दिल्ली में 15 राज्यों के किसान संगठनों ने एक बैठक कर आरसीईपी का व्यापक विरोध करने का निर्णय लिया गया। क्या है आरसीईपी और इसका विरोध क्यों किया जा रहा है, आइए जानते हैं...
आरसीईपी (रीजनल कंप्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप) को लेकर राष्ट्रीय किसान महासंघ से जुड़े किसानों के संगठनों ने गुरुवार को दिल्ली में एक बैठक का आयोजन किया। बैठक में 15 राज्यों से आए किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने आरसीईपी समझौते के कारण किसानों को होने वाले नुकसान की चर्चा की। बैठक के बाद किसानों ने सांकेतिक प्रदर्शन भी किया।
इस बैठक में आने वाले समय में आंदोलन की रूपरेखा तय की गई। इसमें तय हुआ कि 18 अक्टूबर को हर जिलों में जिला कलेक्टर ऑफिस के माध्यम से प्रधानमंत्री के नाम आरसीईपी का बहिष्कार करने का मांगपत्र दिया जाएगा। इसी दिन देशभर के किसान काली पट्टी बांधकर सांकेतिक प्रदर्शन भी करेंगे। इसके बाद 2 नवम्बर को 3 घंटे के लिए देशभर में रोड रोको प्रदर्शन भी किए जाएंगे। देश के सभी सांसदों के भी किसान अपनी समस्याओं और मांगों से अवगत कराएंगे। अगर इन सबके बावजूद मांगे नहीं मानी गई तो किसान संगठनों ने गांव बंद करने की चेतावनी भी दी है।
आरसीईपी कुछ देशों को एक समूह है, जिसमें दस आसियान सदस्य (ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, म्यामां, फिलिपीन, सिंगापुर, थाइलैंड और वियतनाम) और आस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं। इनके बीच में एक मुक्त व्यापार समझौता हो रहा है। जिसके बाद इन देशों के बीच बिना आयात शुल्क दिए व्यापार किया जा सकता है।
किसान नेता शिव कुमार कक्काजी ने बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि यह समझौता बर्बादी लेकर आएगा। वे कहते हैं कि सरकार किसानों की आय दुगनी करने की बात करती है और अपनी नीतियों के जरिए किसानों को बर्बाद करने पर तुली है, अगर आरसीईपी लागू हो गया तो देश के एक तिहाई बाजार पर न्यूजीलैंड, अमेरिका और यूरोपीय देशों का कब्जा हो जाएगा। भारत के किसानों को इनके उत्पाद का जो मूल्य मिल रहा है, उसमे ओर गिरावट आ जाएगी। उन्होंने कहा कि आर.सी.ई.पी समझौते को रोकना भारतीय किसानों के लिए जीवन-मरन का प्रश्न है।
किसान नेता जगजीत सिंह ने इस समझौते का असर किसानों पर समझाते हुए कहा कि अगर बाहर से दूध का आयात किया गया तो हमारे यहां के दूध के किसान पूरे तरीके से तबाह हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि हमारे देश में अधिकांश किसानों के पास 2-4 गायें हैं जिनके दूध से उनका परिवार चलता है दूसरी तरफ न्यूजीलैंड के किसानों के पास 1000 -1000 की संख्या में गायें हैं। इस समझौते के बाद 90% वस्तुओं पर आयात शुल्क 0% हो जाएगा। चीन के उत्पादों से पहले ही भारत का बाजार पट गया है और अभी आयात शुल्क लगता है, जब 0% शुल्क पर आयात होगा तो भारतीय उद्योगों और किसानों की कमर पूरी तरह टूट जाएगी।
बैठक में मामले के जानकार जवरे गौड़ा ने कहा कि भारत के अर्थशास्त्रियों ने सरकार के सामने गलत आंकड़े पेश किए हैं और सरकार आरसीईपी समझौते के जरिए 0% आयात शुल्क पर दूध और कृषि उत्पादों का आयात करने जा रही है। यह भारतीय किसानों के लिए खतरे की घंटी है और भारत में डेयरी उद्योग नहीं है बल्कि यह आजीविका का साधन है।
अमूल भी किसानों के साथ, समझौते रोकने का किया अनुरोध
इस बैठक में अमूल डेयरी के महाप्रबंधक जयंत महत्ता ने आंकड़ों के जरिए बताया कि भारत के किसान दूध के उत्पादन के मामले में आत्म निर्भर है, डेयरी क्षेत्र में आयात की कोई जरूरत नहीं है, भारत दूध उत्पादन के मामले में विश्व में पहले स्थान पर है। भारत में 4.5 % की दर से दूध का उत्पादन बढ़ रहा है, यहां आयात की न कोई जरूरत है और ना ही गुंजाइश है लेकिन सरकार कुछ भी सुनने को तैयार नहीं हैं, तीन लाख महिला किसानों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पोस्ट कार्ड लिखकर इस समस्या से अवगत कराया है और आरसीईपी समझौता रोकने का अनुरोध किया है। कृषि विशेषज्ञ अफसर जाफरी ने कहा कि डब्लू. टी. ओ. में 162 देश है जबकि आरसीईपी में 16 देश हैं। वे बताते हैं कि डब्लूटीओ में आयात शुल्क घटाई-बढ़ाई जा सकती है लेकिन आरसीईपी में इसका कोई प्रावधान नहीं है।
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