Water

पीने के पानी पर आफत

शहरीकरण ने तालाबों को बहुत नुकसान पहुंचाया है और पुराने जल मार्ग आज गायब हो गए हैं। चेन्नई शहर में जलापूर्ति की व्यवस्था 1872 में शुरू हुई। तब इसकी आबादी 4.7 लाख थी। 

 
Published: Sunday 15 July 2018
चेन्नई शहर में मंदिरों से लगे 39 तालाब अर्थात कुलम हैं जिनमें बरसात का पानी भरता है। इनसे भी बाढ़ पर रोक लगाने और भूजल का स्तर बनाए रखने में मदद मिलती है। सोमंगलम तालाब चेन्नई के अड्सार बेसिन के ऊपरी हिस्से में स्थित है। सोमंगलम कुलम को इसी से पानी मिलता है (फोटो: एस राजम / सीएसई)

चेन्नई में सदा से पानी की तंगी रही है। आज पानी की परेशानी इतनी हो गई है कि अब इसकी आपूर्ति हर दूसरे दिन की जाने लगी है। लगातार तीन वर्षों तक सूखा पड़ने के बाद से स्थिति बदतर होती गई है। पानी की कमी ऐसा संवेदनशील मसला बन गया है कि इस पर अधिकारी अपनी जुबान खोलना नहीं चाहते। कोई समाधान न दिखने से यह मुद्दा दबता भी नहीं लग रहा है। अन्ना विश्वविद्यालय में जल संसाधन केंद्र के एम. वी. सोमसुंदरम कहते हैं, “चेन्नई में साल में 1,200 मिमी. वर्षा होती है और यह किसी भी पैमाने से कम नहीं मानी जा सकती। असली समस्या पानी को जमा करने वाली व्यवस्थाओं के न रहने से है। अभी सिर्फ 10 करोड़ घन मीटर पानी ही जमा करके रख सकते हैं।”

चेन्नई शहर में जलापूर्ति की व्यवस्था 1872 में शुरू हुई। तब इसकी आबादी 4.7 लाख थी और यह काम स्पेशल एग्जीक्यूटिव इंजीनियर फ्रेकर की देखरेख में हुआ था। कोर्तालियार नदी का पानी मोड़कर चोलावरम और लाल पहाड़ियों पर पहुंचाया गया और वहां से बने जल मार्गों से शहर तक लाया गया। इससे शहर में रोज रोज 3.2 करोड़ लीटर पानी दिया जाता था। 1944 में पूंडी जलाशय से भी रोज पानी लेकर जलापूर्ति शुरू हुई। इस जलाशय की क्षमता 15.9 करोड़ लीटर थी। साठ के दशक के आखिर में लाल पहाड़ियों और चोलावरम से जलापूर्ति की क्षमता भी बढ़ाई गई। सन 2001 तक रोज 28.3 करोड़ लीटर की जरूरत का अनुमान है।

चेन्नई जलापूर्ति ओर मल व्ययन बोर्ड की प्रबंध निदेशक शांता शीला नायर के अनुसार, शहर में रोज प्रति व्यक्ति 70 लीटर पानी मिल पाता है। यहां सबसे ज्यादा पानी लाल पहाड़ियों पर स्थित जलाशय से आता है जिसकी क्षमता 300 करोड़ लीटर है। लाल पहाड़ी, पूंडी और चोलावरम जलाशयों की कुल क्षमता 600 करोड़ लीटर है। इनका पानी कभी सिंचाई के काम भी आता था, पर अब सिर्फ घरेलू और औद्योगिक जरूरतों को ही पूरा नहीं कर पाता। सोमसुंदरम कहते हैं, “सन 1900 में इनका 90 फीसदी पानी सिंचाई के काम आता था, 6 फीसदी औद्योगिक इकाइयों को जाता था और सिर्फ 4 फीसदी ही घरेलू कामों में लगता था। अभी सात साल पहले तक भी इसका काफी पानी सिंचाई में उपयोग होता था।”

हाल में ही चेंबरंबक्कम झील को चेन्नई के घरेलू उपयोग वाले जलाशय के रूप में बदलने की एक योजना पर काम शुरू हुआ है। विश्व बैंक ने 220 किमी. दूर स्थित वीरानम झीम से 19 करोड़ लीटर पानी लाने की योजना के लिए धन उपलब्ध कराया है। चेन्नई कृष्णा नदी से 93 करोड़ लीटर पानी मिलने पर भी काफी उम्मीदें लगाए बैठा है। सोमसुंदरम कहते हैं, “समाधान जहां-तहां से पानी लाकर देने से नहीं होगा। मंदिरों से लगे तालाबों वगैरह को पुनर्जीवित करने के साथ ही हर घर की छत पर पड़ने वाले बरसाती पानी को संचित करने को भी बढ़ावा देना होगा।”

तालाबों की ताकत

तमिलनाडु में 39,202 तालाब हैं जिनमें से 124 चेन्नई नगर क्षेत्र में हैं। ये तालाब शहर के 5.5 फीसदी जमीन को छेंके हुए हैं (1167 वर्ग किमी. में 63.8 वर्ग किमी.)। इसके अलावा शहर में मंदिरों से लगे 39 तालाब हैं। अकाल आयोग की सिफारिश पर 1883 में शहर के तालाबों को ठीक करने की एक योजना शुरू की गई थी। तब इनके बारे में एक विस्तृत रिपोर्ट भी तैयार की गई थी। इससे पता चलता है कि लगभग ये सभी “इरी” प्रणाली वाले तालाब हैं और जल संचयन की एक समन्वित योजना के अंग हैं और ये इस इलाके से निकलने वाली चार नदियों में से किसी न किसी के बेसिन में अवस्थित हैं।

अरिनियार नदी का उद्गम आंध्र प्रदेश में है। इसके प्रवाह क्षेत्र में अनेक छोटे तालाब हैं। और प्रायः सभी का अपना जल ग्रहण क्षेत्र है। ये तालाब एक-दूसरे से जुड़े भी हैं। इनको चेन्नई जैसे बड़े शहर की जरूरतों को पूरा करने लायक तो नहीं माना जा सकता, पर ये अपने आसपास बसने वालों की जरूरतें तो पूरी कर ही सकते हैं। इस इलाके के दो सौ वर्ष पुराने तालाबों में चोलावरम और लाल पहाड़ी जलाशय शामिल हैं और आज भी चेन्नई शहर को इनसे पानी मिल रहा है। 1872 में जब नगर में जलापूर्ति व्यवस्था शुरू हुई तो इन दोनों को और मजबूत बनाया गया तथा इनकी क्षमता भी बढ़ाई गई। 1969 से इन तालाबों का पानी सिंचाई के लिए नहीं जाता।

कूअम नदी बीच शहर से गुजरती है और इसे दो भागों में बांटती है। इसका उद्गम और मुख्य जल ग्रहण क्षेत्र चेंगाई जिले में है। इसके बेसिन प्रदेश में तीन तालाब- अमाबट्टूर, कोराट्टूर और माधवरम हैं पर इनका आकार काफी छोटा है। इस इलाके में पहले रहे कुलातुर, पाडी, मुगाप्पियर, व्यासारपदी, मंदलम, नुंगाम्बक्कम और चेतपेट नामक तालाब भर चुके हैं और उनकी जगह पर अब इमारतें खड़ी हो गई हैं। अड्यार नदी छोटी है और इसकी लंबाई सिर्फ 42 किमी. है। इसके बेसिन प्रदेश में स्थित तालाबों में सोमंगलम, मणिमंगलम, पिल्लैपक्कम और श्रीपेरांबुदुर भी शामिल हैं। चेंबरंबक्कम तमिलनाडु के पुराने तालाबों में सबसे बड़ा है और इसकी क्षमता 8.84 करोड़ घन मीटर की है। इसका फैलाव 26 वर्ग किमी. है और इसे इन 217 तालाबों का अतिरिक्त पानी मिलता है। इससे 5269 हेक्टेयर जमीन की सिंचाई होती है।

दक्षिण भारत में बस्तियां तालाबों के इर्द-गिर्द ही बसीं और तालाब उनके कामकाज के केंद्र में रहे। इनके पानी का उपयोग नहाने-धोने, पूजापाठ सबके लिए किया जाता था। अब आगोर क्षेत्र में भी बस्तियां बसने से घरों की सारी नालियां इन्हीं में आकर गिरती हैं

मंदिर वाले तालाब

चेन्नई शहर में मंदिरों से लगे 39 तालाब अर्थात कुलम हैं और इनका क्षेत्रफल 1 से 7 एकड़ का है। इनका निर्माण बरसात के पानी को जमा करने, बाढ़ पर कुछ रोक लगाने और भूजल के स्त्रोतों को पुनरावेशित करने के लिए किया गया था। लेकिन शहरीकरण ने इनसे काफी बड़ा मोल लिया है। पुराने जल मार्ग आज गायब हो गए हैं। और अब पानी इन तालाबों को भरे वगैर ही समुद्र में जाकर गिर जाता है। पारंपरिक रूप से दक्षिण भारत में मंदिर और तालाबों के इर्द-गिर्द ही लोग बसते थे और तालाब से जुड़े मंदिर ही उनकी गतिविधियों का मुख्य केंद्र होता था। इन तालाबों का उपयोग नहाने और धार्मिक रीति-रिवाजों को पूरा करने के लिए होता था। बरसात के बाद होने वाले त्यौहार इन्हीं तालाबों के पास होते थे। तालाब के बीच में स्थित छोटे मंदिर (नीराझी मंडपम) में त्यौहार के समय देवता की मूर्ति रखी जाती थी। अब इनके आगोर क्षेत्र में निर्माण हो जाने के बाद इन घरों से निकलती गंदी नालियां ही तालाब में गिरती हैं।

चूंकि जमीन की बनावट में ऊंचाई पश्चिम से पूर्व की तरफ है, इसलिए तालाब के दक्षिण-पश्चिमी या उत्तर-पश्चिमी कोने पर पानी के आने-जाने का रास्ता छोड़ा जाता था। इनका जुड़ाव तालाब के आगोर या पानी के दूसरे स्त्रोत से रहता था। मंदिर से जुड़े सभी तालाबों की तलहटी में कुआं बना होता था। अन्ना विश्वविद्यालय की वरिष्ठ अनुसंधानकर्ता माधवी गणेशन कहती हैं, “पुराने ग्रंथों में इन कुओं के होने का कोई खास कारण नहीं बताया गया है, पर मौजूदा संदर्भों में हम इनके महत्व को समझ सकते हैं। दरअसल ये तालाब और जमीन के अंदर स्थित जलभरों के बीच की कड़ी हैं।” माधवी ने माइलापुर स्थित श्री कावलीश्वरन मंदिर से जुड़े तालाब के बारे में विस्तार से अध्ययन किया है। अब इसके आसपास बस्ती बन गई, जो बहुत घनी नहीं है। इस तालाब को 330 वर्ष पुराना बताया जाता है।

अधिकारियों ने हाल में ही मदुरै मीनाक्षी, तिरूवल्लूर वीरराघव स्वामी और त्रिप्लिकेन पार्थसारथी मंदिरों से जुड़े तालाबों की जल संभरण क्षमता बढ़ाने की कोशिश की थी। इसके लिए तलहटी को सीमेंट से पक्का कर दिया गया। माधवी बताती हैं कि इसके चलते तालाबों का जलभरों से जुड़ाव कटा है। पानी एकदम स्थिर हो गया है और तालाब की मछलियों का जीवन प्रभावित होगा। माधवी मानती है कि भले ही तालाबों के जल ग्रहण क्षेत्र में इमारतें बन गई हों, पर अब भी ये तालाबों का ही हिस्सा हैं, पर उनका पानी एकदम गंदा है और सीढ़ियों पर लोगों का मल भरा रहता है।

चेन्नई शहर के विभिन्न हिस्सों से करीब 850 झुग्गियों को उजाड़कर आंबेडकर नगर कॉलोनी में बसाया गया, जो वेलाचारी झील के पेट में ही स्थित है। स्लम विभाग ने इसकी 28 एकड़ जमीन घेर ली है। वेलाचारी झील की जमीन पर आज 25 से ज्यादा कॉलोनियां बनी हैं। पहले इस झील का क्षेत्रफल 265 एकड़ था। राज्य आवास बोर्ड ने 57 एकड़ जमीन छेंक ली। न्यू अन्ना नगर कॉलोनी अंबाट्टूर तालाब के ऊपर बसाई गई है, जो नगर के पश्चिमी हिस्से में स्थित है। रायपेट्टा तालाब के ऊपर भी मकान बन गए हैं। फिर झील-तालाबों के बाकी बचे हिस्से में नालियों का पानी आता रहता है। इनमें बच्चों के गिरने-डूबने की घटनाएं भी होती रहती हैं। 1993 की बरसात के समय अन्ना नगर कॉलोनी के सभी 1200 मकानों में पानी घुस गया था। आवास बोर्ड और नगर विकास निगम के पुराने कागजातों में इन जगहों को बेकार भूमि बताया गया था। चेन्नई विकास प्राधिकरण के उप योजनाकार एन. सुंदरराजन कहते हैं, “जब विश्व बैंक ने आवास बोर्ड को गंदी बस्ती सुधार कार्यक्रम चलाने के लिए 600 करोड़ रुपए की सहायता दी तो इसका उपयोग करने के लिए कोई जगह नहीं थी। इसीलिए तालाबों की जगह का उपयोग करने की सोची गई।”

इन सबका मिलाजुला असर यह हुआ है कि भूजल का स्तर काफी नीचे चला गया है और जलभरों की क्षमता घटी है। सोमसुंदरम कहते हैं, “भूजल का जरूरत से ज्यादा दोहन होन से पिछले 20 वर्षों में समुद्र का खरा पानी 800 मीटर आगे तक बढ़ आया है।”

(“बूंदों की संस्कृति” पुस्तक से साभार)

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