ई-डिटेक्शन के उपयोग से टीबी के मरीजों की पहचान करना न केवल पहले से आसान हुआ है, बल्कि मरीजों की पहचान करने की प्रक्रिया पहले से अधिक प्रभावी एवं सस्ती हो गई है।
भारत में टीबी के ऐसे मरीजों की संख्या काफी अधिक है, जिनकी पहचान अब तक नहीं हो सकी है। टीबी के येमरीज दूसरे लोगों को भी संक्रमित करते रहते हैं। भारतीय शोधकर्ताओं ने अब एक ऐसा ऐप बनाया है, जो टीबी के रोगियों की पहचान करके उनके प्रभावीउपचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। ई- डिटेक्शन नामक यह ऐप टीबी के मरीजों के लिए काम करने वाली नई दिल्ली स्थित एक गैर-सरकारी संस्थाऑपरेशन-आशा के विशेषज्ञों ने तैयार किया है।
ई-डिटेक्शन ऐप दो तरह से काम करता है। एक तरफ यह टीबी के लक्षणों के आधार पर संक्रमित व्यक्ति की सीधे पहचान करता है, वहीं दूसरी ओर यह टीबीके मरीजों के संपर्क में रहने वाले अन्य लोगों में संक्रमण की पहचान करने में भी मदद करता है। फिलहाल ई-डिटेक्शन ऐप का उपयोग सामुदायिक स्वास्थ्यकार्यकर्ता टीबी के मरीजों की पहचान करने के लिए अपने मोबाइल फोन पर कर रहे हैं।
सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता घर-घर जाकर टीबी के मरीजों की पहचान लक्षणों के आधार पर करते हैं। इसके अलावा टीबी रोगियों के निरंतर संपर्क में रहनेवाले परिवार के सदस्यों या अन्य करीबी लोगों से खांसी, बुखार जैसे टीबी के लक्षणों पर आधारित प्रशन पूछे जाते हैं और उसे ऐप पर दर्ज कर लिया जाता है।इन प्रश्नों के उत्तर 'हां' में मिलते हैं, तो उस व्यक्ति को टीबी परीक्षण के लिए एक उम्मीदवार मान लिया जाता है।
निदान के प्रत्येक चरण, जैसे- बलगम की जांच, एंटी-बायोटिक दवाओं के उपयोग और एक्स-रे के आधार पर यह ऐप संदिग्ध मरीज का पता करता रहता हैऔर जांच में टीबी के संकेत पाए जाने पर निदान को पूरा मान लिया जाता है। जांच के परिणाम नकारात्मक होते हैं तो संदिग्ध मरीज के रिकॉर्ड सिस्टम में इसेसंग्रहित लिया जाता हैं।
ऑपरेशन-आशा की मुख्य तकनीकी अधिकारी सोनाली बतरा के मुताबिक पूरी दुनिया के करीब एक तिहाई टीबी के मरीज भारत में हैं, जिनकी पहचान औरप्रभावी उपचार में ई-डिटेक्शन उपयोगी साबित हो रहा है। सोनाली बतरा ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि ‘टीबी के मरीजों के परिजन भी कई बार टीबी केशिकार हो जाते हैं, जिनकी पहचान नहीं हो पाती है। ऐसे मरीज दूसरे लोगों को भी संक्रमित करते रहते हैं, जिस कारण टीबी को जड़ से खत्म करना चुनौतीबनी हुई है। टीबी का एक मरीज साल भर में अन्य 10 से 12 लोगों को संक्रमित कर सकता है। इसलिए टीबी के छिपे हुए मरीजों की पहचान और उनके उपचारकी व्यवस्था करना जरूरी है। ई-डिटेक्शन इस काम में काफी मदद कर रहा है।’
इस ऐप का मकसद टीबी के ऐसे संदिग्ध मरीजों का पता लगाना है, जिनका टीबी टेस्ट किया जाना जरूरी है कि कहीं वे टीबी के शिकार तो नहीं हैं। सोनालीबतरा के मुताबिक ‘र्ई-डिटेक्शन ऐप भारत में टीबी के उन्मूलन में काफी मददगार साबित हो सकता है क्योंकि इसके जरिये मरीजों की पहचान करके बीमारी सेसंक्रमित होने की जांच की जा सकती है, जो कि उपचार का सबसे पहला चरण होता है।‘
ई-डिटेक्शन को फिलहाल कर्नाटक के हुबली, ओडिशा के भुवनेश्वर, मध्य प्रदेश के डबरा एवं घाटी-गांव समेत 31 केंद्रों में संचालित किया जा रहा है। इन सभीराज्यों में प्रति लाख आबादी पर टीबी के मरीजों की संख्या 150 से 260 तक है। सोनाली बतरा के मुताबिक ई-डिटेक्शन के उपयोग से टीबी के मरीजों कीपहचान करना न केवल पहले से आसान हुआ है, बल्कि मरीजों की पहचान करने की प्रक्रिया पहले से अधिक प्रभावी एवं सस्ती हो गई है। (इंडिया साइंस वायर)
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