केरल में आई विनाशकारी बाढ़ जैसी घटनाओं को रोकने के लिए विकास से संबंधित नीतियों में जलवायु परिवर्तन को केंद्र में रखने की जरूरत है
केरल की बाढ़ के संदर्भ में बहुत से पत्रकारों ने मुझसे दो सवाल किए। पहला, क्या यह विनाश मानव निर्मित है और दूसरा, भविष्य में इस तरह के विनाश को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं? इस साल केरल में आई बाढ़ मानव निर्मित है और इसमें दो तरह के मानवीय हस्तक्षेप हैं। पहला है जलवायु परिवर्तन और दूसरा स्थानीय पर्यावरण की बर्बादी। जलवायु परिवर्तन का अतिशय बारिश में कुछ हद तक योगदान हो सकता है लेकिन स्थानीय पर्यावरण के विनाश ने इसे व्यापक बनाया, खासकर पश्चिमी घाट और अन्य दलदली क्षेत्रों जैसे संवेदनशील इलाकों में।
पिछले 100 सालों में भारत में औसत तापमान 1.1 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा है। मॉनसून के मौसम के अलावा शेष तीन मौसमों में तापमान पेरिस समझौते में तय सीमा 1.5 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया है। अब स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं कि अतिशय बारिश की घटनाएं बढ़ रही हैं। वह चाहे 2005 में मुंबई हो, 2010 में लेह हो, 2013 में उत्तराखंड हो, 2014 में जम्मू एवं कश्मीर हो, 2015 में चेन्नई हो या 2017 में सौराष्ट्र हो। केरल ने भी बहुत अधिक अप्रत्याशित बारिश को झेला है। अगस्त में यहां औसत से ढाई गुणा अधिक बारिश दर्ज की गई। महज 11 दिनों में राज्य में 25-30 ट्रिलियन लीटर पानी बरस गया। केरल का पारिस्थितिक तंत्र अपरिवर्तित रहने पर भी इतने पानी से बाढ़ आनी लाजिमी थी। हालांकि अपरिवर्तित पारिस्थितिकी बहुत दूर की बात है।
पिछले 60 सालों में केरल की पारिस्थितिकी का विनाश अभूतपूर्व है। तीन मुख्य बदलाव स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। पहला, केरल 4 लाख हेक्टेयर प्राकृतिक वनों को खो चुका है और इसके ढाई लाख हेक्टेयर के वेटलैंड कृषि, वनरोपण और आधारभूत संरचनाओं की भेंट चढ़ चुके हैं। दूसरा, पिछले 50 साल में गैर कृषि कार्यों के लिए भूमि का उपयोग दोगुना हो गया है। पिछले दस सालों में ही केरल में 70,000 हेक्टेयर भूमि आवास एवं आधारभूत संरचनाओं को दी गई है। तीसरा, चावल और साबूदाना जैसी परंपरागत फसलों की जगह रबड़ और अन्य व्यवसायिक फसलों ने ले ली है। भूमि उपयोग के इन बदलावों ने वाटरशेड को खत्म करने के अलावा वर्षा जल के बहाव को बाधित किया और भूमि के सोखने की क्षमता को कम कर दिया। इन कारकों ने बाढ़ की विभीषिका में इजाफा किया।
तो ऐसी स्थिति में विनाश को रोकने के लिए भविष्य में क्या कदम उठाए जाएं? पहला, केरल को राज्य बाढ़ आयोग गठित करना होगा ताकि अतिशय बारिश से निपटा जा सके। यह आयोग राज्य की जलीय व्यवस्था पर भूमि उपयोग के असर का मूल्यांकन करे। यह आयोग बाढ़ प्रबंधन का भी खयाल रखे। इसके साथ-साथ जिला स्तरीय उप आयोग भी गठित किए जाएं जो यह पता लगाए कि किन क्षेत्रों में सड़क, रेल, जल विद्युत, तटबंधों और अन्य आधारभूत संरचनाओं से जुड़ी परियोजनाओं ने बाढ़ को विकराल करने में भूमिका निभाई। ये उप आयोग बाढ़ को सीमित करने के सुझाव दें। केरल को गाडगिल समिति और कस्तूरीरंजन समिति पर अपनी स्थिति पर भी फिर से विचार करना चाहिए। इसके अलावा ऐसी योजनाओं पर अमल करने की जरूरत है जो वेटलैंड का बेहतर प्रबंधन और उनका पुनरोद्धार करें।
दूसरा, जलवायु परिवर्तन समुदायों और अर्थव्यवस्था का विनाश कर देगा और देश की सुरक्षा और स्थिरता पर जोखिम बढ़ाएगा। इन प्रभावों को कम करने के लिए भारत को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बनने पर काम शुरू करना होगा। लेकिन इस अनुकूलन की भी सीमाएं हैं। एक निश्चित तापमान बढ़ने के बाद हमारी पारिस्थितिकी और अर्थव्यवस्था अनुकूलन में असमर्थ है। भारत जैसे विकासशील देश वैश्विक तापमान से सबसे अधिक प्रभावित होंगे, इसलिए दूसरे देशों को साथ लेकर उत्सर्जन कम करने और बढ़े हुए तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रखने की दिशा में नेतृत्व करने का समय है। जलवायु परिवर्तन स्पष्ट और मौजूदा खतरा है। जितनी जल्दी हम इसे स्वीकार कर लेंगे, हमारे लिए उतना ही बेहतर होगा।
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