Agriculture

दिल्ली हाईकोर्ट ने गंगा के मैदानी भागों में बासमती धान की पैदावार पर लगी रोक हटाई 

मध्य प्रदेश सरकार को दस वर्षों की मशक्कत के बाद बासमती धान पर जीआई टैग हासिल करने का रास्ता खुल गया है।

 
By Kiran Pandey, Vivek Mishra
Published: Wednesday 08 May 2019
Photo : Agnimirh Basu

गंगा के मैदानी भागों में बासमती धान की पैदावार पर केंद्र के रोक संबंधी निर्णय को दिल्ली उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि गंगा के मैदानी भाग में आने वाले सात राज्यों में बासमती धान की पैदावार को रोका नहीं जा सकता है। इन सात राज्यों में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर व मध्य प्रदेश शामिल हैं। इस आदेश के साथ मध्य प्रदेश सरकार ने अपने यहां उगाई जाने वाली बासमती धान की विशेष किस्मों के लिए भौगोलिक संकेतक (जीआई) टैग की मांग का केस भी जीत लिया है।

25 अप्रैल को दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्रीय प्राधिकरणों को मध्य प्रदेश सरकार की मांग के अनुरूप बासमती चावल पर भौगोलिक सूचक (जियोग्राफिकल इंडिकेशंस या जीआई) टैग दिए जाने का भी आदेश दिया है। 2018 में सात राज्यों में एमपी में पैदा होने वाले बासमती चावल को जीआई टैग नहीं दिया गया था। एमपी को बासमती उत्पादक राज्य नहीं माना जा रहा था। इसके बाद एमपी सरकार ने केंद्र के जरिए 2014 और 2018 में केंद्र के निर्णय के विरुद्ध दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की थी। एमपी सरकार ने राज्य में उगाए जाने वाले बासमती चावल पर भी जीआई टैग की मांग की थी।  

2008 में कृषि मंत्रालय की ओर से जारी आदेश में बासमती धान की किस्मों के लिए मानकों को तय किया गया था। इसके साथ ही यह भी कहा गया था कि बासमती धान की किस्म और उसके भौगोलिक संकेतक यानी जीआई को आपस में अनिवार्य रूप से जोड़ा जाए। तय विशेषता वाली किस्में ही जीआई मानक की योग्यता अर्जित करेंगी।

वहीं, 2014 में जारी आदेश में कहा गया कि बासमती धान की प्रमाणित और बुनियादी बीजों को जीआई टैग नहीं दिया जाएगा यदि वे बासमती धान की उगाने वाली भौगोलिक जगहों में शामिल नहीं हैं।

एमपी सरकार ने खरीफ-2016 सीजन के दौरान कृषि मंत्रालय के उस पत्र को भी चुनौती दी थी जिसमें उन्होंने बासमती बीजों के आवंटन को रद्द कर दिया था। इस पत्र में कहा गया था कि बासमती उगाने वाले भौगोलिक संकेतक क्षेत्र के दायरे से बाहर इलाकों की पैदावार को नहीं लिया जाएगा। इसमें पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, उत्तराखंड, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जम्मू कश्मीर में जम्मू और कठुआ जिला भी शामिल था।  

दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने 22 पेजों के आदेश में कृषि मंत्रालय के उस आदेश को रद्द कर दिया है जो गंगा के मैदानी भागों में आने वाले सात राज्यों में बासमती धान की पैदावार पर रोक लगाते थे। अदालत ने कहा कि इन इलाकों (गंगा के मैदानी भाग) में पैदा होने वाली बासमती की किस्मों के बुनियादी और प्रमाणित बीजों को प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता।

एमपी सरकार ने अपनी दलील में कहा था कि कृषि मंत्रालय की ओर से 2008 और 2014 में जारी आदेश बीज कानून, 1966 के दायरे को लांघते हैं। यह कानून इस बात पर नहीं टिका है कि बीज कहां और कैसे इस्तेमाल किए जा रहे हैं। कृषि मंत्रालय के आदेश न सिर्फ अपनी शक्तियों का अतिक्रमण करते हैं बल्कि कृषि के कानूनी दायरों को भी लांघ जाते हैं। यह पूरी तरह राज्य का विषय है।

आदेश में कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति अधिसूचित किस्म वाले बीज का इस्तेमाल कर रहा है तो बीज कानून की धारा 7 के तहत यह उल्लेखित है कि वह उस बीज को कहां और कैसे पैदा करेगा इस पर रोक नहीं लगाई जा सकती। बीज कानून सिर्फ संबंधित बीज के अंकुरण की न्यूनतम सीमा और शुद्धता तक सीमित है। उस बीज पर वही जानकारी चस्पा होनी चाहिए जो उसके बारे में सही से बताए।

एपीईडीए और अन्य संगठनों ने किया था विरोध

कृषि और प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट एक्सपोर्ट डेवलमेंट अथॉरिटी (एपीईडीए) और इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (आईसीएआर) मध्य प्रदेश को बासमती उत्पादक राज्य नहीं मानते हैं। एपीईडीए का कहना है कि यदि  एमपी को बासमती उत्पादक राज्य माना गया तो यह उत्तरी राज्यों में बासमती पैदा करने वाले अन्य किसानों को नुकसान पहुंचा सकता है। उन्होंने डर जताया था कि यिद एमपी भी बासमती उत्पादक राज्यों में शामिल हुआ तो न सिर्फ आपूर्ति बढ़ जाएगी बल्कि बासमती चावल की कीमतें भी गिर जाएंगी। वहीं, उनकी गुणवत्ता पर भी असर पड़ेगा। इसके अलावा बासमती राइस फार्मर्स एंड एक्सपोर्टर्स डेवलपमेंट फोरम (बीआरएफईडीएफ) मध्य प्रदेश को बासमती चावल के लिए जीआई टैग दिए जाने के खिलाफ थे।

 बासमती पैदावार और जीआई टैग के मामले में दस वर्षों बाद एमपी सरकार की जीत हुई है। बासमती पैदावार करने वाले सात राज्यों के 77 जिलों ने फरवरी, 2016 में करीब आठ वर्षों बाद चेन्नई स्थित ज्योग्राफिकल इंडिकेशंस रजिस्ट्री के जरिए जीआई टैग हासिल किया था। इनमें पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश के कुछ भाग, जम्मू-कश्मीर भी शामिल थे। एपीईडीए ने 2008 में बासमती की फसलों को जीआई पहचान देकर उन्हें सुरक्षित करने की पहल की थी। वहीं, जीआई रजिस्ट्री के जरिए दावा खारिज किए जाने के बाद 2008 में एमपी सरकार ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। एमपी ने अपने यहां 13 जिलों में मोरेना, भिंड, शिवपुर, ग्वालियर, दतिया, शिवपुरी, गुना, विदिशा, रायसेन, सीहोर, होशंगाबाद, नरसिंहपुर और जबलपुर में बासमती को जीआई टैग देने की मांग की थी।  

 

कब-कब क्या हुआ ?

26 नवंबर, 2008 एपीईडीए ने बासमती को जीआई कानून के क्लास 30 के तहत बासमती को टैग देने के लिए आवेदन दाखिल किया।

29 सितंबर 2010 : मध्य प्रदेश ने एपीईडीए के आवेदन के खिलाफ जवाब दाखिल किया। वहीं, अपने 13 जिलों के लिए जीआई टैग की मांग की।

31 दिसंबर, 2013 वास्तविक बासमती पैदा करने वाले क्षेत्रों के स्पष्ट सीमांकन की जरूरत संबंधी रजिस्ट्रार ऑफ जियोग्राफिकल इंडीकेशंस के बयान एपीईडीए ने असंतुष्टि जाहिर की।

12 फरवरी, 2014 एपीईडीए ने इंटलेक्चुएल प्रोपर्टी अपीलीएट बोर्ड (आईपीएबी) के समक्ष 31 दिसंबर, 2014 को रजिस्ट्रार ऑफ जियोग्राफिकल इंडीकेशन्स की ओर से जारी किए गए आदेश के खिलाफ अपील की।

5 फरवरी, 2016 आईपीएबी ने जियोग्राफिकल इंडीकेशन्स रजिस्ट्रार को एमपी के आवेदन पर दोबारा विचार करने को कहा।

5 मार्च 2018 जियोग्राफिकल इंडीकेशन्स रजिस्ट्री ने बासमती पैदा करने वाले भौगोलिक दायरे के सीमांकन से बाहर राज्य को बासमती उत्पादक राज्य मानने से इनकार कर दिया।

अप्रैल 2018 में आसीएआर ने पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति बीएस ढिल्लो के अधीन एक समिति गठित की।

जून 2018 में आइसीएआर ने मध्य प्रदेश के दावे की जांच को लेकर एक और समिति का गठन किया। यह समिति प्रोटेक्शन ऑफ वेराइटीज एंड फार्मर्स, राइट्स अथॉरिटी के पूर्व अध्यक्ष आरआर हनचिनल की अध्यक्षता में गठित की गई। समिति से उचित सिफारिश भी देने को कहा गया था। 

 

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