Science & Technology

डीएनए ने उलझाए अतीत के रहस्य

डीएनए ने अतीत की अनिश्चितता को और उलझा दिया है, अतः इतिहासकारों, पुरातत्ववेत्ताओं और आनुवांशिकी विज्ञाानियों को मिलकर यह पता लगाना होगा कि क्या हमें इतिहास के प्रति अपनी परंपरागत सोच में थोड़ी नरमी लानी चाहिए

 
By Rakesh Kalshian
Published: Thursday 03 October 2019
तारिक अजीज / सीएसई

आप कहां से आए हैं? यह जिज्ञासा लगभग सभी लोगों में होती है, चाहे वे कहीं भी रहते हों। यह जिज्ञासा अपनी जड़ों के प्रति हमारे आकर्षण को दर्शाती है। हमारे विश्वास क्या हैं, हम कहां से हैं अथवा हम कौन हैं? यह तस्वीरों, डायरी और पत्रों, जन्म प्रमाण पत्र और ब्लड ग्रुप की तरह हमारे परिवार की यादों का झुरमुट है और जाहिर तौर पर यादें आने वाली पीढ़ी के जीवन का हिस्सा बन जाती हैं।

इसके बावजूद, यदि हम अपने पूर्वजों के बारे में अपनी जानकारी को टटोलते हैं तो हमारी सारी यादें हमारे दादा-दादी या नाना-नानी तक जाकर रुक जाती हैं। आप में से कितने लोग अपने दादा-दादी या नाना-नानी के पूर्वजों के बारे में जानते हैं? यदि कोई व्यक्ति किसी और देश में बस गया है अथवा उसे गोद लिया गया है अथवा वह सेरोगेट मां की संतान हैं अथवा यदि किसी व्यक्ति के माता-पिता अलग-अलग समुदायों, जातियों, धर्मों अथवा राष्ट्रीयता के हैं, तो यह स्थिति और भी अस्पष्ट हो जाती है।    

एक व्यक्ति की वंशावली मटिरोस्का गुड़िया की तरह है जो अतीत के जीवित अवशेषों की व्यक्तिपरक व्याख्या के जरिए प्रत्येक गुड़िया की कहानी के भीतर जटिलता की एक और कहानी बयान करती है। यदि सबसे छोटी गुड़िया को एक व्यक्ति की कहानी माना जाए जो अपनी तीन पीढ़ियों की कहानी जानना चाहता है, तो इसके चारों तरफ सबसे जो बड़ी गुड़िया है वह उसे अपने कबीले या समुदाय, धर्म अथवा साम्राज्य या राष्ट्र तथा अंततः दुनिया के बारे में शानदार और अक्सर मनगढ़ंत कहानियां सुनाती हैं।

हाल के वर्षों में डीएनए ने अतीत की जटिल कहानियों में और भी पेंच डाल दिए हैं। डीएनए के जरिए इतिहास को दो तरह से पढ़ा जा सकता है। पहला, इसे पुराने अवशेषों से निकालो, इनका पुनर्निर्माण करो और यह देखो कि यह जिंदा लोगों से मिलता है कि नहीं। दूसरा, दो या दो से अधिक लोगों अथवा जनसमूहों के डीएनए की तुलना करो और देखो कि क्या उनके पूर्वज एक ही थे। ऐसा करना इसलिए संभव है क्योंकि 300 करोड़ अक्षर लंबी आनुवांशिकी वर्णमाला के प्रत्येक 1000 अक्षरों में सभी व्यक्तियों के लिए केवल एक गलती होती है। ऐसी गलतियों (जो लाखों में हैं) को आप अन्य व्यक्तियों के साथ जितना ज्यादा बांटते हैं उतना ही ज्यादा आप उनसे जुड़ते हैं।

आनुवांशिक इतिहास, जैसा कि कुछ लोग इसे कहते हैं, के अलग और कठिन होने का करण यह है कि इतिहासकारों और पुरातत्ववेत्ताओं द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे वैज्ञानिक तरीकों जैसे कार्बन डेटिंग अथवा रिमोट सेंसिंग से अलग डीएनए संकेतों को पहचान बनाने वाले के रूप में देखा जाता है। यह इतिहास का अधिक विश्वसनीय प्रमाण माना जा रहा है जो हमारे अतीत, व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों के बारे में साहसिक दावे कर रहा है जिनमें से कुछ उससे बिल्कुल अलग हैं जो हम काफी लंबे अरसे से सोचते आए हैं। इसलिए इसकी लोकप्रियता काफी ज्यादा है। आपने मीडिया में ब्रिटेन ब्रिटिशों की सोच से ज्यादा जर्मन है, यूरोपीय वास्तव में एशियाई हैं, जैसी सुर्खियां देखी होंगी।

पुरातन डीएनए अनुसंधान में अग्रणी और डीएनए के जरिए पूर्वजों का पता लगाने वाली कंपनी ऑक्सफोर्ड एनसेस्टर्स के संस्थापक ब्रिटेन के आनुवांशिकी विज्ञानी ब्रायन साइक्स ने अपनी चर्चित पुस्तक सेवन डॉटर्स ऑफ ईव में लिखा है, “डीएनए में न केवल एक व्यक्ति के रूप में हमारा इतिहास लिखा है बल्कि पूरी मानव जाति का इतिहास इसमें है। हमारा डीएनए चमड़े के पुराने कागज की तरह खराब नहीं होता, पुरानी पड़ी तलवार की तरह इसमें जंग नहीं लगता। यह हवा या बारिश से नष्ट नहीं होता न ही आग या भूकंप से बर्बाद होता है।”  
   
1990 के दशक की शुरुआत में अमेरिका के आनुवांशिकी विज्ञानी लिगी लुका केवेली-सफोर्जा ने मानव जीनोम विविधता परियोजना तैयार की जो दुनियाभर से डीएनए एकत्र करके मानव और भाषा की उत्पत्ति का पुनर्निर्माण करने की महत्वकांक्षी कोशिश थी। हालांकि, यह परियोजना बंद कर दी गई क्योंकि लोगों को लगा कि दवा निर्माता कंपनियां अपने मुनाफे के लिए उनके डीएनए का इस्तेमाल कर सकती हैं और यहां तक कि उनके जीन्स का पेटेंट भी करा सकती हैं। नेशनल ज्योग्राफिक ने भी 2005 में ज्योग्राफिक प्रोजेक्ट नाम से ऐसा ही कार्यक्रम शुरू किया था लेकिन उसने सूझबूझ का परिचय देते हुए आनुवांशिकी संबंधी सारी सामग्री पर से अपने अधिकार छोड़ दिए। यहां तक कि उसने खून के नमूने की जगह पर माउथवॉश के जरिए डीएनए जांच की पद्धति अपनाई क्योंकि कई लोगों को खून के नमूने देने पर संदेह था। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि इसके बाद पांच लाख लोग इसके साथ जुड़े।

डीएनए ने उत्सुकतापूर्ण और जटिल तरीकों से पहचान की नीति की रूपरेखा बदल दी है। समाजशास्त्री वेंडी रोथ द्वारा ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय में किए गए एक प्रयोग में, यहूदी अतीत वाली एक महिला को यहूदियों के पूजा स्थल पर बुलाया गया किन्तु इस धर्म के प्रति कोई आकर्षण महसूस नहीं हुआ। कुछ लोगों को पता चला कि वे अमेरिकी मूल के हैं किन्तु वे इस बात को लेकर असमंजस में दिखे कि उन्हें वह सरकारी सहायता प्राप्त करनी चाहिए अथवा नहीं जो आपकी पहचान के साथ जुड़ी हैं।


डीएनए सीधे सपाट तरीके से व्यक्ति के जीवन को नए रूप में उजागर कर सकता है। उदाहरण के लिए, जब इसने थॉमस जेफरसन के बारे में यह खुलासा किया था कि अश्वेत गुलाम से उनके कई बच्चे थे। अथवा जब हॉलिवुड अभिनेता बेन एफलेक ने अपने बारे में यह बात छुपाने की कोशिश की कि उनके कुछ पूर्वज गुलामों के मालिक थे। भारत में अब भी आमतौर पर पूर्वजों का पता नहीं लगाया जाता। संभवतः यह इस कारण से कि यह जांच अब भी काफी महंगी (लगभग 15,000 रुपए) अथवा संभवतः भारतीय जाति, समुदाय और धर्म की अपनी पहचान से इतना जुड़े हुए हैं कि वे अपने अतीत के बारे में जानना ही नहीं चाहते। जरा सोचिए एक ब्राह्मण को पता चले कि उसकी जड़ें दलित जाति से जुड़ी हैं तो क्या होगा।

बहरहाल, आनुवांशिकी विज्ञानी पूर्व इतिहास का पता लगाने के लिए इसी तरीके का इस्तेमाल कर रहे हैं। वे नेशनल ज्योग्राफिक जैसी कंपनियों के वैश्विक डीएनए कोष का इस्तेमाल करके इतिहास का पता लगा रहे हैं- उदाहरण के लिए, जैसा कि अब हम जानते हैं कि हमारी प्रजाति कोई बहुत उच्च कोटि की नहीं है क्योंकि हमारे पूर्वजों ने यूरोप में नेंडरथल, सर्बिया में डेनिसोवन्स और इंडोनेशिया में हॉबिट्स के साथ संबंध बनाए थे, अथवा हम यह भी जानते हैं कि ऑस्ट्रेलिया के आदिवासियों के दक्षिण भारतीय जनजातियों के साथ संबंध होने के संकेत मिले हैं। इससे पता चलता है कि अफ्रीका के मानवों ने ऑस्ट्रेलिया पहुंचने के लिए तटीय मार्ग अपनाया था। किन्तु अब यह प्राचीन और मध्यकालीन इतिहास पर भी प्रकाश डाल रहा है- उदाहरण के लिए, यह पता लगा रहा है कि आधुनिक ब्रिटेनवासी जर्मन जनजातियों के वंशज तो नहीं हैं।

यह पता लगाना इतिहासकारों और पुरातत्ववेत्ताओं का काम है जो क्रमशः लिखित रिकॉर्डों और ठोस स्रोतों के आधार पर इतिहास का यथासंभव पुनर्निर्माण करते हैं। इसमें समस्या यह है कि हम जितना पीछे जाते हैं, साक्ष्य उतने की कम और धुंधले होते जाते हैं जिससे यह पता लगाना कठिन हो जाता है कि वास्तव में उस समय क्या हुआ होगा। समस्या न सिर्फ प्रजाति के विकास के संबंध में है बल्कि धर्म, राष्ट्र और राजनीतिक विचारधारा से संबंधित पूर्वाग्रहों के बारे में भी है।

आनुवांशिकी इतिहासकार इस पहेली के अनसुलझी, बिखरी और टूटी हुई कडि़यों को जोड़ने में कामयाब हुए हैं। इस बात को सदियों से चले आ रहे इस विवाद से बेहतर और किसी तरह से नहीं समझाया जा सकता कि संस्कृत बोलने वाले प्राचीन भारतीय यहां के मूल निवासी थे अथवा मध्य एशिया से यहां आए थे।

इतिहास के साक्षी के तौर पर डीएनए ने इस बहस को और भी जटिल बना दिया है। हाल तक माइटाकान्ड्रीयल डीएनए, जो मां से बेटी को मिलता है, संबंधी अध्ययनों से भारतीयों में विदेशी जीन्स के कुछ अंश मिले हैं। हालांकि, पिछले कुछ समय के दौरान वाई क्रोमोसोम (वाई-डीएनए, जो पिता से पुत्र को मिलता है) संबंधी अध्ययनों में दक्षिण एशिया, यूरोप और मध्य एशिया के जीन्स के अंश मिले हैं जो प्रवासी आर्यन के विचार को पुष्ट करते हैं।

स्वाभाविक रूप से, हिन्दू राष्ट्रवादियों ने वाई-डीएनए अध्ययनों का विरोध किया है जबकि कुछ अनुसंधानकर्ताओं का मानना है कि अध्ययन के नमूनों में भारतीयों की आनुवांशिक विविधता को शामिल नहीं किया गया है। जबकि आनुवांशिकी विज्ञानियों में भी इतिहास के इस रहस्य के संबंध में मतभेद है, इतिहासकार इस बारे में खामोश हैं। इस तथ्य के अलावा कि वे न तो इसे समझ सकते हैं और न ही इसकी जांच करते हैं। वे डीएनए द्वारा प्रमाणित इन नए तथ्यों की आलोचना करते हैं। जैसा कि प्रिंसटन के इतिहासकार निकोला डी कोस्मो का प्रश्न है, यदि प्राचीन जनसंख्या या विजय और प्रवास जैसी घटनाओं अथवा कालक्रम की जानकारी देने वाला ज्ञान अवास्तविक या गलत हो तो क्या डीएनए परीक्षणों से प्राप्त वैज्ञानिक नतीजे उपयोगी होंगे?


इससे पता चलता है कि इतिहास के बारे में आनुवांशिकी कार्यक्रमों की वृद्धि के साथ-साथ यदि हमें अपने अतीत की अधिक स्पष्ट और विस्तृत जानकारी चाहिए तो इतिहासकारों, पुरातत्ववेत्ताओं और आनुवांशिकी विज्ञानियों को मिलकर काम करना होगा। जैसा कि प्रिंसटन विश्वविद्यालय के इतिहासकार कीथ वैलू आनुवांशिकी और अस्पष्ट इतिहास के बारे में कहते हैं, मैं कौन हूं, इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए हम जो भी आंकड़े तैयार करते हैं, हम उत्पत्ति के कई चरणों के साथ जुड़ जाते हैं। डीएनए, जाति और इतिहास का संयोजन न केवल हमारे अस्पष्ट अतीत का पुनर्निर्माण करने के लिए है बल्कि अपने बिखरे हुए वर्तमान को संवारने और हमारी भावी सोच को रूप देने के लिए भी जरूरी है।

(इस कॉलम में विज्ञान और पर्यावरण की आधुनिक गुत्थियों को सुलझाने का प्रयास है)

Subscribe to Daily Newsletter :

Comments are moderated and will be published only after the site moderator’s approval. Please use a genuine email ID and provide your name. Selected comments may also be used in the ‘Letters’ section of the Down To Earth print edition.