जल संकट पर काबू पाना हुआ मुश्किल, 27 करोड़ लोगों को करना होगा सामना
आईपीसीसी ने जलवायु परिवर्तन, मरुस्थलीकरण, भूमि उन्नयन, सतत भूमि प्रबंधन, खाद्य सुरक्षा और पारिस्थितिकी प्रणालियों में ग्रीनहाउस गैस के प्रवाह पर रिपोर्ट तैयार की है
On: Thursday 01 August 2019
भले ही दुनिया 2100 तक अपनी आबादी को 700 करोड़ तक कम कर ले, असमानताओं को कम कर दे, प्रभावी भू-उपयोग विनियमन को लागू कर ले, संसाधनों की खपत को सीमित कर ले और पर्यावरण के अनुकूल प्रौद्योगिकियों और जीवन शैली को अपना ले, लेकिन धरती को पानी की कमी का सामना करना ही पड़ेगा। जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) के अंतिम ड्राफ्ट में यह बात कही गई है। आईपीसीसी ने जलवायु परिवर्तन, मरुस्थलीकरण, भूमि उन्नयन, सतत भूमि प्रबंधन, खाद्य सुरक्षा और पारिस्थितिकी प्रणालियों में ग्रीनहाउस गैस के प्रवाह पर यह विशेष रिपोर्ट तैयार की है। रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा है कि पानी का संकट इस स्तर पर पहुंच गया है कि अब किसी भी हाल में यह संकट कम नहीं होगा।
संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) के सदस्य देशों के बीच इस रिपोर्ट पर इस सप्ताह जेनेवा में 2 अगस्त से 6 अगस्त तक होने वाली बैठक में चर्चा की जाएगी। बैठक में पानी की मांग और पानी की कमी में वृद्धि से सामाजिक व आर्थिक प्रभाव पर भी गहन विचार होगा। आईपीसीसी ने समाज एवं आर्थिक पथ के पांच मानकों के आधार पर यह रिपोर्ट लिखी है। इसमें वर्ष 2100 के लिए विश्व जनसंख्या, आय वितरण, संसाधन खपत, भूमि उपयोग आदि पर आधारित अनुमान हैं।
उदाहरण के लिए, पहले मानक में जनसंख्या में व़ृद्धि और कमी को शामिल किया गया है। अनुमान है कि 2100 तक दुनिया की आबादी में 700 करोड़ की कमी आएगी। इसके अलावा उच्च आय, असामनता में कमी, प्रभावी भूमि-उपयोग नियम, संसाधन की खपत में कमी, ग्रीन गैस हाउस गैस उत्सर्जन में खाद्य उत्पादन, फूड वेस्ट में कमी, खुला व्यापार, पर्यावरण के अनुकूल प्रौद्योगिकी और जीवन शैली को शामिल किया गया है। इस मानक में चुनौतियां कम हैं।
तीसरे मानक में आबादी में वृद्धि, कम आय और असमानताओं में वृद्धि, खपत में वृद्धि, व्यापार में बाधाएं और तकनीक परिवर्तन की धीमी गति शामिल हैं। इस तीसरे मानक में चुनौतियां अधिक हैं।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवॉयरमेंट (सीएसई) के क्लाइमेट पॉलिसी रिसर्चर, तरुण गोपालकृष्णन कहते हैं कि रिपोर्ट कहती है कि आबादी या संसाधन के अत्यंत सतर्क प्रबंधन के बावजूद, पानी की कमी की बात को हम टाल नहीं सकते। रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 2100 तक विश्व में लगभग 27 करोड़ (270 मिलियन) लोगों को जल संकट का सामना करना पड़ेगा।
धरती पर जलवायु परिवर्तन से होने वाले प्रभाव के आकलन के लिए तैयार की गई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन से न केवल मरुस्थलीकरण बढ़ेगा, बल्कि आने वाले दशकों में बड़ी आबादी को पानी की कमी का सामना करना पड़ेगा। भारत के लिए इसका गंभीर निहितार्थ होगा, क्योंकि भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र (328 मिलियन हेक्टेयर) में से 69 फीसदी (228 मिलियन) क्षेत्र सूखाग्रस्त है।