Health

केरल के बाद मध्यप्रदेश रोकेगा एंटीबायोटिक का गलत इस्तेमाल

एंटीबायोटिक का इस्तेमाल इंसानों ही नहीं बल्कि पॉल्ट्री फॉर्म, मछली पालन, पशुपालन में भी किया जा रहा है। सरकार के इस अभियान में इंसान और जानवर दोनों को शामिल किया जा रहा है।

 
By Manish Chandra Mishra
Published: Friday 26 July 2019
Photo: Getty Image

एंटीबायोटिक चिकित्सा जगत के लिए वरदान जैसा है लेकिन इसके अत्यधिक और गैरजरूरी इस्तेमाल ने विश्व के सामने एक गंभीर स्थिति पैदा कर दी है। इस समस्या का नाम है एंटी-माइक्रोबियल रेसिस्टेंस (एएमआर)। एंटीबायोटिक का इस्तेमाल इंसानों के इलाज के साथ मछलीपालन, पशुपालन और पॉल्ट्री फॉर्म में चारे के लिए इतना किया जाने लगा कि अब जरूरत के समय उन दवाओं का कोई असर नहीं हो रहा है। चिकित्सा जगत में एंटीबायोटिक के इस्तेमाल को सीमित करने को लेकर काफी बहस चलती है। ऐसे समय में मध्यप्रदेश सरकार नेएंटी-माइक्रोबियल रेसिस्टेंस (एएमआर) से बचने के लिए शुक्रवार को एक अभियान शुरू किया है। इस तरह केरल के बाद मध्यप्रदेश एंटीबायोटिक के सीमित इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए कार्यक्रम शुरू करने वाला दूसरा राज्य बन गया है। एएमआर के खतरे को देखते हुए केरल ने वर्ष 2018 में यह योजना शुरू की थी। इसके तहत एंटीबायोटिक के इस्तेमाल पर नजर रखते हुए इसे सीमित करने की कोशिश होती है।

पशुपालन से लेकर मानव चिकित्सा में एंटीबायोटिक, इसलिए 6 विभाग आए एकसाथ

नेशनल हेल्थ मिशन, मध्यप्रदेश की ओर से जारी दस्तावेजों के मुताबिक भविष्य की आशंकाओं को देखते हुए मध्यप्रदेश स्वास्थ्य विभाग ने वर्ष 2018 में एंटीबायोटिक पॉलिसी पर काम करना शुरू किया और स्वास्थ्य विभाग के साथ भोपाल एम्स ने मिलकर एक नीति बनाई। इन प्रयासों को आगे बढ़ाने के लिए पशुपालन,डेयरी और मछलीपालन विभाग, पशु चिकित्सा विभाग, फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन, कृषि विभाग, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग अब मिलकर काम करेंगे। इस अभियान में निजी अस्पताल, दवाई विक्रेताओं को भी शामिल किया गया है। कृषि और पशुपालन, मछलीपालन से संबंधित विभाग जानवरों के ऊपर उनके चारे में प्रयोग होने वाले एंटीबायोटिक की निगरानी और रोकथाम करेंगे।  इसके अलावा स्वास्थ्य विभाग ने एम्स भोपाल व भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद यानि इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च के सहयोग से एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग और रेसिस्टेंस में कमी लाने के उद्देश्य से ब्लॉक लेवल तक हर स्वास्थ्य संस्थाओं में प्रशिक्षण के द्वारा मास्टर ट्रेनर बनाए जाएंगे, जो अंतरराष्ट्रीय मापदंडों के मुताबिक ही इन दवाओं का उपयोग होने देंगे।

दवाई के अलावा भी हमारे शरीर में जा रहा एंटीबायोटिक

नेशनल हेल्थ मिशन, मध्यप्रदेश के स्टेट नोडल ऑफिसर डॉ. पंकज शुक्ला के रिसर्च के मुताबिक जानवरों के खाने में उसकी बढ़त बढ़ाने के लिए एंटीमाइक्रोबियल का इस्तेमाल हो रहा है। जानवरों को खाकर इंसान भी इसे अपने शरीर में ले रहे हैं। इसके अलावा दूध को प्रिसर्व करने के लिए इसका प्रयोग होता है। मूर्गी के खाने के माध्यम से दवा का असर अंडों में भी होता है।

सॉफ्टवेयर कर रहा मॉनीटर

एम्स, भोपाल और मध्यप्रदेश सरकार के चिकित्सा विभाग द्वारा तैयार मॉनीटरिंग सॉफ्टवेयर फिलहाल 3,893 टीबी के मरीजों पर एंटीबायोटिक के प्रभाव की निगरानी कर रहा है। इसके साथ, 5,680 मेडिसिन डिस्पेंसरी, 281 चिकिस्तक, 748 फार्मासिस्ट पर भी अपनी नजर बनाए है। इस अभियान के तहत भविष्य में मोबाइल एप पर एंटीबायोटिक के उपयोग की निगरानी करने का प्रस्ताव है।

एएमआर इतना खतरनाक, हर वर्ष ले रहा 7 लाख लोगों की जान

विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस ने पिछले वर्ष अपने बयान में कहा था कि एएमआर के कारण विश्व में जन-स्वास्थ्य की दृष्टि से, एक आपातकाल स्थिति पैदा हो गयी है। इसके चलते अनेकों रोग, जैसे टीबी, जिनका अब तक इलाज संभव था अब लाइलाज हो रहे हैं क्योंकि इन बीमारियों को पैदा करने वाले ऐसे सूक्ष्मजीवी रोगाणु उत्पन्न हो रहे हैं जिन पर कोई दवा असर ही नहीं कर रही है। उनका मानना है कि यह एक भयावह स्थिति है और एंटी-माइक्रोबियल रेसिस्टेंस (एएमआर) के कारण 7 लाख लोग प्रति वर्ष मृत्यु को प्राप्त होते हैं और यदि इसको रोकने के कारगर कदम न उठाये गए, तो यह संख्या आने वाले वर्षों में 1 करोड़ तक बढ़ने की आशंका है।

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