यूएनडीपी की नई रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया में वयस्क के मुकाबले गरीबी से बच्चे ज्यादा प्रभावित हैं
सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) को हासिल करने के लिए केवल दस साल बचे हैं, जिसमें गरीबी को पूरी तरह समाप्त करने का लक्ष्य भी शामिल है, लेकिन दुनिया के लिए आगे एक बड़ी चुनौती यह है कि बच्चों में गरीबी को किस नजरिए से देखा जाए।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) द्वारा हाल ही में जारी वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) में पाया गया कि दुनिया में दस साल तक की उम्र वाले 3 में से 1 बच्चा बहुआयामी गरीबी का सामना कर रहा है। जबकि वयस्कों में इसकी संख्या 6 में से 1 है। यदि 18 साल तक की उम्र वालों की बात की जाए तो हर दूसरा बच्चा गरीब है।
दिलचस्प बात यह है कि एसडीजी-वन में एमपीआई की प्रगति को मापा जाता है। वैसे तो गरीबी को आमदनी के स्तर पर मापा जाता है, लेकिन एमपीआई को आबादी के संपूर्ण विकास के आधार पर मापा जाता है। इसीलिए इस सूचकांक को बहुआयामी कहा जाता है।
इस सूचकांक में 100 देशों की लगभग 570 करोड़ आबादी को शामिल किया गया है। इसमें 10 संकेतकों को शामिल किया गया, जिसमें स्वास्थ्य, शिक्षा और रहन-सहन का स्तर प्रमुख है।
लगभग 130 करोड़ लोगों की पहचान गरीब के तौर पर की गई और इनमें 66.3 करोड़ बच्चे शामिल हैं, जिनकी उम्र 18 साल से कम है और इनमें से एक तिहाई (लगभग 42.8 करोड़) बच्चों की उम्र 10 साल से कम है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 18 साल से कम उम्र के गरीब बच्चे बहुआयामी गरीबी के लिए एक बड़ा बोझ है। सर्वेक्षण में 200 करोड़ बच्चों को शामिल किया गया, जिनमें से 110 करोड़ 10 साल से कम उम्र के हैं।
एमपीआई के मुताबिक, बहुआयामी गरीबी के मामले में वयस्कों के मुकाबले बच्चे ज्यादा प्रभावित हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि 6 में से 1 वयस्क बहुआयामी स्तर पर गरीब है, जबकि इसके मुकाबले 3 में से 1 बच्चा गरीब है।
सर्वे में शामिल दुनिया के कुल बच्चों में से 34 फीसदी बच्चे बहुआयामी गरीबी का सामना कर रहे हैं। वहीं, वयस्कों की संख्या 17.5 फीसदी है। लेकिन खास बात यह है कि केवल दो क्षेत्रों सब-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया के देशों में इन गरीब बच्चों की संख्या 85 फीसदी से अधिक है।
इनमें से 63.5 फीसदी बच्चे अकेले सब-सहारा अफ्रीका देशों के हैं, जो सभी विकासशील देशों में सबसे अधिक है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 4 अफ्रीकी देशों, बुर्किना फासो, चाड, इथियोपिया, नाइजर और दक्षिण सूडान में 10 साल से कम उम्र के 90 फीसदी से अधिक बच्चे बहुआयामी गरीबी का सामना कर रहे हैं।
एमपीआई में परिवार स्तर पर असमानता और सामाजिक रूप से पिछड़ों की पड़ताल की गई है। इसमें पाया गया कि दक्षिण एशिया में 5 साल से कम उम्र के 22.7 फीसदी बच्चों में परिवार के भीतर ही कुपोषण के मामले में असमानता देखी गई। इसका मतलब यह है कि एक ही परिवार में एक बच्चा कुपोषण का शिकार है, जबकि दूसरा बच्चा नहीं है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान में पांच साल से कम उम्र का हर तीसरा बच्चा परिवार के भीतर ही इस तरह की असमानता का शिकार पाया गया। यूएनडीपी के प्रशासक एचिम स्टेनर ने कहा कि गरीबी से लड़ने के लिए यह जानने की जरूरत है कि गरीब लोग कहां रहते हैं। वे समान रूप से एक एक देश में नहीं फैले हैं और ना ही एक घर के भीतर।
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