परियोजना का मकसद ग्रामीण और शहरी भारत दोनों में अपशिष्ट जल (वेस्ट वाटर) के उपचार के लिए सस्ती तकनीक विकसित करना और समाधान प्रदान करना है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), खड़गपुर ने सरस्वती 2.0 प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने का फैसला किया है। इस प्रोजेक्ट को यूरोपीय संघ और भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी और जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा 15 करोड़ रुपए का फंड दिया गया है। इसका मकसद ग्रामीण और शहरी भारत दोनों में अपशिष्ट जल (वेस्ट वाटर) के उपचार के लिए सस्ती तकनीक विकसित करना और समाधान प्रदान करना है।
आईआईटी, खड़गपुर द्वारा पहले 2012-17 के दौरान सरस्वती परियोजना चलाई गई थी, सरस्वती 2.0 इस परियोजना का विस्तारित रूप है। नई परियोजनाओं पर यूरोपियन यूनियन की ओर से 323 करोड़ रुपए फंड किए जाएंगे।
इस परियोजना के तहत आईआईटी, खड़गपुर द्वारा अपशिष्ट जल के उपचार के लिए तीन पायलट परियोजनाएं शुरू करेगा। इसके लिए, जल्द ही तीन संयंत्र स्थापित किए जाएंगे। इनमें से एक जैव-विद्युत रासायनिक फिल्टर के साथ और दूसरा फोटोथेरोट्रोपिक बायोरिएक्टर के साथ - और कीचड़ के अल्ट्रासोनिक उपचार के लिए लगाया जाएगा।
आदित्य चौबे सेंटर फॉर री-वाटर रिसर्च के प्रभारी प्रोफेसर मकरंद मदहो घांघरेकर ने कहा कि आईआईटी खड़गपुर तीन पायलट परियोजनाओं के लिए मुख्य अन्वेषक और भागीदार है। हम विभिन्न तकनीकों का उपयोग कर रहे हैं, जिनमें से सफलता का मूल्यांकन पायलट संयंत्रों के प्रदर्शन के आधार पर किया जाएगा। इसके अलावा अन्य संस्थानों में सात और पायलट संयंत्र स्थापित किए जाएंगे। ये संयंत्र जनवरी 2020 तक चालू हो जाएंगे।
परियोजना के लिए आईआईटी, खड़गपुर का यूरोपीय साझेदार बीओकेयू (प्राकृतिक संसाधन और जीवन विज्ञान विश्वविद्यालय, वियना) होगा, जबकि अन्य भारतीय साझेदार आईआईटी मद्रास, आईआईटी भुवनेश्वर, आईआईटी रुड़की, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग मुंबई, मालवीय नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी जयपुर, टीईआरआई स्कूल ऑफ एडवांस स्टडीज हैं।
भारत में घरेलू और नगरपालिका अपशिष्ट जल, जल और पर्यावरण के प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत है। अपशिष्ट जल के उपचार से नदियों, झीलों और तालाबों में प्रदूषण को रोका जा सकता है और साथ ही जल आपूर्ति का एक अतिरिक्त स्रोत प्रदान किया जा सकता है।
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