क्लाइमेट इंपेक्ट लैब द्वारा टाटा सेंटर फॉर डेवलपमेंट के साथ किए गए अध्ययन में जलवायु परिवर्तन की वजह से भारत पर पड़ने वाले प्रभावों का खुलासा किया गया है
जलवायु परिवर्तन के कारण साल 2100 में भारत में तापमान इस कदर बढ़ जाएगा कि हर साल लगभग 15 लाख लोगों की मौत हो सकती है। मरने वालों की इस संख्या की यदि तुलना करें तो यह संख्या वर्तमान में भारत में सभी संक्रामक बीमारियों से होने वाली मौतों की तुलना में अधिक बैठती है।
भारत में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के कारण 2100 तक भारत के औसत सालाना तापमान में 4 डिग्री सेंटीग्रेड की बढ़ोतरी संभव है। यानी सालभर में 35 डिग्री सेंटीग्रेड से अधिक तापमान वाले बेहद गर्म दिनों की औसत संख्या 5.1 (2010) से आठ गुना बढ़कर 42.8 डिग्री तक पहुंच जाएगी।
यह बात गुरुवार 31 अक्टूबर को दिल्ली के यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो सेंटर में आयोजित कार्यक्रम में क्लाइमेट इम्पैक्ट लैब द्वारा टाटा सेंटर फार डेवलपमेन्ट के सहयोग से किए गए अध्ययन में पाया गया है। इसमें जलवायु परिवर्तन एवं मौसम में बदलावों के मानव व अर्थव्यवस्था पर हुए प्रभावों का विस्तृत अध्ययन किया गया।
गर्म दिनों की बढ़ती संख्या के साथ अनुमान है कि 36 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में से 16 राज्य पंजाब से अधिक गर्म होंगे, जो वर्तमान में भारत का सबसे गर्म राज्य है, जिसका औसत सालाना तापमान ठीक 32 डिग्रीसेंटीग्रेड से नीचे है (2010)। पंजाब 2100 में भारत का सबसे गर्म राज्य बना रहेगा, जिसका औसत सालाना तापमानत करीबन 36 डिग्री सेंटीग्रेड होगा। हालांकि उड़ीसा इस सूची में शीर्ष पायदान पर रहेगा, जहां बेहद गर्म दिनों की संख्या में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी होगी।
2010 में यह संख्या 1.62 थी, जिसके 2100 तक 48.05 तक पहुंचने का अनुमान लगाया गया है। इसके अलावा हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली में बेहद गर्म दिनों की संख्या में बहुत अधिक बढ़ोतरी की बात कही गई है। 2100 तक गर्म दिनों की संख्या दिल्ली में 22 गुना (तीन से 67), हरियाणा में 20 गुना, पंजाब में 17 गुना और राजस्थान में सात गुना बढ़ने की संभावना जताई गई है। अध्ययन के अनुसार गर्मियों के बढ़ते औसत तापमान और बेहद गर्म दिनों की बढ़ती संख्या का असर मृत्युदर पर पड़ता है। एक अनुमान के मुताबिक छह राज्यों, उत्तरप्रदेश (402, 280), बिहार (136,372), राजस्थान (121,809), आन्ध्रप्रदेश (116,920), मध्यप्रदेश (108,370) और महाराष्ट्र (106,749) में जलवायु परिवर्तन की वजह से तापमान में बढ़ोतरी के कारण कुल अतिरिक्त मौतों में 64 फीसदी का योगदान दे रहे हैं, जो हर साल कुल 15 लाख मौतों से अधिक है।
रिपोर्ट के परिणामों पर बात करते हुए गजेन्द्र सिंह शेखावत, केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री ने कहा, जलवायु परिवर्तन हम पर निर्भर करता है। इसका असर हम मानसून में बदलाव, सूखा, गर्म लहरों के रूपमें देख रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण हम कई समस्याओं से जूझ रहे हैं, जिसमें पानी का संकट एक बड़ी समस्या है। इन नई चुनौतियों को देखते हुए सरकार बहुआयामी दृष्टिकोण अपना रही है। हम पारम्परिक जल निकायों के संरक्षण का आह्वान कर रहे हैं, ऐसी फसलों को प्रोत्साहन दे रहे हैं, जिनमेंपानी की कम मात्रा का उपयोग होता है। साथ ही हम भूमिगत जल प्रबंधन को बढ़ावा दे रहे हैं। इन सब प्रयासों से भारत को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से सुरक्षित बनाया जा सकता है।
टाटा सेंटर फार डेवलपमेन्ट के फैकल्टी डायरेक्टर माइकल ग्रीन स्टोन ने कहा, इन परिणामों से साफ है कि दुनिया भर में जीवाश्म ईंधन पर बढ़ती निर्भरता का बुरा असर आने वाले समय में भारतीयों पर पड़ेगा। हम आधुनिकीकरण की नीतियों पर ध्यान दे रहे हैं। विश्वस्तरीय उर्जा संकट को देखते हुए ज़रूरी है कि देश उर्जा के सस्ते और भरोसे मंद स्रोतों की आवश्यकता को संतुलित बनाए, जो विकास के लिए ज़रूरी हैं। साथ ही जलवायु एवं वायु प्रदूषण के जोखिम का प्रबंधन भी बेहद अनिवार्य है।
वहीं, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सदस्य कमल किशोर कहते हैं, ये परिणाम हमें याद दिलाते है कि हम बढ़ते तापमान को नियंत्रित को रखने के लिए समेकित एवं दीर्घकालिक प्रयास करें। 2016 से जब हमने पहली बार उष्मा तरंग के निर्देशों का प्रकाशन किया, एनडीएमए स्थानीय स्तर पर उष्मा तंरगों से निपटने के लिए चेतावती के संकेतों में सुधार लाने के लिए काम कर रहा है।
हम बढ़ते तापमान की समस्या से निपटने के लिए देश के सभी उष्मा संभावी राज्यों के साथ काम कर रहे हैं। क्लाइमेट इम्पैक्ट लैब की सदस्य आमिर जीना ने कहा, 2015 में तापमान बढ़ने के कारण 2500 मौतें दर्ज किए जाने के बाद भारत और दुनिया का भविष्य और भी चिंताजनक दिखाई देता है।ऐसे में जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों के उन्मूलन पर काम करना जरूरी है।
We are a voice to you; you have been a support to us. Together we build journalism that is independent, credible and fearless. You can further help us by making a donation. This will mean a lot for our ability to bring you news, perspectives and analysis from the ground so that we can make change together.
Comments are moderated and will be published only after the site moderator’s approval. Please use a genuine email ID and provide your name. Selected comments may also be used in the ‘Letters’ section of the Down To Earth print edition.