैं कि हालांकि पौधे ऑक्सीजन का बहुत सारा भाग उत्पादित करते हैं। जीव विज्ञान से संबंधित अध्ययनों ने यह पूरी तरह साबित किया है कि वे इसीलिए ऐसा कर पाते हैं क्योंकि उनके पूर्वजों ने सूक्ष्मजीवों को स्वयं में समाहित किया था और उन्होंने तब से जीवाणुओं को रक्षा करने वाले दासों के रूप में बनाए रखा है, जो आज उनके विकसित रूप में क्लोरोप्लास्टस कहे जाते हैं।
यहां तक कि फली वाले पौधों में नाइट्रोजन-फिक्सिंग की क्षमता भी सूक्ष्मजीवों के कारण विकसित हुई है। पौधे ऊर्जा का स्त्रोत प्रदान करके और रिजोबियम और उससे संबंधित जीवाणुओं को कम ऑक्सीजन स्तर वाला वातावरण प्रदान करके नाइट्रोजन फिक्स करते हैं। लगभग 100 वर्ष पहले तक पृथ्वी से ली जाने वाली कुल नाइट्रोजन गैसों की फिक्सिंग के लिए सूक्ष्मजीव उत्तरदायी थे। कुल फिक्स्ड नाइट्रोजन का लगभग 10 प्रतिशत आकाशीय विद्युत के कारण उत्पन्न होता है। इस तरह सूक्ष्मजीव पौधों और शैवाल को फिक्स्ड नाइट्रोजन (अमोनिया और नाइट्रेट) की आपूर्ति करते हैं, जो इस पोषक तत्व से प्रोटीन और डीएनए सहित कई प्रकार के कोशिकीय घटकों का निर्माण करते हैं।
इंग्राहम यह भी बताते हैं, “यद्यपि मानव ने नाइट्रोजन चक्र की फिक्सिंग प्रक्रिया के आधे भाग पर अपना वश कर लिया है, अपितु इसके रिप्लेसमेंट आर्क पर अब भी सूक्ष्मजीवों का ही साम्राज्य है। नाइट्रोजन चक्र की एक प्रक्रिया को केवल सूक्ष्मजीव ही कर सकते हैं जहां डेनित्री-फिक्सेशन और अनामोक्स-अनाएरोबिक अमोनियम ऑक्सीडेशन के संयोजन द्वारा फिक्स्ड नाइट्रोजन को पुनः गैस रूप में परिवर्तित कर सकते हैं। यह बहुत से प्राकृतिक वातावरणों में घटित होता है।”
वह लिखते हैं, “यद्यपि हमारे दृश्यमान संसार में पौधे और जानवर छाए हुए हैं। वे जीवन वृक्ष की केवल दो शाखाएं हैं। जीवाणु, आद्य जीवाणु, प्रजीव और बहुत से प्रकार के कवक सूक्ष्मजीव ही तो हैं। जीवविज्ञानियों को वंश वृक्ष की संरचना के ज्ञान से सूक्ष्मजीवीय जनसंख्या की जटिल श्रृंखला को वर्गीकृत करने में मदद मिली है। सूक्ष्मजीव ऊपर या हमारे भीतर रहते हैं। उन पर हुए शोधों से हमें यह मदद मिली है कि तय कर सकें कि हमारे स्वास्थ्य और होने वाले रोगों में उनकी क्या भूमिका है। इस ज्ञान ने हमें इस मनचाहे प्रश्न के उत्तर के करीब पहुंचाया है कि कैसे 3.5 खरब वर्ष पहले जीवन का आरंभ हुआ।”
दूसरे शब्दों में कहें तो पृथ्वी पर जीवन संभव नहीं हुआ होता यदि सूक्ष्मजीव संसार के हमारे हितैषियों का जीवन नहीं होता। सूक्ष्मजीव विज्ञान के इतिहास को समझने तथा संसार व हमारे अस्तित्व को बनाए रखने के लिए उनकी भूमिका के महती अध्ययन के लिए यह किताब महत्वपूर्ण है।
We are a voice to you; you have been a support to us. Together we build journalism that is independent, credible and fearless. You can further help us by making a donation. This will mean a lot for our ability to bring you news, perspectives and analysis from the ground so that we can make change together.
Comments are moderated and will be published only after the site moderator’s approval. Please use a genuine email ID and provide your name. Selected comments may also be used in the ‘Letters’ section of the Down To Earth print edition.