गैर सरकारी संस्था टॉक्सिक लिंक के अध्ययन में पता चला है कि बच्चों को दूध पिलाने वाली प्लास्टिक बोतलों में प्रतिबंधित खतरनाक रसायन बीपीए का इस्तेमाल किया जा रहा है।
क्या आपका बच्चा प्लास्टिक की बोतल से दूध पी रहा है? या फिर आप बच्चे को प्लास्टिक वाले कप से पानी पिला रहे हैं। यदि जवाब हां है तो यह रिपोर्ट आपके काम की है। गैर सरकारी संस्था टाक्सिक लिंक ने दूसरी बार बच्चों को दूध पिलाने वाली प्लास्टिक बोतलों पर एक नया शोध किया है। इसमें पाया गया है कि कई नामी-गिरामी कंपनियों की प्लास्टिक बोतल में जहरीला तत्व बिसफेनाल-ए (बीपीए) मौजूद है।
बिसफेनाल-ए एक प्रतिबंधित रसायन है। यह शरीर में पहुंचकर हार्मोन का असंतुलन पैदा करता है। इस खतरनाक रसायन को मिमिक हार्मोन भी कहते हैं। यह शरीर में कैंसर पैदा करने के साथ ही श्वसन तंत्र के विकास को भी प्रभावित करता है। पूरी दुनिया में इस रसायन के दुष्प्रभावों के लिए चिंता जताई गई है। बिसफेनाल-ए के खतरनाक और प्रतिबंधित होने के बावजूद कंपनियां प्लास्टिक बोतल के निर्माण में इसका इस्तेमाल कर रही हैं। संस्था के मुताबिक कई नामी-गिरामी कंपनियों के उत्पादों का नमूना लेकर जांच की गई थी। कई नमूनों में यह खतरनाक रसायन मिला है।
टॉक्सिक लिंक के सह-निदेशक सतीश सिन्हा ने कहा कि दूध की प्लास्टिक बोतलों व अन्य उत्पादों में बिसेफनाल-ए की पुष्टि पहली बार 2014 में उनके एक अध्ययन के जरिए हुई थी। इसके बाद भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने बच्चों के पेय के इस्तेमाल में लाई जाने वाली प्लास्टिक बोतलों में बीपीए के इस्तेमाल पर 2015 में प्रतिबंध लगा दिया था। यह हैरानी भरा है कि अब भी कई कंपनियां इस प्रतिबंधित रसायन का इस्तेमाल कर रही हैं। बीपीए की पुष्टि से यह स्पष्ट है कि बीआईएस की ओर से प्लास्टिक फीडिंग बोतल व अन्य सह-उत्पादों के लिए तय किए गए मानक आईएस 14625:2015 का पालन कंपनियों के जरिए नहीं किया जा रहा है।
अध्ययन करने वाली संस्था के मुताबिक बच्चों के लिए बाजार में नामी-गिरामी कंपनियों की उपलब्ध 14 प्लास्टिक की दूध पिलाने वाली बोतलें और 6 सिप्पी कप नमूने के तौर पर दिल्ली, गुजरात, राजस्थान, केरल, आंध्र प्रदेश, झारखंड, महाराष्ट्र, मणिपुर से इकट्ठा की गई थीं। इन्हें जांच के लिए आईआईटी गुवाहटी भेजा गया था। वहां किए गए अध्ययन में यह खुलासा हुआ कि सभी 20 नमूनों में बीपीए 0.9 पार्ट्स पर बिलियन (पीपीबी) और 10.5 पीपीबी के बीच मौजूद है।
जब इन बोतलों और कप के जरिए पेय पदार्थ निकाला गया तो पहली बार निकासी में पेय के साथ जहरीले बीपीए की उपस्थिति 0.008 पीपीबी और दूसरी निकासी में बीपीए की उपस्थिति 3.46 पीपीबी थी। सिर्फ एक बोतल ऐसी पाई गई जिसमें दूसरी निकासी में बीपीए की उपस्थिति नहीं मिली। इससे यह बिल्कुल साफ है कि यह खतरनाक रसायन प्लास्टिक बोतलों से होकर बच्चों के शरीर में पहुंच रहा है। संस्था ने बताया कि जिन 20 बोतल समेत सिप प्लास्टिक उत्पादों का नमूना इकट्ठा किया गया उनमें 8 पालीप्रोपिलीन और 3 पालीकार्बोनेट से बने हुए थे। अन्य प्लास्टिक उत्पादों पर कोई लेबल नहीं लगा था।
टॉक्सिक लिंक के कार्यक्रम समन्वयक प्रशांत राजांकर ने कहा कि प्रतिबंध के बावजूद भारतीय बाजार में बच्चों के लिए मौजूद यह उत्पाद खतरनाक हैं। सख्त निगरानी के साथ मानकों का उल्लंघन करने वाली कंपनियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की भी जरूरत है।
दूसरी बार किए गए अध्ययन रिपोर्ट का शीर्षक बोतलें जहरीली हो सकती हैं– भाग 2 रखा गया है। अध्ययन में यह भी कहा गया है कि बीपीए की वजह से न सिर्फ शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली प्रभावित हो रही है बल्कि दिल की बीमारी व लीवर में खराबी होने के अलावा उपापचय से संबंधित बीमारियां यानी डायबिटीज व मोटापा आदि भी हो सकता है।
रिपोर्ट के कुछ तथ्य :
वैश्विक स्तर पर बच्चों को दूध पिलाने वाली बोतलों का कारोबार काफी बड़ा है। टाक्सिक लिंक के मुताबिक 2017 में वैश्विक कारोबार 246.99 करोड़ डालर का था। वहीं, 2022 तक इस कारोबार में 3.79 फीसदी की वृद्धि का अनुमान लगाया गया है।
दुनिया के कई देशों में यह मानक तय किया गया है कि शरीर में प्रतिदिन कितना बीपीए लिया जा सकता है, जो शरीर को नुकसान न पहुंचाए। भारत में इसके लिए कोई मानक नहीं है। ज्यादा से ज्यादा लोगों को बीपीए की खतरनाक मौजूदगी को लेकर जागरुक किया जाना चाहिए।
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