Wildlife & Biodiversity

जीवाश्म पर्यटन के लिए बेहतर जगह है जिम कार्बेट?

उत्तराखंड के जिम कार्बेट में हाथी सहित मगरमच्छ, दरियाई घोड़े, हिरन जैसे जीवों के जीवाश्म भी यहां दर्शाए जाएंगे

 
By Varsha Singh
Published: Monday 01 July 2019
Photo: Varsha Singh

फॉज़िल टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए कार्बेट नेशनल पार्क प्रशासन जीवाश्म संग्रहालय खोलना चाहता है। संग्रहालय में इस क्षेत्र में पाए जाने वाले प्राचीन काल के जीवाश्म और उससे जुड़ी जानकारी प्रदर्शित की जाएगी। हाथी सहित मगरमच्छ, दरियाई घोड़े, हिरन जैसे जीवों के जीवाश्म भी यहां दर्शाए जाएंगे। कार्बेट प्रशासन का मानना है कि पश्चिमी देशों की तर्ज पर यहां भी पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। इससे इको टूरिज्म के उद्देश्य पूरे होंगे। साथ ही स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।

कुमाऊं विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ बीस कोटलिया भी मानते हैं कि जीवाश्मों के अध्ययन के लिए संग्रहालय बनने से स्तनधारियों के विकास के इतिहास का अध्ययन किया जा सकता है। संग्रहालय के लिए कार्बेट प्रशासन ने पार्क के धनगढ़ी गेट पर तैयार दो निर्माणाधीन कक्षों का इस्तेमाल करने का सुझाव दिया है।

कार्बेट नेशनल पार्क में दो मिलियन वर्ष पुराने हाथी के निचले जबड़े का जीवाश्म मिलने का दावा किया गया है। प्रारंभिक पड़ताल में जीवाश्म की पुष्टि होने से ये उम्मीद जगी है कि इस क्षेत्र में और खोज करने पर घोड़े और हिरन, मगरमच्छ,दरियाई घोड़े जैसे जीवों के जीवाश्म भी मिल सकते हैं। डॉ बीएस कोटलिया रामनगर के शिवालिक क्षेत्र में पहले भी शोध कर चुके हैं। क्षेत्र के अपने अध्ययन और हाथी के निचले जबड़े के जीवाश्म के अध्ययन के बाद उन्होंने बताया कि ये 20 लाख वर्ष पुराने हो सकते हैं।

डॉ कोटलिया ने बताया कि एल्फस हाईसुड्रिकस (elephas hysudricus) प्रजाति के ये जीवाश्म मौजूदा एल्फस मैक्जिमस के पूर्वज रहे होंगे। उन्होंने बताया कि इस तरह के जीवाश्म जम्मू-कश्मीर और चंडीगढ़ की शिवालिक पहाड़ियों में पाए गए थे। लेकिन कुमाऊं की शिवालिक पहाड़ियों में ये पहली बार पाए गए हैं। इस लिहाज से ये काफी अहम खोज हो सकती है।

हालांकि डॉ कोटलिया इस जीवाश्म के बेहतर अध्ययन की जरूरत पर बल देते हैं। उनके मुताबिक यदि ये हाईसुड्रिकस प्रजाति का है तो कुमाऊं क्षेत्र में ये अपनी तरह का पहला जीवाश्म है। इसके ज़रिये भारतीय और अफ्रीकन हाथियों की तुलना की जा सकती है।

दरअसल मई महीने में उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र और भारतीय सुदूर संवेदी संस्थान (आईआरएसओ) की ओर से रामनगर में एक कार्यशाला आयोजित की गई। जिसमें वन विभाग के आला अधिकारी भी शामिल थे। अंतरिक्ष उपयोग केंद्र के निदेशक एमपीएस बिष्ट ने बताया कि रामनगर के बिजरानी-मलानी क्षेत्र में भ्रमण के दौरान उन्हें और उनके साथी वैज्ञानिकों को हाथी दांत का जीवाश्म मिला। इस जीवाश्म को जांच के लिए कुमाऊं विश्वविद्यालय के सेंटर ऑफ एडवांस स्टडीज़ इन जियोलॉजी विभाग में भेजा गया। जहां प्रारंभिक जांच में इसके 20 लाख वर्ष पुराने होने की पुष्टि की गई। हालांकि इस जीवाश्म पर अभी और अध्ययन किया जाएगा। इसके लिए देहरादून के वाडिया हिमालयन भूगर्भ संस्थान की मदद ली जा सकती है।

कॉर्बेट पार्क के अधिकारी संजीव चतुर्वेदी कहते हैं कि रामनगर में कालागढ़ से ढिकाली तक रामगंगा नदी के किनारे पर्यटन की अच्छी संभावनाएं हैं। यहां बोटिंग जैसी चीजें भी शुरू की जा सकती हैं। यहां बाघ को देखने के लिए हर साल बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। पिछले वर्ष कार्बेट में पर्यटन से आठ से नौ करोड़ तक की आमदनी हुई थी। कार्बेट में हाथी के लाखों वर्ष पुराने जीवाश्म मिलने से अब यहां फ़ॉजिल टूरिज्म की संभावना भी जुड़ रही है।

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