अमृत से कम नहीं है मां का दूध, गाय से 200 गुणा अधिक होता है जीएमएल

वैज्ञानिकों ने मां के दूध में एक ऐसे घटक 'जीएमएल' की मौजूदगी का पता लगाया है जो शिशुओं में हानिकारक बैक्टीरिया की वृद्धि को रोक देता है, जबकि लाभकारी बैक्टीरिया को पनपने में सहायता करता है

By Lalit Maurya

On: Monday 14 October 2019
 

अंतराष्ट्रीय जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में छपे अध्ययन के अनुसार, मां के दूध में एक ऐसा घटक पाया जाता है, जो की हानिकारक बैक्टीरिया की वृद्धि को रोक देता है, जबकि लाभकारी बैक्टीरिया को पनपने में सहायता करता है। ग्लिसरॉल मोनोलॉरेट (जीएमएल) नामक यह घटक गायों के दूध की तुलना में मां के दूध में 200 गुना अधिक होता है। जबकि बच्चों के लिए बनाये जा रहे डिब्बा बंद दूध में यह बिलकुल नहीं होता। मानव दूध में जीएमएल की मात्रा 3,000 माइक्रोग्राम प्रति मिलीलीटर होता है, जबकि गायों के दूध में सिर्फ 150 माइक्रोग्राम प्रति मिलीलीटर और डिब्बा बंद दूध मेंबिलकुल नहीं होती | गौरतलब है कि ग्लिसरॉल मोनोलॉरेट, जो प्राकृतिक रूप से मां के दूध में मौजूद होता है, इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बेहतरीन खाद्य घटक के रूप में मान्यता प्राप्त है। जो कि जीवाणुओं कि वृद्धि रोकने में मददगार होता है ।

इस शोध के एक प्रमुख शोधकर्ता और नेशनल ज्यूइश हेल्थ में बाल रोग के प्रोफेसर डोनाल्ड लेउंग ने बताया कि "हमारे निष्कर्षों से पता चलता है कि मां के दूध में आश्चर्य जनक रूप से जीएमएल की अधिक मात्रा पायी जाती है । जो कि अपने आप में एक अनोखी बात है । यह रोग फैलाने वाले बैक्टीरिया के विकास को रोकने में अत्यंत प्रभावी होता है।" यूनिवर्सिटी ऑफ लोवा के कार्वर कॉलेज ऑफ मेडिसिन में माइक्रोबायोलॉजी एंड इम्मुनोलोजी के प्रोफेसर पैट्रिक श्लीवर्ट के अनुसार "एंटीबायोटिक्स, शिशुओं में होने वाले जीवाणुओं के संक्रमण से लड़ सकते हैं, वे रोग फैलाने वाले जीवाणुओं के साथ-साथ शरीर में पलने वाले फायदेमंद बैक्टीरिया को भी मार देते हैं, जबकि इसके विपरीत जीएमएल में एक विशिष्टगुण होता है, यह लाभकारी बैक्टीरिया को पनपने देता है, जबकि केवल रोग फैलाने वाले बैक्टीरिया को नष्ट कर देता है । हमें लगता है कि शिशु फार्मूला और गायों के दूध के लिए जीएमएल एक महत्वपूर्ण घटक हो सकता है जो दुनिया भर में शिशुओं के स्वास्थ्य को सुधारने में अहम् भूमिका निभा सकता है।"

जीवाणुओं से लड़ने में सक्षम होता है जीएमएल

अध्ययन में पाया गया कि जहां जीएमएल ने रोग फैलाने वाले बैक्टीरिया स्टाफिलोकोकस ऑरियस, बैसिलस सबटिलिस और क्लोस्ट्रीडियम परफ्रेनेंस के विकास को रोक दिया, जबकि न तो गायों के दूध और न ही शिशु फार्मूला का इनपर कोई प्रभाव पड़ा था। वहीं, दूसरी ओर मानव दूध का लाभकारी बैक्टीरिया एंटरोकोकस फेसेलिस के विकास पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। जबकि जिन शिशुओं ने अपनी मां का दूध पिया था, उनके शरीर में बड़ी मात्रा में लाभकारी बैक्टीरिया बिफीडो, लैक्टोबैसिली और एंटरोकोसी पाए गए। जब शोधकर्ताओं ने मानव दूध से जीएमएल को हटा दिया, तो दूध ने एस ऑरियस के खिलाफ अपनी रोगाणुरोधी क्षमता को खो दिया। वहीं, जब गायों के दूध में जीएमएल मिलाया गया, तो वह रोगाणुओं को रोकने के काबिल बन गया।

अध्ययन में यह भी पाया गया कि जीएमएल, एपिथेलियल सेल्स (उपकला कोशिकाओं) में आने वाली सूजन को भी रोक देता है। यह कोशिकाएं शरीर के महत्वपूर्ण हिस्सों जैसे आंत, त्वचा, रक्त वाहिकाओं, श्वसन अंगों आदि को ढके रखती है। यह हमारे शरीर के अंदर और बाहर एक बाधा के रूप में कार्य करती हैं, और उसे वायरस से बचती हैं। सूजन एपिथेलियल सेल्स को नुकसान पहुंचा सकती है, और बैक्टीरिया और वायरल दोनों प्रकार के संक्रमणों को फैलने में मदद करती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों दर्शाते है कि 2016में वैश्विक स्तर पर, 5 वर्ष से कम आयु के 15.5 करोड़ बच्चें अपनी उम्र के मुकाबले बहुत कम विकसित थे, जबकि 5.2 करोड़ बहुत पतले थे। वहीं 4.1 करोड़ बच्चे बहुत अधिक वजन वाले थे। जिनके पीछे की एक बड़ी वजह कुपोषण थी ।हर वर्ष 5 साल से कम आयु के 820,000 से भी ज्यादा बच्चों की जान बचाई जा सकती है, अगर सभी बच्चों को 0 से 23 महीने की आयु में स्तनपान कराया जाये। स्तनपान से बच्चों के बौद्धिक विकास में वृद्धि होती है साथ ही स्कूल में उनकी उपस्थिति में भी सुधार होता है ।वैसे भी शोध दिखातेहैं कि स्तनपान से लंबे समय तक स्वास्थ्य लाभ हो सकता है,इससे बच्चों में मधुमेह के होने या बाद के वर्षों में मोटे होने की संभावना बहुत कम हो जाती है।भविष्यमें जीएमएलपरकिये गए अनुसंधान यह निर्धारित करेंगे कि, क्या गाय के दूध और शिशु फार्मूला में भी पूरक के रूप में इसका प्रयोग शिशुओं के लिए लाभदायक हो सकता है।

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