बिहार में एक ओर तटबंध टूटने से बाढ़ आ रही है, वहीं दूसरी ओर बागमती नदी के तटबंधों को ऊंचा करने की योजना बनाई जा रही है
अनिल प्रकाश
एक तरफ तटबंधों के टूटने से उत्तर बिहार में भारी तबाही मची हुई है और लोग तटबन्धों के निर्माण और टूटे तटबंधों की मरम्मत का विरोध कर रहे हैं, दूसरी ओर बागमती नदी के तटबन्धों को 5 मीटर ज्यादा ऊंचा करने की योजना पर बिहार सरकार के उच्चाधिकारी विचार कर रहे हैं। अनुभवी इंजीनियरों तथा ईमानदार अधिकारियों की राय में यह योजना अत्यंत विनाशकारी साबित हो सकती है इसलिए इसे छोड़ देना ही उचित है। इस योजना में अनेक खामियां हैं। अगर तटबन्ध को ऊंचा किया जाएगा तो नदी के ऊपर बने रेल और सड़क पुलों को भी 5 मीटर ऊंचा करना होगा।इसका कोई जिक्र डीपीआर में नहीं है। सिल्ट आने की मात्रा और उसके प्रभावों का भी जिक्र नहीं है। पानी के डिजाइन डिस्चार्ज का जो आंकड़ा दिया गया है उसका गंगा फ्लड कंट्रोल कमीशन के आंकडों से कोई मेल नहीं है। इस पर विशेषज्ञों ने आपत्ति जताई है, लेकिन सरकार के अंदर की एक लॉबी इस योजना को लागू कराने के लिए पूरा जोर लगा रहा है।
बागमती नदी के दोनों किनारों पर जबसे तटबन्ध बनना शुरू हुआ तभी से इसका विरोध शुरू हो गया था। पुलिस की बंदूकों,मुकद्दमों और ठेकेदारों के गुंडों के बल पर बांध का निर्माण हुआ। 2012 में मुजफ्फरपुर के कटरा प्रखंड में जनता ने तटबन्ध निर्माण रोक दिया। सरकार ने भी ज्यादा जबरदस्ती नहीं की। 2017 में ठेकेदारों ने फिर जोर लगाया तो हजारों लोगों के तीव्र प्रतिरोध के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निर्देश पर एक रिवीयू कमिटी बनाई गई। इसकी अबतक सिर्फ एक बैठक हुई है, लेकिन तटबन्ध का निर्माण रुका हुआ है।
नदियों के किनारे तटबन्धों का निर्माण बाढ़ से सुरक्षा के नाम पर किया गया था। 1950 में बिहार में नदियों पर बने तटबन्धों की लंबाई लगभग 115 किलोमीटर थी। बिहार सरकार के जल संसाधन विभाग के अनुसार अब इनकी लम्बाई 3800 किलोमीटर है। 1950 बाढ़ प्रवण क्ष्रेत्र लगभग 25 लाख हेक्टेयर था, आज यह बढ़कर 75 लाख हेक्टेयर से ज्यादा हो गया है। हर साल जब बाढ़ आती है ये तटबन्ध टूटकर तबाही मचाते हैं। 1984 में जब कोसी का तटबन्ध नौहट्टा (सहरसा,बिहार) में टूटा था तब भारी तबाही मची थी। तब इंजीनियरों ने यह कहकर जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया था कि इस तटबन्ध को सिर्फ 25 वर्षों के लिए डिजाइन किया गया था।
1987 की भयंकर बाढ़ में 104 स्थानों पर तटबन्ध टूटे थे। 1987 से अबतक लगभग 400 स्थानों पर तटबन्ध टूटे। 1966 में ही तत्कालीन केंद्रीय सिंचाई मंत्री डॉक्टर के एल राव ने लोकसभा में कहा था कि तटबन्ध बनेगा तो टूटेगा ही। उनकी बात योजनाकारों ने नहीं मानी, जिसका परिणाम लोग भुगत रहे हैं। 2012 में बिहार स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी तथा मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंसेज,भारत सरकार ने मिलकर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, कानपुर के प्रोफेसर विकास राममहाशय और प्रोफेसर राजीव सिन्हा से ‘फ्लड डिजास्टर एंड मैनेजमेंट: इंडियन सिनारियो’ नामक रिपोर्ट बनवाकर प्रकाशित करवाई थी। यह रिपोर्ट मुख्यतः बिहार की बाढ़ समस्या पर केंद्रित है।
इस रिपोर्ट के पहले पैराग्राफ में ही लिखा गया है- इंजीनियरों तथा वैज्ञानिकों के तमाम प्रयत्नों के बावजूद हर बार नदियों के तटबन्ध टूट जाते हैं और नदियां अपनी धारा बदलने लगती हैं। बाढ़ नियंत्रण के इन प्रयत्नों पर हर साल भारी राशि खर्च की जाती है, लेकिन उसका अपेक्षित परिणाम नहीं आता। यह भी स्पष्ट है कि नदियों के दोनों किनारों पर जो ढांचे (तटबन्ध) खड़े किए गए हैं। उनके कारण नदियों के अंदर भारी मात्र में गाद(सिल्ट) जमा हो जाती है और जल बहाव बाधित होता है।
We are a voice to you; you have been a support to us. Together we build journalism that is independent, credible and fearless. You can further help us by making a donation. This will mean a lot for our ability to bring you news, perspectives and analysis from the ground so that we can make change together.
Comments are moderated and will be published only after the site moderator’s approval. Please use a genuine email ID and provide your name. Selected comments may also be used in the ‘Letters’ section of the Down To Earth print edition.