सोयाबीन अमेरिका-चीन के बीच व्यापार युद्ध का मुख्य केन्द्र बन गया है। क्या भारत इसका उत्पादन और प्रसंस्करण क्षमता बढ़ाकर लाभ ले सकता है?
विश्व की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाएं आमने-सामने हैं जिसके कारण व्यापार युद्ध की प्रबल संभावना पैदा हो गई है। 2 मार्च को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने राष्ट्रीय सुरक्षा पर लागू होने वाले व्यापार विस्तार अधिनियम की धारा 232 के तहत एल्युमीनियम और इस्पात के आयात पर भारी शुल्क लगा दिया। उन्होंने वाशिंगटन में उद्योग जगत के उपस्थित लोगों के बीच घोषणा करते हुए कहा, “यदि आप करों का भुगतान नहीं करना चाहते हैं तो अपने संयंत्र अमेरिका में लगाएं।” बिजनेस न्यूज चैनल सीएनबीसी के एंकर जिम क्रैमर ने टिप्पणी करते हुए कहा, “ट्रम्प सरकार द्वारा आयातित स्टील पर प्रतिबंध लगाया गया है जिसे रिपब्लिकन और डेमोक्रेट दोनों के द्वारा समर्थन मिलना एक दुर्लभ उदाहरण है।”
हालांकि ट्रम्प ने इस छूट की घोषणा कनाडा और मैक्सिको के लिए ही की है और कहा है कि अन्य सहयोगियों के लिए भी अपवाद तैयार किए जा सकते हैं। कई लोगों का मानना है कि इस टैरिफ- स्टील पर 25 फीसदी और एल्युमीनियम पर 10 फीसदी का वास्तविक लक्ष्य चीन है, जो पूरे विश्व का आधा स्टील का निर्माण करता है और अक्सर इसे अन्य बाजारों में खपाने का आरोप भी लगाता रहा है, जिससे कीमतों में गिरावट होती है।
वास्तव में कीमतें (टैरिफ), अमेरिकी उद्योग की रक्षा के लिए ट्रम्प द्वारा 2016 के चुनाव वादे के अनुरूप ही हैं। उन्होंने चीनी सामान पर 45 प्रतिशत तक दंडात्मक टैरिफ लागू करने का वादा किया था जिसमें एशियन दिग्गज ने अपनी मुद्रा को कम किया था और अमेरिकी कॉपीराइट कानूनों का अपमान भी किया था। उन्होंने पिछले साल अप्रैल में धारा 232 के तहत जांच शुरू कर दी थी कि स्टील और एल्युमीनियम के आयात ने राष्ट्रीय सुरक्षा हितों का उल्लंघन किया है या नहीं।
पर्यवेक्षकों का कहना है, इससे चीन के नीति-निर्माताओं को परेशानी होने लगी। दिसंबर 2017 में, उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि अमेरिका के खिलाफ अपने उद्योगों की रक्षा के लिए प्रतिशोधक प्रतिबंध लगाए जाएंगे, यदि उसे राजनीतिक रूप से नुकसान भी हो तब भी। यह बात सामने आई है कि अमेरिकी किसान जो चीन में अपने सोयाबीन का आधा हिस्सा निर्यात करते हैं, वे इस रणनीति का लक्ष्य बन गए हैं। बमुश्किल एक महीने बाद, बीजिंग ने अमेरिकी सोयाबीन की “स्वीकृति स्तर” पर सवाल उठाया और जोर देकर कहा कि अमेरिकी तेल के बीज में विदेशी सामग्री (जैसे तम्बाकू के बीज, धूल और तना) को 1 प्रतिशत तक घटाया जाना था।
इससे गुणवत्ता पहले की तरह दोगुना अच्छी हो गई। इसका प्रभाव तुरंत महसूस किया गया था। इस एक दशक में पहली बार, इस साल जनवरी में चीन से सोयाबीन का आयात 14 प्रतिशत घटकर 58 लाख टन रह गया। इस कमी को पूरा करने के लिए, ब्राजील से आयात सात गुना बढ़कर 20 लाख टन कर दिया गया। इन दोनों अर्थव्यवस्थाओं के बीच इससे तनाव बढ़ गया है। माना जा रहा है कि चीन ट्रम्प के स्टील और एल्युमीनियम कीमतों के प्रति प्रतिकार के लिए सोयाबीन पर बाधा खड़ा कर सकता है।
सोया, बढ़ता द्विभाजन
एशिया में जंगली और स्वाभाविक रूप से विकसित होने वाले सोयाबीन, जापान और चीन में विशिष्ट तरीके से उगाया और खाया जाता है। इस पौधे को पूरे प्रोटीन का विकल्प माना जाता है और इसमें मांस, दूध और अंडों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए अमीनो एसिड की पूरी श्रृंखला भी होती है। हालांकि, 1960 के दशक के मध्य में सोया सॉस की शुरुआत के बाद से ही यह पश्चिम देशों में लोकप्रिय हो गया। पचास साल बाद, वैश्विक स्तर पर इसका उत्पादन 10 गुना बढ़कर 30 करोड़ टन से भी ज्यादा हो गया है। आज दुनिया भर में प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ में लगभग 60 प्रतिशत सोयाबीन किसी न किसी रूप में पाया जाता है।
यह नाश्ते के खाद्य पदार्थ में, ऊर्जा वाले पदार्थों तथा बिस्किट, पनीर और पनीर से संबंधित खाद्य में, केक और पेस्ट्रीज में, नूडल और मोमोज और सभी सॉस में होता है ताकि खाने में प्रोटीन की मात्रा को बढ़ाया जा सके। किण्वित सोयाबीन से बना एक पारंपरिक जापानी नाश्ता-नाटो, इंडोनेशिया में मूल रूप से विकसित होने वाला-टेम्प और सुदूर पूर्वी देशों में खाया जाने वाला सोयाबीन दही-टोफू पूरे विश्व में धाक जमा चुका है। इसके अलावा, सोयाबीन सलामी, सॉसेज, कबाब और सभी संसाधित मांस और मछली उत्पादों में मजबूती देने और कम कीमत पर प्रोटीन की मात्रा बढ़ाने के लिए भी प्रयोग किया जाता है।
पूरे विश्व के करीब दो-तिहाई सोयाबीन का उत्पादन अकेले अमेरिका करता है, जहां अमेरिका में करीब 11 करोड़ मीट्रिक टन का उत्पादन होता है, उसके बाद ब्राजील जो 8.6 करोड़ मीट्रिक टन तथा तीसरे नंबर पर 5.3 करोड़ मीट्रिक टन के साथ अर्जेन्टीना है। सोयाबीन के उत्पादन में क्रमश: 122 लाख मीट्रिक टन तथा 103 लाख मीट्रिक टन के साथ चीन और भारत चौथे और पांचवे स्थान पर आते हैं। जबकि पूरे विश्व का दो-तिहाई सोयाबीन एशिया में ही खाया जाता है और चीन इसका सबसे बड़ा खपत करने वाला देश है।
आज के समय में बाजार की सबसे बड़ी सच्चाई यही है कि चीन खुद को विश्व की सबसे बड़ी प्रक्रिया खाद्य निर्यातक के रूप में स्थापित कर रहा है। आज, उसे सोयाबीन की फसल के उत्पादन में कोई दिलचस्पी नहीं है लेकिन इकोनॉमी में इसका महत्व बहुत बढ़ गया है क्योंकि इसमें लाभ बहुत ज्यादा है और यह सभी खाद्य पदार्थों के साथ आसानी से मिल जाता है।
प्रसंस्कृत खाद्य बाजार इसका दूसरा बड़ा लाभ का क्षेत्र बन गया है। अमेरिका के विपरीत चीन जीएम फसल को विकसित करने के लिए अनिच्छुक है क्योंकि इसमें उच्च रखरखाव की आवश्यकता होती है। प्रसंस्करण के लिए चीन अमेरिका से जीएम सोयाबीन का आयात कर सकता है। तेजी से बढ़ता हुआ सोया उत्पाद उद्योग चीन को कम कीमत पर अपनी आबादी को खिलाने के लिए प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों मिल जाता है और साथ ही प्रसंस्कृत खाद्य निर्यात बाजार को भी नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
भारत के पास मौका
केन्द्रीय कृषि विज्ञान संस्थान (सीआईएई), भोपाल के प्रमुख वैज्ञानिक पुनीत चंद्र कहते हैं, “भारतीय कृषि के लिए सोयाबीन एक वरदान साबित हो सकता है।” सबसे पहला, भारत जीएम मुक्त सोयाबीन का उत्पादन करता है जिसका विश्व बाजार में काफी महत्व है। दूसरा, धान की फसल की तुलना में सोयाबीन के उत्पादन में पानी की भी कम जरूरत होती है। पूरे भारत का करीब 90 प्रतिशत फसल का उत्पादन सिर्फ मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में ही होता है। देश की बड़ी शाकाहारी आबादी को देखते हुए, सोयाबीन की घरेलू बाजार में भी काफी संभावनाएं हैं।
पुनीत चंद्र कहते हैं, “यद्यपि ग्लूटेन-मुक्त पौष्टिक भोजन के रूप में सोयाबीन की क्षमता अधिक है, जबकि भारत में यह फसल मुख्य रूप से तेल उद्योग की जरूरतों को पूरा करती है।” सोयाबीन से तेल निकाले जाने के बाद उसके छिलके का इस्तेमाल डली बनाने के लिए ही मुख्यत: किया जाता है। देश में सिर्फ एक तिहाई सोयाबीन को दूध और टोफू में प्रसंस्कृत किया जाता है। यह दुर्भाग्य है कि संगठित सोया प्रसंस्करण के क्षेत्र में सिर्फ एक ही भारतीय निर्माता है।
पुनीत चंद्र कहते हैं, “मूल रूप से समस्या उद्यमियों के बीच जानकारियों की कमी और उद्योग को विकसित करने के लिए कोई भी सरकारी नीति नहीं होने की ही है।” हालांकि सीआईएई ने पिछले दशक में सोया खाद्य प्रसंस्करण में 2,500 से 3,000 उद्यमियों को प्रशिक्षित किया है, फिर भी चंद्र कहते हैं कि रूपांतरण दर खराब ही है। वह जोर देते हुए कहते हैं, “करीब 200 छोटे लघु उद्योग हैं जिनमें से ज्यादातर पंजाब में ही स्थित हैं। जबकि राज्य में सोयाबीन की खेती भी नहीं होती है, यहां पनीर और टोफू काफी लोकप्रिय हैं।”
अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध सोयाबीन को केन्द्र में रखकर बढ़ सकता है। यह भारत के लिए कदम उठाने का एक सुनहरा अवसर है और उत्पादन के साथ-साथ बुनियादी ढांचा प्रसंस्करण में भी सुधार का एक मौका है। सरकार को अपनी यूरिया नीति पर फिर से विचार करना चाहिए क्योंकि सोयाबीन को अन्य दालों की तरह मिट्टी में बेहतर सल्फर सामग्री की आवश्यकता है लेकिन नीति इसकी इजाजत नहीं देती।
We are a voice to you; you have been a support to us. Together we build journalism that is independent, credible and fearless. You can further help us by making a donation. This will mean a lot for our ability to bring you news, perspectives and analysis from the ground so that we can make change together.
Comments are moderated and will be published only after the site moderator’s approval. Please use a genuine email ID and provide your name. Selected comments may also be used in the ‘Letters’ section of the Down To Earth print edition.