जम्मू-कश्मीर के सांबा जिले में रिकॉर्ड 94 फीसदी कम वर्षा इस बार 24 जुलाई तक दर्ज की गई है। सांबा की मुख्य फसल बासमती धान है, जिसकी रोपाई अभी तक शुरू नही हो पाई है।
जम्मू-कश्मीर के सांबा जिले में खडरगल गांव के निवासी रामतीरथ कभी बादलों की तरफ ताकते हैं तो कभी अपने खेतों की पथराई मिट्टी की तरफ। उनके यहां तक पहुंचने वाली नहर में पानी भी नहीं है और उन्हें आसमान से भी अब ज्यादा उम्मीद बची नहीं है। जून का पूरा महीना सूखा चला गया। पूरी जुलाई खत्म होने को है। उन्हें मौसम विभाग के आधिकारिक आंकड़े की जानकारी नहीं है लेकिन वे सूखे की मार को महसूस कर रहे हैं। मौसम विभाग के मुताबिक 24 जुलाई तक पूरे देश में सबसे कम वर्षा वाला स्थान सांबा जिला रहा। यहां इस बार 94 फीसदी कम बारिश हुई है।
24 जुलाई की रात और 25 जुलाई को सांबा जिले के कुछ ही हिस्सों में थोड़ी बहुत बूंदा-बांदी हुई है। खेतों में पानी रुका नहीं है। पशुओं का चारा थोड़ा बहुत भीग गया। पानी की कमी के चलते धान की रोपाई में पूरे 15 दिन देरी हो चुकी है। अब इसका असर पैदावार पर दिखेगा। किसान लागत बढ़ने और पैदावार को लेकर चिंतित हैं। खडरगल गांव के संबंधित ब्लॉक में किसानों की ओर से पानी की कमी को लेकर शिकायते दर्ज हैं लेकिन 20-25 किलोमीटर दूर बैठे जिला प्रशासन के अधिकारियों का कहना है कि बारिश में देरी अब पुरानी बात है, अभी सबकुछ ठीक है। इस वर्ष देश में सबसे कम वर्षा जल हासिल करने वाले सांबा जिले की मुख्य फसल धान और गेहूं ही है।
जब किसान रामतीरथ से डाउन टू अर्थ ने पूछा कि पानी की कमी को लेकर ब्लॉक में आपकी ओर से की गई शिकायत पर अब तक कोई कदम उठाया गया? वे कहते हैं कि ये खेती-किसानी ज्यादा दिन की बची नहीं है। उनके पास एक एकड़ की खेती है और सिर्फ उनकी ही नहीं, आस-पास में भी खेती धीरे-धीरे घटती जा रही है। पिछली बार धान की फसल पकने को थी, नवंबर-दिसंबर का महीना था। तेज तूफान आया और आधे से ज्यादा फसल खराब हो गई। हमने फसल बीमा भी कराया है, जब नुकसान की भरपाई के लिए बैंक के पास गए तो कहा गया कि बीमा कंपनी फेल हो गई है। यह सब सुविधाएं किसके लिए हैं? किसान सिर्फ ठगा जा रहा है। नहर की सफाई कभी होती नहीं, हफ्ते में तीन दिन पानी आता है। 25 किलोमीटर की लंबी नहर में सिर्फ घरेलू सीवेज की निकासी की जा रही है। यह पानी किसानों के किस इस्तेमाल का है। इसके बावजूद किसान नहर के पानी को लेकर आपस में लड़ाईयां लड़ते हैं। धान की खेती के लिए खेत में कम से कम एक इंच पानी दो महीने तक तो भरा ही रहना चाहिए।
सांबा जिला रेलवे स्टेशन से दो किलोमीटर दूर रेइंया गांव है। यहां किसान सुनील कुमार है। वे डाउन टू अर्थ को बताते हैं कि खडरगल ऊपरी हिस्से पर है जबकि उनका इलाका निचला हिस्सा है। उनके यहां सिंचाई की व्यवस्था के लिए रावी और ऊज नदी से जुड़ी हुई नहर है। हालांकि, इस नहर में भी बीयर फैक्ट्री का औद्योगिक अपशिष्ट गिराया जा रहा है। वे बताते हैं कि निचले हिस्से में ज्यादातर तालाब सूखे हैं, पानी उनमें रुकता नहीं। ज्यादातर लोग बोरवेल से ही सिंचाई का काम चलाते हैं। पहले बारिश जून में भी होती थी लेकिन इस बार बिल्कुल नहीं हुई। इसके अलावा अभी काफी देर से बारिश शुरु हुई जिससे धान की रोपाई पिछड़ गई है। इसका काफी नुकसान होगा।
सांबा के किसानों ने जानकारी दी कि उनके यहां कमो नाम की बासमती काफी मशहूर है। यह अपनी खूशबू के कारण पहचानी जाती है। पहले इसकी जगह पाकिस्तान के एक धान की किस्म की रोपाई की जाती थी। अब सिर्फ कमो को ही तरजीह दी जाती है। इसके अलावा धान की किस्म 1121 और सरबती धान की भी पैदावार होती है। यह काफी लंबी होती हैं ऐसे में तूफान के समय इनका नुकसान हो रहा है। बीते कुछ वर्षों से न सिर्फ वर्षा देरी से हो रही है बल्कि तापमान में भी काफी फर्क पड़ा है। इससे जाड़े के वक्त एक महीने में तैयार होने वाली मशरूम भी सही से नहीं हो रही है।
सांबा जिले के कृषि अधिकारी विजय उपाध्याय ने बताया कि 24 जुलाई से वर्षा शुरु हुई है। यदि वर्षा में और देरी हुई तो नुकसान हो सकता था लेकिन अभी वर्षा होने से स्थिति नियंत्रण में है। इस वक्त मक्का की फसल को नुकसान हो सकता था। यहां मुख्य रूप से ऊपरी हिस्से में मक्का और बाजरा और निचले हिस्से में धान व गेहूं प्रमुखता से उगाई जाती है। उन्होंने किसानों से इतर बताया कि यहां धान की बासमती किस्म 370 को लगाया जाता है इसकी रोपाई भी 15 जुलाई के बाद होती है। हालांकि, किसानों ने इस धान किस्म को छोड़कर अन्य धान किस्मों की जानकारी डाउन टू अर्थ को दी थी।
वर्षा में कमी के आंकड़े पर वह कहते हैं कि बारिश में लगातार देरी हो रही है। बीते वर्ष भी देरी हुई थी, हालांकि बाद में काफी बारिश हो गई। उन्होंने कहा कि सीजन काफी देर से शुरु हो रहे हैं और वे देर तक रुकते हैं। यह बदलाव दिख रहा है। उन्होंने बताया कि सांबा जिले में 382 गांव हैं और करीब 15 हजार हेक्टेयर भूमि पर खेती की जाती है। यदि औसत पैदावार की बात करें तो धान 30 कुंतल, मक्का 20-23 और गेहूं 21 से 23 कुंतल प्रति हेक्टेयर पैदा होता है। 94 फीसदी कम वर्षा के बावजूद उन्होंने किसानों की तकलीफ और पानी की कमी को समस्या नहीं माना।
यदि सांबा में भू-जल उपलब्धता की बात की जाए तो जिस तरह से वर्षा में देरी और कमी हो रही है उससे भू-जल की उपलब्धता पर संकट पैदा हो सकता है। केंद्रीय भू-जल प्राधिकरण की ग्राउंड वाटर ईयर बुक 2016-17 को देखा जाए तो 36 निगरानी वाले कुओं में 19 यानी 52.78 फीसदी ऐसे कुएं हैं जिनमें जल की उपलब्धता 2 से 5 मीटर पर हैं। वर्षा की देरी या कमी से 52.78 फीसदी ऐसे कुओं में जल की उपलब्धता गिरकर 5 से 10 मीटर की श्रेणी में पहुंच सकती है। वहीं, ईयरबुक के मुताबिक दस वर्षों में सांबा का भू-जल अधिकतम 3.10 मीटर गिरा है। जबकि मेट्रो शहर में भू-जल की गिरावट की दर प्रतिवर्ष एक मीटर तक पहुंच चुकी है। हालांकि, सांबा जिला मुख्यालय के बाहरी इलाकों में खडरगल जैसे गांव इंडस्ट्री की संख्या बढ़ने से प्रदूषण जैसी समस्याओं से दो-चार होने लगे हैं। खासतौर से बीयर की फैक्ट्री आदि भू-जल की उपलब्धता पर असर डाल सकती हैं।
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