सेंटर फॉर एग्रीकल्चर एंड बायोसाइंस इंटरनेशनल (सीएबीआई) के वैज्ञानिकों ने ऐसे कीटों की पहचान की है, जो गेहूं की फसलों पर लगने वाले कीट एफिड्स का शिकार करते हैं।
सेंटर फॉर एग्रीकल्चर एंड बायोसाइंस इंटरनेशनल (सीएबीआई) के वैज्ञानिकों ने ऐसे कीटों की पहचान की है, जो गेहूं की फसलों पर लगने वाले कीट एफिड्स का शिकार करते हैं। इन कीटों को सिरिफिड मक्खी कहा जाता है, जो एफिड्स को मार कर खा जाती हैं। एफिड्स की वजह से पाकिस्तान, भारत, बांग्लादेश में गेहूं की फसल को भारी नुकसान पहुंचता है। दावा किया गया है कि नए अध्ययन से कीट प्रबंधन में आसानी होगी और इस नुकसान से बचा जा सकता है।हालांकि इसमें समय और मौसम पर भी निर्भर करता है।
एफिड्स का वैज्ञानिक नाम दिउराफिस नोक्सिआ है। एफिड्स के गंभीर संक्रमण के कारण पत्तियों और टहनी और पौधे का विकास रुक सकता है। एफ़िड्स एक पौधे से दूसरे पौधों तक लगातार वायरस फैला सकते हैं।
डॉ. मुहम्मद फहीम के नेतृत्व में पंजाब (पाकिस्तान) के पांच जिलों के दस खेतों में दो साल तक अध्ययन किया गया। अध्ययन का उद्देश्य अलग-अलग समय, मौसम, जगह और एफिड्स की उपस्थिति और उन्हें खाने वाले कीड़ों के बीच संबंधों की खोज करना था, विशेष रूप से सिरिफिड मक्खियां जो एफिड्स को खा जाती है। इसलिए जानबूझकर अलग-अलग खेती के परिदृश्यों का चयन किया गया, जिसमें चावल और कपास की फसल को भी शामिल किया गया।
गेहूं एफिड्स, गेहूं की फसल को नुकसान पहुंचाने वाला जाना पहचाना कीट है, जिससे गेहूं की पैदावार में 20 से 80 फीसदी तक की हानि होती है, विशेष रूप से पाकिस्तान में जहां 2017-18 में 26.3 मिलियन टन से अधिक गेहूं का उत्पादन किया गया था। एफिड्स की मौजूदगी ओर इसके फैलने से विशेष रूप से पड़ोसी देश भारत और बांग्लादेश के साथ पाकिस्तान में गेहूं की औसत उपज की तुलना में काफी आर्थिक नुकसान हुआ था।
पीएलओएस वन पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन में, डॉ. फहीम और उनकी टीम ने अध्ययन क्षेत्रों में गेहूं एफिड्स के मौसमी रुझानों का खुलासा किया और बताया कि, एफिड्स के फैलने का प्रमुख कारक तापमान है। डॉ. फहीम ने कहा, जबकि पंजाब के ठंडे और गर्म हिस्सों में एफिड्स की गतिविधि में कोई महत्वपूर्ण अंतर नहीं देखा गया। इसके अलावा, उन्होने बताया कि, हालांकि सिरिफिड मक्खियां एफिड्स के कुशल शिकारी हैं, लेकिन हमने अध्ययन के दोनों वर्षों में एफिड्स की आबादी और उनके प्राकृतिक दुश्मनों के बीच कोई संबंध नहीं पाया।
निष्कर्षों में कई कारणों का हवाला दिया गया है, जिनमें प्रजातियों में व्यवहार संबंधी अंतर शामिल हैं, परिणाम स्वरूप यह अध्ययन एफिड्स प्रबंधन के दो तरीकों के बारे में बताता है, पहला -ऊपर से नीचे की ओर अर्थात इसके प्राकृतिक दुश्मनों का उपयोग करना (सिरिफिड मक्खियां, एफिड्स को मार कर खा जाती हैं, इसलिए इन्हें प्राकृतिक दुश्मन की श्रेणी में रखा जाएगा।) और दूसरा-नीचे से ऊपर की ओर, अर्थात उर्वरीकरण और सिंचाई के माध्यम से एफिड्स को समाप्त करना।
डॉ. फहीम ने यह भी कहा की है कि, यह समझना कि एफिड्स से पौधे किस हद तक संक्रमित होंगे, और किस समय पर जैव नियंत्रकों (बायोकंट्रोल एजेंटों) का प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाए ताकि इन्हें रोका जा सके, यह जानना भी आवश्यक है। शोधकर्ता इस आधार पर आगे अध्ययन करने की सलाह देते हैं, कि सभी कीट प्रबंधन कार्यक्रमों को बेहतर बनाने के लिए गेहूं एफिड्स उनके जैसे अन्य कीटों और उनके प्राकृतिक दुश्मनों को कैसे बेहतर तरीके से समझा जा सकता है।
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