झील और उसकी फूमदियों में कई ऐसे जीवाणु मिले हैं, जो बहु-एंजाइम उत्पादक माने जाते हैं और पौधों की वृद्धि के लिए उत्तरदायी उत्प्रेरक रसायनों का भी उत्पादन करते हैं।
मणिपुर की लोकटक झील दुनियाभर में अपने तैरते हुए द्वीपों या फूमदी के लिए जानी जाती है। वनस्पतियों, मिट्टी और जैविक तत्वों से बनी फूमदी झील पर तैरते हुए किसी भूखंड की तरह लगती है। भारतीय वैज्ञानिकों ने लोकटक झील तथा उसमें पाई जाने फूमदी में कई जीवाणुओं का पता लगाया है, जो पौधों की वृद्धि को बढ़ावा देने वाले रसायनों और औद्योगिक रूप से महत्वपूर्ण एंजाइमों के उत्पादन में उपयोगी हो सकते हैं।
लोकटक झील और उसकी फूमदियों में कई ऐसे जीवाणु वैज्ञानिकों को मिले हैं, जो बहु-एंजाइम उत्पादक माने जाते हैं और पौधों की वृद्धि के लिए उत्तरदायी उत्प्रेरक रसायनों का भी उत्पादन करते हैं। इनमें से कुछ जीवाणुओं में रोगजनकों के विरुद्ध कवक-प्रतिरोधी और सूक्ष्मजीव प्रतिरोधी गुण भी देखे गए हैं।
गोवा विश्वविद्यालय, मणिपुर विश्वविद्यालय और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के जीव वैज्ञानिकों द्वारा संयुक्त रूप से किए गए इस अध्ययन में लोकटक झील के जल और फूमदी तलछटों से 26 जीवाणुओं को पृथक किया गया है। और फिर जीवाणुओं की एंजाइम उत्पादन क्षमता, पौधों की वृद्धि को बढ़ावा देने और कवक-प्रतिरोधी गुणों की जांच की गई है।
पृथक किए गए जीवाणुओं में से एंटीरोबेक्टर टेबेसी नामक जीवाणु साइडेरोफोर्स, इंडोल एसिडिक एसिड, फॉस्फेट्स और कार्बनिक अम्ल का उत्पादन करते हैं, जो पौधों की वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण माने जाते हैं। ये जीवाणु वायुमंडलीय नाइट्रोजन के स्थिरीकरण, हाइड्रोजन सायनाइड उत्पादन, फॉस्फेट घुलनशीलता और अमोनिया उत्पादन जैसी पादप क्रियाओं में भी शामिल पाए गए हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि आर्द्रभूमियों में टिकाऊ खेती के लिए इन जीवाणुओं का उपयोग किया जा सकता है।
इस शोध से जुड़े गोवा विश्वविद्यालय के सूक्ष्मजीव वैज्ञानिक मिलिंद मोहन नायक ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “मणिपुर में खेतों में किसान फूमदी तलछटों का उपयोग उर्वरक के रूप में करते हैं। इससे फसल पैदावार में बढ़ोत्तरी होती है। लोकटक झील और उसमें मौजूद फूमदियों में विशिष्ट सूक्ष्मजीव विविधता की पुष्टि पहले हो चुकी है। इसमें मौजूद सूक्ष्मजीव हाइड्रोलाइटिक एंजाइमों का स्राव करके पोषक तत्वों के पुनर्चक्रण में मदद करते हैं। यही कारण है कि फूमदी में मौजूद जीवाणुओं के कारण खेतों की उर्वरता बढ़ जाती है। ये जीवाणु पौधों की जैव क्रियाओं और मिट्टी के उपजाऊपन को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।”
अध्ययनकर्ताओं के अनुसार, कुछ जीवाणु पौधों में रोग पैदा करने वाली फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरियम नामक फंफूद की वृद्धि रोकने में सक्षम पाए गए हैं। इसके अलावा एरोमोनास हाइड्रोफिला नामक जीवाणुओं द्वारा औद्योगिक रूप से महत्वपूर्ण एंजाइमों, जैसे- एमाइलेज, लाइपेज, प्रोटिएज, सैल्युलेज और काइटिनेज को प्राप्त किया जा सकता है। इन एंजाइमों का उपयोग खाद बनाने में किया जाता है। इस तरह लोकटक झील में मौजूद सूक्ष्मजीव कृषि और औद्योगिक दृष्टि से बेहद उपयोगी हैं। यह अध्ययन शोध पत्रिका करंट साइंस में प्रकाशित किया गया है।
लोकटक भारत में ताजे पानी की सबसे बड़ी झील है। मणिपुर के लोग मछली पकड़ने से लेकर कृषि, मत्स्य पालन, पारंपरिक हस्तशिल्प उत्पादों के निर्माण और उसके व्यापार के लिए लोकटक झील और उसकी फूमदियों पर निर्भर हैं। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमियों के टिकाऊ उपयोग और संरक्षण के लिए बनी अंतरराष्ट्रीय संधि रामसर समझौता-1975 के तहत लोकटक झील को भी शामिल किया गया है। लोकटक झील मॉण्ट्रक्स रिकॉर्ड में भी सूचीबद्ध है। मॉण्ट्रक्स रिकॉर्ड्स रामसर संधि का ऐसा रजिस्टर है, जिसके तहत विश्व की संकटग्रस्त आर्द्रभूमियों को शामिल किया जाता है।
लोकटक झील में 40 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में तैरती इन फूमदियों को केइबुल लामजाओ राष्ट्रीय उद्यान के तहत संरक्षित किया गया है। विश्व का इकलौता तैरता हुआ यह राष्ट्रीय उद्यान भारत में संकटग्रस्त संगाई हिरन का एकमात्र निवास स्थान भी है। जल विद्युत परियोजनाओं, मत्स्य पालन और अन्य मानव जनित गतिविधियों के कारण लोकटक झील पर संकट बढ़ सकता है। इसलिए झील के जैविक तथा अजैविक संसाधनों के सुरक्षित तथा टिकाऊ उपयोग से ही लोकटक झील का संरक्षण किया जा सकता है।
इस अध्ययन में शामिल शोधकर्ताओं में डॉ नायक के अलावा कोमल साल्कर, विश्वनाथ गाडगिल, संतोष कुमार दुबे और राधारमण पांडे शामिल थे। (इंडिया साइंस वायर)
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