उपरोक्त में से कोई नहीं प्रावधान ने चुनावों के खिलाफ होने वाले प्रदर्शनों का विकेंद्रीयकरण कर दिया है
मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे राज्यों में फुसफुसाहट है, लेकिन इसे एक रूझान के तौर पर सुना जा सकता है कि लोग इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में “उपरोक्त में से काई नहीं” प्रावधान (नोटा) का बटन दबाने को प्राथमिकता दे रहे हैं। इसका मतलब यह है कि लोग यह दिखाएंगे कि उन्हें चुनाव लड़ रहे सभी उम्मीदवार में से कोई भी पसंद नहीं है, भले ही उनके वोट से किसी भी उम्मीदवार को कोई फायदा या नुकसान न हो। असल में, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में किसान संगठन मतदाताओं से इस विकल्प को अपनाने की अपील कर रहे हैं।
हाल ही में, एक टेलीविजन सीरिज में, चुनाव विश्लेषक प्रणय रॉय ने बड़ी संख्या में पहली बार मतदान करने वाले युवाओं से बातचीत की और उनसे उनके उम्मीदवार की पसंद पूछी तो उनमें से अधिकांश ने नोटा के संकेत दिए। और ऐसा करने के कारण बहुत स्पष्ट थे: पहला, वे अपने वादों को पूरा करने वाले राजनीतिक दलों पर विश्वास खो चुके हैं; दूसरा, नोटा ने उन्हें विरोध करने का अधिकार दिया। दूसरा कारण कुछ ऐसा है जो बहस का मुद्दा बन रहा है।
भारतीयों को यह अधिकार 2013 में मिला। तब से इस प्रावधान का उपयोग दो आम चुनावों (2019 के आम चुनावों सहित) और 42 विधानसभा चुनावों (वर्तमान आम चुनावों के साथ-साथ होने वाले चुनावों सहित) में किया जाता रहा है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स(एडीआर) के एक विश्लेषण के अनुसार, 2013 और 2017 के दौरान, 13.3 मिलियन (1 करोड़ 33 लाख) लोगों ने विभिन्न चुनावों में इस विकल्प का उपयोग किया। 2014 के आम चुनावों में, 60 लाख लोगों ने इस अधिकार का प्रयोग किया।
बेशक यह संख्या कोई बड़ी संख्या नहीं है, लेकिन यह स्पष्ट है कि नोटा मतदाताओं, खासकर युवा और बेचैन लोगों का पसंदीदा विकल्प बन कर उभर रहा है। यह देखा गया है कि (इसे आगे सांख्यिकीय विश्लेषण की आवश्यकता है) सामान्य निर्वाचन क्षेत्रों की तुलना में आदिवासी और अपेक्षाकृत कम विकसित संसदीय क्षेत्रों में इस विकल्प का अधिक उपयोग किया जा रहा है। इसी तरह, जहां भी पहली बार मतदाताओं की संख्या अधिक है, इस विकल्प का इस्तेमाल ज्यादा हो रहा है।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इस अधिकार को एक व्यक्ति की पसंद के रूप में करार दिया और तर्क दिया कि बेशक वे नोटा का बटन दबाकर विरोध दर्ज करा रहे हैं, लेकिन इससे लोगों की राजनीतिक भागीदारी बढ़ेगी।ह्यूस्टन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए विश्लेषण से पता चला है कि नोटा ने 2006 और 2014 के बीच मतदान प्रतिशत में 1 से 2 फीसदी की वृद्धि हुई। असल में, उन्होंने विशेष रूप से उल्लेख किया कि पहली बार के मतदाताओं ने विरोध दर्ज करने के लिए सिर्फ इस अभ्यास में भाग लिया।
हालांकि भारतीयों को वोट देने से इंकार करने का अधिकार है, लेकिन इसमें बहुत ही बोझिल प्रक्रिया शामिल है और यह निर्णय की गोपनीयता से भी समझौता करती है। इस संदर्भ में, और राजनेताओं के प्रति बढ़ते असंतोष को देखते हुए नोटा विकल्प व्यक्तिगत स्तर पर विरोध करने के लिए सबसे प्रभावी मंच बन गया है। सिविल सोसायटी द्वारा नोटा के लिए अपील करने के बाद लगता है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में नोटा की बड़ी राजनीतिक भागीदारी हो सकती है।
इतिहास से पता चलता है कि नोटा- जैसा प्रावधान युग-निर्माण की घटनाओं को जन्म देते हैं। यह व्यापक रूप से माना जाता है कि नोटा जैसा प्रावधान और मतदाताओं द्वारा इसके प्रयोग सेयूएसएसआर (सोवियत संघ) से अलग होकर कई देश बने और विश्व में नई व्यवस्था बनी। कई कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं का चुनाव नहीं किया गया और उनकी जगह नए नेताओं को लाया गया,जिन्होंने संघ के पतन के लिए मतदान किया। इसी तरह, पोलैंड में 1989 के चुनावों में, सभी उम्मीदवारों को अस्वीकार करने के लिए मतदाताओं द्वारा अस्वीकार करने का अधिकार (नोटाकी तरह एक समान प्रावधान) का प्रयोग किया गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री सहित कई कम्युनिस्ट नेताओं की हार से लेक वाल्सा की जीत हुई और कम्युनिस्ट शासन का पतन हुआ। वाल्सा ने इस प्रावधान को परिवर्तन का साधन कहा था।
मई के अंत तक, हमें यह देखने को मिलेगा कि नोटा का प्रयोग कैसे किया जाता है। बेशक, वह किसी उम्मीदवार को हराने के लिए एक व्यक्तिगत विरोध या सुनियोजित तरीके से किया गया हो, लेकिन एक शक्तिशाली लोकतांत्रिक उपकरण के रूप में इसके उदय पर संदेह नहीं किया जाना चाहिए। ऐसे में अब देखना यह है कि क्या नोटा, “हमारे पास कोई विकल्प नहीं है” (टीना) का जवाब बन सकता है?
We are a voice to you; you have been a support to us. Together we build journalism that is independent, credible and fearless. You can further help us by making a donation. This will mean a lot for our ability to bring you news, perspectives and analysis from the ground so that we can make change together.
India Environment Portal Resources :
Comments are moderated and will be published only after the site moderator’s approval. Please use a genuine email ID and provide your name. Selected comments may also be used in the ‘Letters’ section of the Down To Earth print edition.