Food

कोदो: एक उपेक्षित अनाज

शुगर फ्री चावल के तौर पर पहचाने जाने वाले कोदो को अब लोग भूलने लगे हैं। आईयूसीएन के रेड लिस्ट में शुमार इस अनाज को बचाने और लोकप्रिय बनाने के प्रयास शुरू हो गए हैं। 

 
By Chaitanya Chandan
Published: Thursday 15 March 2018
विकास चौधरी / सीएसई

कोदो कुटकी के भात खाले बीमारी भगा ले
यह जिंदगी हवे सुन्दर छाया है रे हाय
कोदो कुटकी के भात खाले चकोड़ा की भाजी
सब दूर होवे रहे मन में राशि
मधु मोह-मोह-मोह सपा होवे न रोगी…

मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिले के पुष्पराजगढ़ विकासखंड के पोड़ी गांव में आंगनबाड़ी सेविका रजनी मार्को यह स्वास्थ्य गीत अक्सर सुनाती हैं। दरअसल इस गीत में लघु धान्य अनाज कोदो-कुटकी के औषधीय गुणों की व्याख्या की गई है। शहरों की चकाचौंध और तमाम तरह के अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों के संग हमारी दिनचर्या ऐसी घुलमिल गई है कि हमारे पास पौष्टिक खाद्य पदार्थों के विकल्प सीमित हो चले हैं।

ऐसा ही एक अनाज है कोदो, जिसे अंग्रेजी में कोदो मिलेट या काउ ग्रास के नाम से जाना जाता है। कोदो के दानों को चावल के रूप में खाया जाता है और स्थानीय बोली में भगर के चावल के नाम पर इसे उपवास में भी खाया जाता है। कोदो का वानस्पतिक नाम पास्पलम स्कोर्बीकुलातम है और यह भारत के अलावा मुख्य रूप से फिलिपींस, वियतनाम, मलेशिया, थाईलैंड और दक्षिण अफ्रीका में उगाया जाता है।

दक्कन के पठारी क्षेत्र को छोड़कर भारत के अन्य हिस्सों में इसे बहुत ही छोटे रकबे में उगाया जाता है। इसकी फसल सूखारोधी होती है और ऐसी मिट्टी में भी आसानी से उगाई जा सकती है, जिसमे अन्य कोई फसल उगाना संभव नहीं है।  

कोदो मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय अफ्रीका में उगाया जाने वाला अनाज है। एक अनुमान के मुताबिक 3,000 साल पहले इसे भारत लाया गया। दक्षिणी भारत में, इसे कोद्रा कहा जाता है और साल में एक बार उगाया जाता है। यह पश्चिमी अफ्रीका के जंगलों में एक बारहमासी फसल के रूप में उगता है और वहां इसे अकाल भोजन के रूप में जाना जाता है। अक्सर यह धान के खेतों में घास के समान उग जाता है।

दक्षिणी संयुक्त राज्य और हवाई में इसे एक हानिकारक घास के तौर पर जाना जाता है। ऑस्ट्रेलिया में यह उपज जहां पक्षियों को खिलाने के काम आती है, वहीं दक्षिण अफ्रीका में इसके बीज लगाकर कोदो की खेती शुरू की गई है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोदो-कुटकी की बहुत मांग है। शुगर फ्री चावल के नाम पर इसे फाइव स्टार होटलों में भी परोसा जा रहा है।

कोदो आदिवासियों का एक मुख्य भोजन रहा है और इससे जुड़े कई मिथक भी सुनने को मिलते हैं। वेरियर अल्विन की किताब जनजातीय मिथक: उड़िया आदिवासियों की कहानियां में एक कहानी मेघ गर्जना शीर्षक से प्रकाशित है। इस कहानी का सार कुछ इस प्रकार है- जब मनुष्य पैदा हुए तो महाप्रभु ने आकाश से पृथ्वी तक सड़क बना दी और मनुष्य उस पर चलकर आया-जाया करते थे। जब आबादी बढ़ी तब महाप्रभु ने मनुष्य समाज को जातियों में विभाजित कर दिया, उन सबको बसने के लिए स्थान दे दिया और आकाश-पृथ्वी वाले मार्ग को बन्द कर दिया।

एक बार महाप्रभु मनुष्यों से मिलने आए तब उन लोगों ने महाप्रभु से पूछा, “हमें किस महीने में धान और कोदो बोना चाहिए? “वर्षा ऋतु आरंभ होने के पूर्व वाले महीने में मैं तुम्हें सूचना भेजूंगा और मेरे चपरासी भी आकाश से आकर तुम्हें बताएंगे और तुम्हें उनकी गर्जना भी सुनाई पड़ेगीं”, महाप्रभु ने उत्तर दिया। इसके बाद मनुष्य चपरासियों की घोषणा की प्रतीक्षा करने लगे।

गर्जना के साथ ही उन्होंने अपने खेतों की बुआई कर ली और जब वर्षा ऋतु समाप्त होने को थी, तब भी चपरासियों ने गर्जना के जरिए उन्हें आगाह कर दिया कि वर्षा अब जाने वाली है। इस कहानी से हमें यह पता चलता है कि कोदो सदियों से जनजातीय समाज के लिए भोजन के रूप में कितना महत्त्व रखता है।

विलुप्त हो रहे कोदो को बचाने के लिए मध्य प्रदेश का कृषि विभाग कई तरह की योजनाएं चला रहा है। कृषि अनुसंधान केन्द्र, रीवा के वैज्ञानिकों ने कोदो की नई किस्म तैयार की है, जिसे जेके-49 नाम दिया गया है। गौरतलब है कि कोदो औषधीय महत्व की फसल है। इसे शुगर फ्री चावल के नाम से ही पहचान मिली है। यह मधुमेह के रोगियों के लिए उपयुक्त आहार है। कम पानी में तैयार होने वाली फसल से किसान को अच्छा लाभ मिलने की बात वैज्ञानिक कह रहे हैं। कृषि महाविद्यालय रीवा के अधिष्ठाता एके राव का कहना है कि नई किस्म तेज हवा-पानी के प्रति संवेदनशील है।

पहचान वापस दिलाने की कोशिश

मध्य प्रदेश के जनजातीय जिला डिंडोरी में कोदो-कुटकी को फिर से पहचान दिलाने की कोशिशें शुरू हो गई हैं। वहां की महिलाओं के स्वयं-सहायता समूह कोदो-कुटकी से बने कई उत्पाद तैयार कर रहे हैं। इन उत्पादों को भारती ब्रांड के नाम से बाजार में उतारा गया है। गौरतलब है कि डिंडोरी जिले के 41 गांवों की बैगा जनजातीय महिलाओं ने तेजस्विनी कार्यक्रम के जरिए कोदो-कुटकी की खेती शुरू की। वर्ष 2012 में 1,497 महिलाओं ने प्रायोगिक तौर पर 748 एकड़ जमीन पर कोदो-कुटकी की खेती की शुरुआत की थी।

इससे 2,245 क्विंटल उत्पादन हुआ। इससे प्रेरणा लेकर 2013-14 में 7,500 महिलाओं ने 3,750 एकड़ में कोदो-कुटकी की खेती की और 15 हजार क्विंटल कोदो-कुटकी का उत्पादन हुआ। कोदो-कुटकी के बढ़ते उत्पादन को देखते हुए नैनपुर में एक प्रसंस्करण यूनिट ने भी काम करना शुरू कर दिया है। बैगा महिलाओं के फेडरेशन द्वारा संचालित इस कोदो-कुटकी कार्यक्रम को वर्ष 2014 में देश का प्रतिष्ठित राष्ट्रीय सीताराम राव लाइवलीहुड अवार्ड से भी नवाजा गया है।

कोदो की पौष्टिकता को देखते हुए मध्य प्रदेश सरकार ने जुलाई 2017 में अधिसूचना जारी कर आंगनबाड़ी केंद्रों में 3 से 6 वर्ष तक के बच्चों को कोदो-कुटकी से बनी पट्टी सुबह के नाश्ते में पूरक पोषण आहार के रूप में प्रदान करने का आदेश दिया है।

औषधीय गुण

कोदो भारत का एक प्राचीन अन्न है जिसे ऋषि अन्न माना जाता था। इसके दाने में 8.3 प्रतिशत प्रोटीन, 1.4 प्रतिशत वसा तथा 65.9 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट पाई जाती है। कोदो-कुटकी मधुमेह नियंत्रण, गुर्दो और मूत्राशय के लिए लाभकारी है। यह रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक के प्रभावों से भी मुक्त है। कोदो-कुटकी हाई ब्लड प्रेशर के रोगियों के लिए रामबाण है। इसमें चावल के मुकाबले कैल्शियम भी 12 गुना अधिक होता है। शरीर में आयरन की कमी को भी यह पूरा करता है। इसके उपयोग से कई पौष्टिक तत्वों की पूर्ति होती है।

वर्ष 2009 में जर्नल ऑफ एथनोफार्माकोलोजी में प्रकाशित एक शोध कोदो को मधुमेह के रोगियों के लिए स्वास्थ्यकर पाता है। वहीं वर्ष 2005 में फूड केमिस्ट्री नामक जर्नल में प्रकाशित शोध के अनुसार कोदो में फाइबर काफी अधिक मात्रा में पाए जाते हैं, जो लोगों को मोटापे से बचाता है। वर्ष 2014 में प्रकाशित पुस्तक हीलिंग ट्रडिशंस ऑफ द नॉर्थवेस्टर्न हिमालयाज के अनुसार कोदो बुरे कोलेस्ट्रोल घटाने में भी मददगार साबित होता है।

व्यंजन
 

कोदो की खीर

सामग्री:

  • कोदो : 1 कप
  • दूध : 1 लीटर
  • चीनी : 1/2 कप
  • घी : 1 चम्मच
  • नारियल का चूर्ण: 3 चम्मच
  • काजू : 10-12
  • किशमिश : 10-12
  • चिरौंजी : 25 ग्राम

विधि:  एक कड़ाही में दूध को उबलने के लिए चूल्हे पर रख दें। अब कोदो को अच्छी तरह से धोकर पानी में भिगोकर 15 मिनट के लिए अलग रख दें। दूध जब उबल जाए तो इसमें कोदो डालकर धीमी आंच पर पकाएं। जब कोदो पूरी तरह से पक जाए तो इसमें नारियल का बुरादा और बारीक कटे हुए काजू, किशमिश और चिरौंजी मिलाएं। अब पकी हुई खीर में चीनी डालकर अच्छी तरह मिलाएं। इसके बाद एक कड़ाही में घी गरम करके उसमें साबुत मेवे को हल्का सुनहरा होने तक भून लें। अब एक कटोरे में खीर को निकालें और भुने हुए मेवों से सजाएं और परोसें।

पुस्तक

द हेल्दी इंडियन डायट
लेखक: राज आर पटेल, अनुजा बालासुब्रमण्यम, हेतल जंनू  
प्रकाशक: क्रियेटस्पेस | पृष्ठ: 204
मूल्य: $14

यह किताब भारत के पारंपरिक भोजन को स्वास्थ्यवर्धक तरीके से पकाने और खाने की तकनीक बताता है। साथ ही भोजन का औषधि के तौर पर इस्तेमाल भी बताता है।

 

Subscribe to Daily Newsletter :

India Environment Portal Resources :

Comments are moderated and will be published only after the site moderator’s approval. Please use a genuine email ID and provide your name. Selected comments may also be used in the ‘Letters’ section of the Down To Earth print edition.