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क्या आप जानते हैं कि बीयर, चिकन, आइसक्रीम भी खाते हैं भगवान

धर्म से जुड़े भोजन का अध्ययन करने पर एक बात स्पष्ट हो जाती है कि भगवान भी वही भोजन खाते हैं जो आसपास उपलब्ध होता है

 
By Vibha Varshney
Published: Saturday 11 May 2019
फोटो सौजन्य: पेंग्विन रैंडम हाउस

भगवान भी भोजन करते हैं। हमारी तरह उनके खाद्य पदार्थ भी पारिस्थितिक विविधता को प्रतिबिंबित करते हैं। भोजन और आस्था में संबंध है। यह न केवल देवताओं का प्रसाद है, बल्कि ऐसे खाद्य पदार्थ हैं जो अनुष्ठानों और समारोहों का हिस्सा हैं। यह भोजन लोक कथाओं से भी जुड़ा है। उदाहरण के लिए छप्पन भोग ओडिशा के मंदिरों में तैयार किए जाते हैं, जहां टमाटर, आलू या मिर्च का उपयोग नहीं किया जाता है क्योंकि ये विदेशों से आए हैं। लहसुन व प्याज को भी मांसाहार की श्रेणी में रखा गया है और इसे भोग से बाहर रखा गया है।

ईरान में पारसी दिवंगत लोगों की आत्माओं के लिए भोजन तैयार करते हैं। यह ईरानी व्यंजनों का प्रतीक है। बौद्ध भिक्षु भोजन की कमी के कारण मांस का सेवन करते हैं और कार्बी जनजाति के धार्मिक अनुष्ठानों में चावल से बनी बीयर अभिन्न है। यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि मांसाहारी भोजन भी धार्मिक अनुष्ठानों का हिस्सा है।

लेखक वरुण गुप्ता और देवांग सिंह ने धर्म से जुड़े भोजन पर लिखी “भगवान के पकवान” पुस्तक में ऐसे ही हैरान करने वाले तथ्यों का उल्लेख किया है। पुस्तक के अनुसार, पकवान प्रसाद के रूप में भगवान को चढ़ाए जाते हैं और यह धार्मिक अनुष्ठानों का हिस्सा भी होते हैं। लेखकों का कहना है कि उन्होंने देखा कि विश्वास कैसे समुदाय विशेष के भोजन को प्रभावित कर सकता है और भोजन किस प्रकार विश्वास को प्रभावित कर सकता है।

देवताओं का भोजन दोनों लेखकों के लिए एक अजीब विषय हो सकता है क्योंकि यह धार्मिक नहीं है। हम सभी जानते हैं कि जो भोजन हम खाते हैं वह धर्म के साथ जुड़ा हुआ है। उदाहरण के लिए, उपवास के दौरान जब अनाज की मनाही होती है, तब पेट भरने के लिए रामदाना, मखाने और कुट्टू जैसे विकल्प उपलब्ध होते हैं। लेखकों ने देश भर की दिलचस्प यात्रा कर अल्पज्ञात भोजन और उसका उपभोग करने वाले लोगों की संस्कृति की झलक दिखाई है।

बीयर और चिकन

लेखकों के अनुसार, मेघालय के रोंगमेसेक में कार्बी जनजाति के धार्मिक अनुष्ठान चावल से बनी बीयर के इर्द-गिर्द घूमते हैं। देवताओं का आशीर्वाद पाने के लिए और बुवाई चक्र की सफल शुरुआत सुनिश्चित करने के लिए उनके सामने मुर्गे की बलि दी जाती है। उपज की भविष्यवाणी करने के लिए वे रहस्यमय तरीके से मुर्गे की अंतड़ियों को बाहर निकालते हैं। मुर्गे को देवताओं पर चढ़ाने के बाद पकाया जाता था। चावल से बनी बीयर को देवताओं पर छिड़का जाता है। बीयर का उद्देश्य केवल लोगों को जीवंत बनाना है, नशा नहीं।

गुजरात हिंदुओं के पवित्र तीर्थस्थल द्वारका होने का दावा करता है जो चार प्रमुख तीर्थस्थलों में एक है। पुस्तक वहां परोसे जाने वाले भोजन की बात नहीं करती बल्कि यह गुजरात के उदवाड़ा में पारसियों का उल्लेख करती है। वे पारसी जो अपने धर्म का पालन करते हैं और अग्नि प्रार्थना करते हैं। हम जानते हैं कि अग्नि भोजन को शुद्ध करती है, उसे पौष्टिक बनाती है और ऊर्जा को स्थानांतरित करती है। धर्म के अनुसार, यह मन और आत्मा का भी शुद्धिकरण करती है। लेखकों ने दही, सेब और आम से बनी एक स्थानीय आइसक्रीम का वर्णन किया है जो नवजोते समारोह का एक जरूरी हिस्सा है। यह एक पारसी समारोह है जो लड़कों के बड़े होने पर मनाया जाता है।

पश्चिम बंगाल में लेखक बहुसंख्यक बंगालियों की उपेक्षा कर यहूदियों के भोजन के बारे में बात करते हैं। शहर में केवल 20 यहूदी शेष हैं। उनका भोजन आदिम मछली है, क्योंकि इसे धर्मसम्मत माना गया है। उनके भोजन की कहानी शब्बत के इर्द-गिर्द घूमती है जिसका तात्पर्य आराम और चिंतन करने वाला दिन है। शब्बत शनिवार को पड़ता है और इस दिन खाना पकाने की अनुमति नहीं है, इसलिए शुक्रवार दावत का दिन होता है।

पुस्तक में पुरी के श्री जगन्नाथ मंदिर के छप्पन भोग या महाप्रसाद का विस्तार से वर्णन है। इसमें खाना पकाने की विस्तृत प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में 752 स्टोव शामिल हैं जो दिनभर जलते हैं। रोजाना लगभग 1,000 रसोइए भोग तैयार करते हैं और इस भोग में काली मिर्च, घी और गुड़ शामिल होता है। रसोई में प्रतिदिन 10,000 से अधिक लोग काम करते हैं। महाप्रसाद जाति, नस्ल या धन में भेद किए बिना सभी लोगों को वितरित किया जाता है।

हिमाचल प्रदेश के स्पीति में काइ गोम्पा तिब्बती मठ के बौद्ध भिक्षु गुर गुर चा अथवा बटर चाय और पुक (सत्तू) पर आश्रित रहते हैं। यह सत्तू चाय में मिलाया जाता है। दो साल पहले तक मठ में मांसाहारी भोजन की अनुमति थी, लेकिन स्वस्थ भोजन को बढ़ावा देने के लिए इसे अब बंद कर दिया गया है। हालांकि भिक्षु मठ परिसर के बाहर मांस का उपभोग करने के लिए स्वतंत्र हैं और पास के चिचुम गांव में मटन मोमोज खा सकते हैं।

मांसाहार का सेवन अहिंसा के रास्ते पर चलने वाले बौद्धों भिक्षुओं के लिए प्रतिबंधित नहीं है। हिमाचल के ठंडे वातावरण में लोग उपलब्ध संसाधनों से पोषण प्राप्त करते हैं। मांस उन्हें जीवित रखने के लिए आवश्यक प्रोटीन उपलब्ध कराता है।

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