भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा विकसित सीयूसैट-एसटी-205 नामक रडार को केरल में ऐसे स्थान पर लगाया गया है, जहां से मानसून भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवेश करता है।
हिंद महासागर के ऊपर मौसम और मानसून की अधिक सटीक निगरानी के लिए भारत में निर्मित रडार ने कोचीन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी में काम करना शुरू कर दिया है।
भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा डिजाइन और विकसित किए गए सीयूसैट-एसटी-205 नामक इस नए रडार को केरल में ऐसे स्थान पर लगाया गया है, जहां से मानसून भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवेश करता है। इससे मौसम, खासतौर पर मानसून संबंधी अधिक सटीक भविष्यवाणी करने में मदद मिल सकती है। पृथ्वी के ऊपरी वातावरण में वायुमंडल की दशाओं की निगरानी के लिए देश में पहले से कई रडार तथा सोनार मौजूद हैं। इस नए रडार के आने से मौसम पूर्वानुमान की भारत की क्षमता में बढ़ोत्तरी हो सकती है।
रडार का उपयोग आमतौर पर विमानों का पता लगाने के लिए किया जाता है। रडार की कार्यप्रणाली रेडियो तरंगे भेजने और तरंगों के परावर्तन पर आधारित होती है। तरंगें जब परावर्तित होकर वापस लौटती हैं तो इससे किसी वस्तु की उपस्थिति का पता लगाने में मदद मिलती है। मौसम के मामले में रडार प्रणाली के इन्हीं सिद्धांतों का उपयोग वायुमंडलीय हलचलों और उसमें मौजूद नमी का पता लगाने के लिए किया जाता है। एसटी-205 रडार वायुमंडलीय हलचलों का पता लगाने के लिए 205 मेगाहर्ट्ज की रेडियो तरंगे भेज सकता है।
कोचीन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी के एडवांस्ड सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक रडार रिसर्च के निदेशक डॉ के. मोहन कुमार ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “इस रडार को वायुमंडल के ऊपरी हिस्से में स्थित समताप मंडल में होने वाली हलचलों का पता लगाने के लिए विशेष रूप से डिजाइन किया गया है।”
डॉ के. मोहन कुमार के अनुसार, “क्षोभमंडल पृथ्वी के वायुमंडल का सबसे निचला हिस्सा है और यह 17 किलोमीटर की ऊंचाई पर है। वायुमंडल के इस हिस्से में ऊंचाई बढ़ने के साथ तापमान घटने लगता है। बादल, बारिश, आंधी, चक्रवात जैसी मौसमी घटनाएं वायुमंडल के इसी निचले हिस्से में ही होती हैं। दूसरी ओर, समताप मंडल 17 किमी से ऊपर का क्षेत्र है, जहां वातावरण काफी शांत रहता है। वायुमंडल का यह क्षेत्र शुष्क तथा विकिरण के प्रति संवेदनशील होता है और इस क्षेत्र में मौसम संबंधी प्रणाली नहीं पायी जाती है।”
डॉ कुमार के मुताबिक, “वायुमंडल के निचले हिस्से में चलने वाली वायुधाराएं, जिन्हें निम्न स्तरीय मानसून जेट धाराएं कहते हैं, भारत के दक्षिणी छोर पर मानसून के समय देखी जा सकती हैं। धरातल से करीब 1.5 किलोमीटर की ऊंचाई पर ये धाराएं चलती हैं। लगभग 14 किलोमीटर की ऊंचाई पर समताप मंडल के पास एक अन्य जेट धारा 40-50 मीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से पूरब की ओर से आती है। इन जेट धाराओं की गति और उत्तर तथा दक्षिण की ओर इनके प्रवाह से ही भारत में मानसून का विस्तार होता है। इस नए रडार की मदद से 315 मीटर से 20 किलोमीटर की ऊंचाई तक क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर हवाओं की सटीक ढंग से निगरानी अधिक परिशुद्धता के साथ की जा सकती है।”
मानसून की निगरानी के अलावा एसटी-205 रडार सुविधा का उपयोग अन्य वैज्ञानिक अनुसंधानों में भी हो सकता है, जिसके कारण दुनिया भर के वैज्ञानिकों का आकर्षण इसकी ओर बढ़ा है। यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने अगले महीने लॉन्च होने वाले अपने नए उपग्रह के प्रमाणीकरण के लिए इस नए रडार के आंकड़ों के लिए संपर्क किया है। इसी तरह इंग्लैंड के मौसम विभाग और यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग की ओर से भी एक संयुक्त शोध कार्यक्रम का प्रस्ताव मिला है। इसके साथ ही क्षोभमंडल तथा समताप मंडल की परस्पर क्रियाओं के अध्ययन के लिए इस रडार के अवलोकनों का उपयोग करने के लिए एक इंडो-फ्रांसीसी कार्यक्रम भी चल रहा है।
रडार टीम में डॉ कुमार के अलावा, के.आर. संतोष, पी. मोहनन, के. वासुदेवन, एम.जी. मनोज, टीटू के. सैमसन, अजीत कोट्टायिल, वी. राकेश, रिजॉय रिबेलो और एस. अभिलाष शामिल थे। इस रडार परियोजना से जुड़े वैज्ञानिक तथ्यों को शोध पत्रिका करंट साइंस में प्रकाशित किया गया है। इस रडार परियोजना के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की ओर से अनुदान दिया गया है और चेन्नई की कंपनी डाटा पैटर्न इंडिया ने वैज्ञानिकों और इंजीनियर्स की देखरेख में इसे बनाया है। (इंडिया साइंस वायर)
भाषांतरण : उमाशंकर मिश्र
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