Agriculture

कॉरपोरेट के नियंत्रण में खेती से किसका भला होगा

कॉरपोरेट से खेती कराने को लेकर भारत सहित दुनिया भर में बहस छिड़ी हुई है, लेकिन यह जानना जरूरी है कि इससे फायदा किसको होगा 

 
By Richard Mahapatra
Published: Thursday 25 April 2019
संजीत / सीएसई

क्या असंगठित कृषि अथवा संगठित और कॉरपोरेट के नियंत्रण में खाद्य उत्पादन ठीक है? इस महत्वपूर्ण बहस के विभिन्न पहलुओं को समझने में मालावी में बन रही कृषि नीति उपयोगी साबित हो सकती है। इसके मूल में बीजों का नियंत्रण है। बेहद कम विकसित यह अफ्रीकी देश एक कानून बना रहा है ताकि बीजों के व्यापार को नियंत्रित किया जा सके।

यह प्रस्तावित कानून किसानों के बीच असंगठित बीज व्यापार को अप्रत्यक्ष रूप से अपराध की श्रेणी में रखता है। बहुत से लोगों का आरोप है कि इस नए कानून के पीछे बेयर के स्वामित्व वाली मोनसेंटो कंपनी है ताकि वह अपने पेटेंट बीज का प्रचार और उसकी रक्षा कर सके। मोनसेंटो ने पहले ही सरकारी स्वामित्व वाली बीज कंपनी को अपने अधिकार में ले लिया है।

बहुराष्ट्रीय बीज कंपनी के हित में पेटेंट और महंगे बीज को बढ़ावा देने का मालावी का प्रयास एकमात्र घटनाक्रम नहीं है। कोई भी तर्क दे सकता है कि अधिकांश विकसित और गरीब देशों की यह वरीयता प्राप्त नीति है। लेकिन देखने वाली बात वे तर्क हैं जो ऐसी नीतियों को अपनाने के लिए दिए जाते हैं।

मालावी जैसे देशों की दलील है कि विश्वसनीय और स्वस्थ बीज उत्पादन बढ़ाने के लिए अहम हैं। वे अधिकारपूर्वक बेहतर और भरोसेमंद कृषि की दिशा में बढ़ रहे हैं जिस पर बहुसंख्यक आबादी जीवनयापन के लिए निर्भर है। वे यह भी कहते हैं कि तकनीक बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पास है। इसे प्राप्त करने का कोई दूसरा रास्ता भी नहीं है। हालांकि यह तकनीक भी सशर्त मिलती है। सबसे जरूरी शर्त है लाभ की गारंटी।

कंपनियां अपने पेटेंट बीज के लिए सुरक्षित बाजार चाहती हैं। मालावी का नया बीज कानून संपेक्ष में यही कर रहा है।

इसी के साथ एक दूसरी बहस भी जुड़ी हुई है जो सवाल करती है कि क्या इन देशों में मौजूदा और प्राचीन बीज व्यापार का तंत्र कृषि अर्थव्यवस्था को टिकाऊ बनाने में असमर्थ है? अधिकांश विकसित और गरीब देशों में छोटे और सीमांत किसान कृषि क्षेत्र में मुख्य भूमिका निभाते हैं। यहां बीज मुख्य रूप से देसी किस्म के हैं और इनका स्थानीय व्यापार असंगठित तरीके से किया जाता है।

यह विवादित बहस 17 दिसंबर 2017 को भी हुई थी। संयुक्त राष्ट्र की आमसभा ने एक घोषणापत्र स्वीकृत किया था जो किसानों के अधिकार और ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाले अन्य लोगों से संबंधित था। इस घोषणापत्र में उन किसानों के मानवाधिकारों को मान्यता दी गई थी जिनकी “बीज संप्रभुता” अथवा सीड सावरेंटी खतरे में है। इसके पक्ष में 121 और विरोध में 8 मत पड़े थे जबकि 52 देशों ने इसमें हिस्सा ही नहीं लिया। अधिकांश विकासशील और गरीब देशों ने पक्ष में मतदान किया जबकि अधिकांश विकसित देश मतदान में शामिल नहीं हुए। अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, हंगरी, इजराइल और स्वीडन ने घोषणापत्र के विरोध में मतदान किया। आदर्श स्थिति में तो इस घोषणापत्र के बाद तमाम देशों में किसानों के हितों की रक्षा के लिए युद्धस्तर पर प्रयास होने चाहिए थे।

इस साल फरवरी में टिमोथी वाइज की किताब “ईटिंग टूमॉरो : एग्री बिजनेज, फैमिली फार्मर्स एंड द बैटल फॉर द फ्यूचर ऑफ फूड” जारी हुई थी। वाइज ने बताया है कि सरकारें संगठित कृषि का उपाय सुझा रही हैं जिसकी तकनीक और बीज पर कॉरपोरेट का नियंत्रण होगा। इसे कृषि संकट के उपाय के तौर पर पेश कर किसानों को भ्रमित किया जा रहा है। यह किताब दक्षिण अफ्रीका, मैक्सिको, भारत और यूएस मिडवेस्ट में गहन फील्डवर्क के बाद तैयार की गई है। उन्होंने छोटे खेतों को मिलाने के उपाय को खारिज कर दिया है और इसे व्यापार और छोटे किसानों के बीच ताकतवर खेल के तौर पर देखा है। उनकी किताब तर्क देती है कि छोटे किसान हमारा अधिकांश भोजन उपजाते हैं। ऐसे में उनकी समस्याओं का समाधान गंभीरता से करने की जरूरत है।

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