Agriculture

नीति आयोग लघु सिंचाई निजी हाथों में देना चाहता है

माना जा रहा है कि वर्तमान कार्यक्रमों और उपलब्ध बजट के तहत भारत में लघु सिंचाई की पूर्ण क्षमता विकसित होने में कम से कम 100 साल लगेंगे।   

 
By Richard Mahapatra
Published: Tuesday 31 October 2017
Credit: Meeta Ahlawat

नीति आयोग ने देश में लघु सिंचाई को बढ़ावा देने और उसके प्रबंधन के लिए निजी भागीदारी की वकालत की है। इस संबंध में नीति आयोग ने एक ड्राफ्ट कॉन्सेप्ट रिपोर्ट “ड्राफ्ट मॉडल पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप पॉलिसी गाइडलाइंस इन इंटीग्रेटेड माइक्रो इरिगेशन इन इंडिया” तैयार की है। इसमें माना गया है कि सरकारी निधि की अनुपलब्धता की वजह से लघु सिंचाई में निजी निवेश को बढ़ावा देने की जरूरत है। ऐसा पहली बार हुआ है जब सरकार ने बेहद स्थानीय स्तर पर संचालित लघु सिंचाई के लिए निजी पूंजी की इच्छा जताई है और जो व्यापक स्तर पर नहीं होती।

भारत में 65 मिलियन हेक्टेयर सिंचित जमीन है। इसमें से केवल 8.6 मिलियन हेक्टेयर में ही ड्रिप और स्प्रिंक्लर तकनीक से सिंचाई की जाती है। नीति आयोग की वेबसाइट पर लोगों और सरकारी विभागों की प्रतिक्रियाओं के लिए अपलोड की गई ड्राफ्ट नोट के अनुसार, “प्रधानमंत्री कृषि संचयी योजना (पीएमकेएसवाई) के तहत भारत सरकार 1,000 करोड़ रुपए की लागत से हर साल 0.5 मिलियन हेक्टेयर जमीन को लघु सिंचाई के दायरे में लाना चाहती है। भारत में लघु सिंचाई की पूर्ण क्षमता विकसित होने में कम से कम 100 साल लगेंगे।” 

प्रस्तावित निजी सार्वजनिक साझेदारी के तहत, निजी कंपनियां लघु सिंचाई परियोजना को स्थापित करने के लिए ढांचागत संसाधनों को बंदोबस्त करेंगी और उनकी देखभाल करेंगी। जबकि किसान निजी निवेश को लाभकारी बनाने के लिए अपने खेतों को पूल अथवा संयुक्त करेंगे।

ड्राफ्ट रिपोर्ट के अनुसार, यह प्रस्तावित परियोजना ऑर्गनाइज्ड पार्टिसिपेटरी फार्मिंग फ्रेमवर्क के तहत लागू की जाएगी, जहां किसान अपनी समस्त जमीन को संयुक्त करेंगे ताकि बड़े पैमाने पर इसे लागू किया जा सके। सरकार अपने पास उपलब्ध जमीन को निजी कंपनियों को मुहैया कराएगी ताकि पंप हाउस जैसी ढांचागत व्यवस्थाएं तैयार की जा सकें।

इंटीग्रेटेड माइक्रो इरिगेशन (आईएमआई) को लागू करने के लिए जिन किसानों की जमीन पूल की जाएगी वे फार्मर प्रॉड्यूसर कंपनी (एफपीसी) का गठन करेंगे और इसके सदस्य बनेंगे। एफपीसी के सदस्य किसान वाटर यूजर असोसिएशन (डब्ल्यूयूए) के भी सक्रिय सदस्य होंगे। इससे सुनिश्चित होगा कि परियोजना को लागू करने के लिए जो जमीन चिन्हित की जाएगी वह पानी के लिहाज से टिकाऊ हो। निजी निवेश प्राप्त करने में सरकार की मदद के लिए किसानों को न्यूनतम 1000 हेक्टेयर जमीन पूल करनी होगी और अधिकतम 10000 हेक्टेयर।

यह प्रस्ताव निजी सार्वजनिक क्षेत्र के हाइवे की परियोजनाओं के सामान है। 15 साल की रियायती अवधि के बाद सरकार व निजी कंपनियों द्वारा तय परियोजना के क्रियान्वयन और मरम्मत की सारी जिम्मेदारी किसानों पर होगी। सरकार के साथ शुरू करने के लिए निजी कंपनियों को आधारभूत संरचना और मरम्मत लागत की भरपाई करनी होगी।

रियासती अवधि समाप्त होने के बाद सिंचाई का ढांचा बनाए रखने के लिए किसानों का अपनी सब्सिडी सरकार से लेकर निजी कंपनियों को स्थानांतरित करनी होगी। लघु सिंचाई और सौर उपकरण लगाने के लिए सरकार से मिलने वाली सब्सिडी लाभकारी किसानों का रिसायत पाने वाले को देनी होगी।

Interactive data: http://www.downtoearth.org.in/infographics/shrinking-source-57418

किसानों द्वारा गठित फार्मर प्रॉड्यूसर कंपनी निजी कंपनी का चयन करेगी। इसका कोई प्रतिनिधि उसमें शामिल नहीं होगा। कंपनी आगे चलकर निजी कंपनियों के साथ मिलकर फूड प्रोसेसिंग प्रोजेक्ट स्थापित करेगी।

रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि प्राइवेट कंपनी कृषि से संबंधित अच्छी जानकारियां किसानों को देगी जिससे कृषि की गतिविधियों के विस्तार में मदद मिलेगी।

सिंचाई को राज्य का विषय होने के नाते ड्राफ्ट रिपोर्ट में प्रस्ताव दिया गया है कि राज्य सरकारें उचित दिशानिर्देश बनाएं ताकि प्राइवेट कंपनियां किसानों से यूजर चार्ज ले सकें और परियोजना सफल हो सके। 

Subscribe to Daily Newsletter :

India Environment Portal Resources :

Comments are moderated and will be published only after the site moderator’s approval. Please use a genuine email ID and provide your name. Selected comments may also be used in the ‘Letters’ section of the Down To Earth print edition.