Pollution

उत्तरी भारत के प्रदूषण से हिमालय के ग्लेशियर को खतरा: अध्ययन

वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने अपने शोध पत्र में कहा है कि दिल्ली समेत उत्तरी भारत का वायू प्रदूषण हिमालय से टकरा कर ब्लैक कार्बन ग्लेशियर्स से चिपक रहा है

 
By Manmeet singh
Published: Tuesday 26 November 2019
Photo: Srikant Choudhary

उत्तरी भारत का वायु प्रदूषण उच्च हिमालय क्षेत्रों की सेहत बिगाड़ रहा है। पश्चिमी विक्षोभ (भू-मध्य सागर से आने वाले बादल) के साथ आ रही हवाओं के साथ दिल्ली समेत उत्तरी भारत का वायू प्रदूषण (ईधन और  खेतों में जलाये जाने वाली सामग्री) हिमालय से टकरा रहा है। जहां प्रदूषण के कारण ब्लैक कार्बन की परत ग्लेशियरों के ऊपर चिपक रही है। जिससे ग्लेशियरों के ऊपर जमी बर्फ (स्नो) जल्द पिघल जा रही है और ग्लेशियर (आइस) के पिघलने की रफ्तार पहले के मुकाबले ज्यादा तेज हो गई है।

वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा उच्च हिमालय क्षेत्रों में लगाये गये उपकरणों से इस बात का खुलासा हुआ है। वाडिया के इस शोध को अंतर्राष्ट्रीय साइंस जरनल ‘अटमोस्पेरिक एनवायरोमेंट’ ने भी इस साल के अगस्त संस्करण में प्रमुखता से जगह दी है।

दिवाली के आसपास से दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण की मार झेल रहा है, लेकिन अब इसमें कमी आ गई है, क्योंकि यह प्रदूषण हवा के साथ बह गया है। विशेषज्ञ बताते हैं कि पोस्ट मानसून (सितंबर, अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर) के दौरान आने वाली पश्चिमी विक्षोभ (नार्दन डिस्टर्बेंस) उत्तर भारत के ऊपर स्थित प्रदूषण को अपने साथ लेकर हिमालय श्रंखलाओं की तरफ बढ़ गया और हिमालय से टकराने के बाद ये प्रदूषण हिमाच्छादित पहाडिय़ों में पड़ी बर्फ के साथ ही लगभग 3,000 से 35000 मीटर की ऊंचाई में स्थित ग्लेशियरों में ब्लैक कार्बन के रूप में चिपक गया है।

वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान के वरिष्ठ भू-गर्भीय वैज्ञानिक डॉ. पीएस नेगी के नेतृत्व में इस विषय में शोध किया है। डॉ. नेगी बताते हैं कि ब्लैक कार्बन अपने नीचे गर्मी पैदा करते हैं। जिसके कारण ग्लेशियर के ऊपर हर मौसम में पड़ी बर्फ पिघल जाती है और इसके बाद इसका प्रत्यक्ष असर ग्लेशियर की सैकड़ों सालों की जमी बर्फ पर पड़ता है। जिससे ग्लेश्यिर सिकुडऩे लगते हैं। अगर वायू प्रदूषण ऐसे ही हिमालय की ओर बढ़ता रहा तो हिमालयी ग्लेशियरों के लिये गंभीर खतरा उत्पन्न हो जायेगा।

 

चीरभासा में स्थापित किया शोध केंद्र

वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने इस शोध को पूरा करने के लिये गंगोत्री से नौ किलोमीटर आगे 3,570 मीटर ऊंचाई पर शोध केंद्र में उपकरण स्थापित किये हैं। केंद्र में स्थापित उपकरणों ने 2016 से जनवरी से दिसंबर तक वायू प्रदूषण की मॉनेटरिंग की। जिसमें 0.395 0.408 ईबीसी प्रदूषण मापा गया। बता दें कि पूरे हिमालय क्षेत्र में विभिन्न देशों के 14 ब्लैक कार्बन मॉनेटरिंग उपकरण स्थापित किये गये हैं। इसमें सबसे ज्यादा ऊंचाई 5079 मीटर नेपाल में स्थापित है। जबकि तिब्बत में दो केंद्र स्थापित हैं, जो 4600 मीटर की ऊंचाई में स्थित है। सबसे नीचे हिमालय की तलहटी देहरादून में 700 मीटर की ऊंचाई में स्थापित किया गया है। इन सभी केंद्रों में सबसे ज्यादा वायू प्रदूषण उत्तरकाशी जिले में स्थित चीरभासा में मॉनिटर किया गया है। जो कि उत्तरी भारत की ओर से आया है।

जलते जंगल भी जिम्मेदार

हिमालय की सेहत के लिए केवल उत्तरी भारत का वायू प्रदूषण ही जिम्मेदार नहीं है। बल्कि हर साल मई और जून में मध्य हिमालय क्षेत्र में स्थित जंगलों में लगने वाली दवानल भी जिम्मेदार है। हर साल इस मौसम में उत्तराखंड में सैकड़ों हेक्टेयर वन भूमि जल कर राख हो जाती है। जो ब्लैक कार्बन का बड़ा कारण भी बनता है। चीन इस संबंध में कई अंतर्राष्ट्रीय मंचों में भारत पर वायू प्रदूषण फैलाने का आरोप लगाता रहा है।

ब्लैक कार्बन के जलवायु पर प्रभाव

ब्लैक कार्बन से तापमान में वृद्धि होती है, क्योंकि यह प्रकाश को अवशोषित करने और निकटवर्ती वातावरण की ऊष्मा की वृद्धि में अत्यधिक प्रभावी है। यह बादल निर्माण के साथ-साथ क्षेत्रीय परिसंचरण और वर्षा को भी प्रभावित करता है। बर्फ तथा हिम पर चिपक जाने पर, ब्लैक कार्बन और सह-उत्सर्जित कण एल्बिडो प्रभाव (सूर्य के प्रकाश को परावर्तित करने की क्षमता) को कम करते हैं तथा सतह के तापमान में वृद्धि करते हैं। इसके परिणामस्वरूप आर्कटिक और हिमालय जैसे ग्लेशियर क्षेत्रों में बर्फ पिघलने लगती है

Subscribe to Daily Newsletter :

Comments are moderated and will be published only after the site moderator’s approval. Please use a genuine email ID and provide your name. Selected comments may also be used in the ‘Letters’ section of the Down To Earth print edition.