मौसी बोलीं, “फिर से नई योजना ले आए? हम लोगों को चैन से रहने भी दोगे या नहीं?”
हाल ही में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण द्वारा रामगढ़ ( फिर वह कहीं भी हो ) और उसके आसपास के इलाकों में खुदाई के दौरान “शोले सभ्यता” के बारे में कुछ नई जानकारियां प्राप्त हुई हैं।
“जय” नामी शख्स पहले बड़ा भला भक्त (माफ कीजियेगा युवक) हुआ करता था। कभी नोटबंदी के समय “बैंक-मित्र” तो कभी इम्तहानों के पहले “शिक्षा मित्र” के रूप में वह अपने इलाके में भटकता हुआ पाया जाता था। मगर जाने क्यों उसके साथ कुछ न कुछ अनहोनी हो जाती थी, मसलन एक दिन बैंक-मित्र के रूप में, जब वह रामगढ़ के लोगों को बचत के फायदे बता रहा था, उसी दिन रात को नोटबंदी घोषित हो गई।
कुछ ऐसा ही हुआ, जब वह शिक्षा मित्र बनकर बच्चों को पढ़ाई-लिखाई के फायदे गिना रहा था कि उसने टीवी में देखा कि देश के बड़े नेता लोगों को पकौड़ी बेचकर रोजगार का सुझाव दे रहे हैं। एक दिन उसे किसी से आयुष्मान भारत के बारे में पता चला। वह रातों-रात “आयुष्मान-मित्र” बन गया और रामगढ़ के लिए रवाना हो गया और सबसे पहले बसंती की मौसी से मिलने का खयाल आया क्योंकि उसने कहीं पढ़ रखा था कि आजकल घर के बड़े-बूढ़ों के स्वास्थ्य को लेकर कोई नहीं सोचता। बातचीत शुरू हुई-
“फिर से कोई नई योजना ले आए? अरे मैं पूछती हूं कि हम आम लोगों को चैन से रहने भी दोगे या नहीं? कभी कहते हो बैंक से अपने नोट बदलवा लो, कभी कहते हो अपने फोन नंबर के साथ अपना आधार खाता जोड़ो, फिर कहते हो अपने बैंक खाते के साथ अपना आधार खाता जोड़ो, कभी कहते हो कि बैंक-मोबाइल कंपनी में अपने जोड़े हुए आधार खाते को अब डिलीट करो...”
“आप भी कहां की बात लेकर बैठ गईं मौसी...मैं तो आयुष्मान भारत...” जय ने कुछ बोलना चाहा पर मौसी ने बात बीच में काटकर पूछा,
“यह बताओ कि दुनिया के एक सबसे बड़े हथियारों का खरीदार देश भारत अपने जीडीपी का केवल 4 फीसदी जन-स्वास्थ्य पर क्यों खर्च करता है? क्यों आज दूर दराज से लोगों को इलाज के लिए दिल्ली के एम्स में जाना पड़ता है? क्यों लोग रहने की जगह की कमी से शौचालयों में रहने को मजबूर होते हैं?”
“अच्छा यही बता दो कि स्वाधीनता के सत्तर साल बाद भी हमारे देश में क्यों आज एक हजार लोगों के लिए एक से भी काम डॉक्टर हैं और एक से भी कम अस्पताल में बिस्तर हैं?”
“चलो इतना बता दो कि रामगढ़ में प्राथमिक चिकित्सा केंद्र कब बनेगा और उसमें एक अदद डॉक्टर हमें कब मिलेगा?”
जय बोला, “ मौसी रामगढ़ में भी बस अच्छे दिन आने वाले हैं...”
मौसी बोली, “एक बात की दाद देनी पड़ेगी। सरकार आम आदमी के इलाज में पैसे न खर्च करे, अस्पताल न हों, डॉक्टर न हों, इलाज-दवाई-टेस्ट के चलते आम आदमी भारी कर्जे के नीचे डूब जाए पर तुम तो हमेशा गुणगान ही करोगे।”
“अब क्या करूं मौसी, मेरी आदत भी अब सरकारी हो चली है... तो आपका नाम रजिस्टर में लिख लूं?” जय ने पूछा।
मौसी बिफर कर बोलीं “ भले सारी जिंदगी नीम-हकीमों के पास जाना पड़े पर मैं अपना नाम नहीं लिखवाऊंगी।”
कहते हैं मौसी के साथ हुई उस संक्षिप्त मीटिंग के बाद जय का मन उचाट हो गया। उसने स्किल इंडिया के अंतर्गत जेबकतरी-चोरी-डकैती का शॉर्ट टर्म कोर्स कर लिया और “आयुष्मान-मित्र” से “वीरू-मित्र” बन गया। बाकी की कहानी हमें पता ही है....
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