आधारभूत विज्ञान का फायदा यह नहीं है कि आप क्या सीख रहे हैं। इसका फायदा यह है कि उससे आपको समाधान के लिए आधार मिलेगा।
कुछ लोग अक्सर कहते हैं कि भारत जैसे विकासशील देश में, जहां समस्याओं की भरमार है, वहां मूलभूत विज्ञान के बजाय अनुप्रयुक्त विज्ञान पर अधिक ध्यान देना चाहिए। ऐसे लोगों का तर्क होता है कि मूलभूत विज्ञान पर तो कई देशों में काम हो रहा है, जिसे वहां से लिया जा सकता है। पर, खुद विकसित करने के बजाय जब किसी अन्य देश से तकनीक लेते हैं तो हम उन देशों की कठपुतली बन जाते हैं।
भारत सरकार के नवनियुक्त प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार प्रोफेसर के. विजयराघवन ने ये बातें इंडिया साइंस वायर को दिए गए एक ताजा साक्षात्कार में कही हैं। मूलभूत विज्ञान के महत्व को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि “इस क्षेत्र में भारतीय वैज्ञानिकों को अधिक सक्रियता से कार्य करने की जरूरत है। आधारभूत विज्ञान का फायदा यह नहीं है कि आप क्या सीख रहे हैं। इसका फायदा यह है कि उससे आपको समाधान के लिए आधार मिलेगा। ऐसा सोचना की आप केवल माउंट एवरेस्ट बनाएंगे और उसके लिए माउंटेन रेंज नहीं बनाएंगे तो यह गलत है। एवरेस्ट बनाने के लिए माउंटेन रेंज भी जरूरी है।”
प्रोफेसर के. विजयराघवन के अनुसार “पहले यह समझना जरूरी है कि मूलभूत विज्ञान से हमें फायदा क्या हो सकता है? हमें नहीं पता कि भविष्य में क्या समस्याएं उत्पन्न होंगी। अगर पता हो कि भविष्य में कौन-सी समस्या आएंगी तो हम उसका समाधान करने की तैयारी कर सकते हैं। पर, वास्तव में ऐसा हो नहीं पाता। इस तरह देखें तो मूलभूत विज्ञान में शोध एवं विकास कार्य को बढ़ावा देना एक बीमा की तरह है, जो सुरक्षित एवं बेहतर भविष्य की गारंटी देता है।”
तमिलनाडु में न्यूट्रिनो वेधशाला से जुड़े विवाद पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि “विज्ञान को समझने वाले लोगों का सीधा संवाद जनता से होना चाहिए। किसी वैज्ञानिक प्रयोग की उपयोगिता पर सार्थक चर्चा के लिए जनसंवाद जरूरी है। वैज्ञानिकों और जनता के बीच संवाद होगा तो आम लोगों में आधारभूत विज्ञान आधारित न्यूट्रिनो वेधशाला जैसी परियोजनाओं के बारे में समझ बढ़ेगी और वे इस पर अपनी राय व्यक्त कर सकेंगे। इस तरह के जनसंवाद विवादों को दूर करने में मददगार हो सकते हैं।”
भविष्य में देश के विज्ञान क्षेत्र के लक्ष्यों की बात करते हुए उन्होंने कहा कि “भारत ऐसा देश है जहां हर क्षेत्र सामर्थ्य से भरा हुआ है। नैनो प्रौद्योगिकी से लेकर सौर ऊर्जा या फिर निर्माण क्षेत्र समेत विभिन्न आयाम नवीनतम विज्ञान और प्रौद्योगिकी के साथ आगे बढ़ने के लिए तैयार हैं।”
विभिन्न समस्याओें के बारे में उन्होंने जोर देकर कहा कि “वैज्ञानिक संस्थानों और विश्वविद्यालयों में कार्यरत वैज्ञानिकों को सामाजिक समस्याओं के समाधान के लिए भी काम करना चाहिए। यदि ऐसा होता है तो भविष्य में देश विकास के पथ पर तेजी से अग्रसर होगा।”
क्षेत्रीय भाषाओं में विज्ञान के प्रचार-प्रसार के अपने विचार व्यक्त करते हुए प्रोफेसर विजयराघवन ने बताया कि “भाषा में परेशानी केवल संचार से संबंधित नहीं है, बल्कि यह एक तरह से उपनिवेशवाद है। आज यह मानसिकता से भी जुड़ गई है। अगर आप झारखंड में हो या कर्नाटक से हो और आपने स्कूल में अंग्रेजी नहीं पढ़ी तो विज्ञान सीखने के लिए आपको अंग्रेजी पहले सीखनी पड़ेगी। स्वीडन, डेनमार्क, हॉलैंड जैसे देशों में लोग विज्ञान अपनी भाषा में पढ़ते हैं और अंग्रेजी भी सीखते हैं। वह विज्ञान का संचार अन्य देशों के साथ अंग्रेजी में करते हैं। शोधपत्र अंग्रेजी में करते हैं, लेकिन उनकी सोच अपने समाज और संस्कृति से जुड़ी हुई है क्योंकि वे विज्ञान अपनी भाषा में करते हैं, इससे बहुत फायदा होता है। हमें अंग्रेजी को हटाना नहीं चाहिए, पर हमारी भाषाओं में भी विज्ञान का प्रचार-प्रसार होना चाहिए।”
विज्ञान के क्षेत्र में भी महिलाओं की समान भागीदारी एक मुद्दा है। स्नातक स्तर तक तो लड़कियां आगे आ रही हैं, पर शोधकार्यों में उनका प्रतिशत काफी कम है। प्रोफेसर विजयराघवन के अनुसार “उच्च शिक्षा में लैंगिक असंतुलन को दूर करने के लिए हमारे संस्थानों में महिलाओं के लिए अनुकूल माहौल होना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि महिलाओं को कार्यालय समय में थोड़ी छूट मिलनी चाहिए और उनके बच्चों के लिए डे-केयर जैसी सुविधाओं की व्यवस्था होनी चाहिए। इसके अलावा विज्ञान संस्थानों में प्रवेश के समय महिलाओं के लिए आयु सीमा में भी छूट होनी चाहिए। किसी कारणवश यदि महिला कुछ समय के लिए अन्य जिम्मेदारियों के चलते अपना शोध कार्य रोकती हैं तो उन्हें ऐसी सुविधा मिलनी चाहिए कि वे दोबारा अपने शोधकार्य से जुड़ सकें। उच्च पदों और समितियों में भी महिलाओं को प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। ऐसा करने से भारत के लैंगिक प्रोफाइल में बदलाव देखने को मिल सकता है।”
जलवायु परिवर्तन ने आज पूरे विश्व का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। इस समस्या से निपटने के लिए भारत की तैयारियों के बारे में बताते हुए प्रोफेसर विजयराघवन ने कहा कि “भारत ने जलवायु परिवर्तन को गंभीरता से समझा है और इसके लिए कार्य कर रहा है। देश में अनेक ऐसी पहल की जा रही हैं, जिनसे ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन का कम किया जा सके। कई अंतरराष्ट्रीय परियोजाओं में भी भारत साझीदार है। मिशन इनोवेशन, सोलर एनर्जी एलायन्स आदि में भारत की भूमिका काफी अहम है। जिस प्रकार से हम स्वच्छ ऊर्जा में आगे बढ़ रहे हैं, उस हिसाब से हम जलवायु परिवर्तन जैसी समस्या के लिए पूर्ण रूप से सक्रिय और तत्पर हैं।”
(इंडिया साइंस वायर)
Keywords : Basic Sciences, Climate Change, Women in Science, Neutrino observatory, Greenhouse emissions, Scientific research, Investment in Scientific research
We are a voice to you; you have been a support to us. Together we build journalism that is independent, credible and fearless. You can further help us by making a donation. This will mean a lot for our ability to bring you news, perspectives and analysis from the ground so that we can make change together.
Comments are moderated and will be published only after the site moderator’s approval. Please use a genuine email ID and provide your name. Selected comments may also be used in the ‘Letters’ section of the Down To Earth print edition.