Environment

क्या पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं उत्तराखंड के होम स्टे, एनजीटी ने मांगा जवाब

एनजीटी में दायर याचिका में कहा गया है कि बड़े होटल संचालक होम स्टे स्कीम का कॉमर्शियल फायदा उठा रहे हैं, जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है

 
By Varsha Singh
Published: Monday 11 November 2019
उत्तराखंड के जिले पौड़ी के गांव क्यार्क में दीपक नौटियाल द्वारा बनाया गया होम स्टे। फोटो: वर्षा सिंह

पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील राज्य उत्तराखंड में बहुत सी योजनाएं पर्यावरण को समझे बिना ही लागू कर दी गई। ऐसी ही एक योजना होम स्टे पर जब राष्ट्रीय हरित अधिकरण  (एनजीटी) ने सवाल उठाए हैं। राज्य सरकार को दो महीने के भीतर एनजीटी में जवाब दाखिल करना है कि क्या होम स्टे के लिए पर्यावरणीय अनुमति ली जा रही है। एनजीटी ने इस मामले में संयुक्त समिति गठित कर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और उत्तराखंड पर्यटन विकास परिषद से जवाब मांगा है।

अधिवक्ता गौरव बंसल ने एनजीटी में जनहित याचिका डाली। जिसमें कहा गया कि नैनीताल, मसूरी, धनौल्टी जैसे पर्यटन स्थलों पर होम स्टे के नाम पर कॉर्पोरेट सेक्टर भी काम कर रहा है। होटल बनाने के लिए बहुत सारी अनुमतियां लेनी होती हैं। एयर एक्ट, वाटर एक्ट, कचरा निस्तारण, इमारत की सुरक्षा, अग्नि सुरक्षा से संबंधित सभी मानक पूरे करने होते हैं। उनके मुताबिक होम स्टे के नाम पर बड़ी-बड़ी दुकानें चलने लगी हैं। जिसमें पर्यावरण से जुड़े पहलू पूरी तरह नजर अंदाज किए जा रहे हैं।

उत्तराखंड सरकार ने ये योजना स्थानीय लोगों की आजीविका बढ़ाने के लिए शुरू की थी। गौरव बंसल कहते हैं कि होटल वाले स्थानीय लोगों से कमरे किराए पर ले रहे हैं और उसे खुद होम स्टे के रूप में चला रहे हैं। इसका एक बहुत छोटा हिस्सा मकान के मालिक को दिया जाता है। उदाहरण के तौर पर सौ रुपये मकान मालिक को दिए तो नौ सौ रूपए खुद अपनी जेब में रख लिए। ग्रामीण इससे अनजान रहते हैं।

गौरव कहते हैं कि जो बिजली-पानी घरेलू इस्तेमाल के लिए खर्च की जा रही है यदि वो जगह कमर्शियल इकाई बन जा रही है तो उस पर कमर्शियल दरें लागू होनी चाहिए। वह मानते हैं कि गांवों में एक-दो कमरे वाले घरों को छोड़ भी दें, लेकिन जहां कई-कई कमरे होम स्टे में दिए गए हैं, वहां पर्यावरणीय मानक लागू होने चाहिए।

उत्तराखंड में करीब 1630 पंजीकृत होम स्टे हैं। पर्यटन विभाग के संयुक्त निदेशक वीएस चौहान कहते हैं कि फिलहाल उनके विभाग की जानकारी में इस तरह का कोई मामला नहीं सामने आया। वह बताते हैं कि होम स्टे का कॉनसेप्ट ये है कि यदि कोई अपने घर का एक या दो कमरा पर्यटकों को ठहरने के लिए देना चाहता है तो उसे होम स्टे के रूप में पंजीकृत करा सकता है। इसमें ये शर्त होती है कि जिसका घर है, उसे वहीं रहना होगा। वह बताते हैं कि हमारे ज़िला स्तर के अधिकारी इसकी जांच करते रहते हैं। केंद्र सरकार के पर्यटन विभाग की भी एक योजना है जिसमें बेड और ब्रेकफास्ट देने की अनुमति होती है, लेकिन इस योजना में मकान मालिक का वहां रहना जरूरी नहीं होता।

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के नोडल अधिकारी प्रदीप जोशी कहते हैं कि होम स्टे योजना के लिए पर्यावरण से जुड़े नियम नहीं बनाए गए हैं। यदि किसी इमारत का क्षेत्रफल 20 हजार वर्ग मीटर से अधिक है तो उसमें पर्यावरणीय अनुमति लेनी पड़ती है। होम स्टे के लिए उनके दफ्तर से कोई पर्यावरणीय अनुमति नहीं मांगी गई। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास होम स्टे के लिए अलग से कोई  व्यवस्था भी नहीं है। एनजीटी के आदेश की बाद संज्ञान में लाने पर प्रदीप जोशी कहते हैं उनका दफ्तर इसकी पड़ताल करेगा।

हल्द्वानी में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी डॉ आरके चतुर्वेदी कहते हैं कि उनकी जानकारी में आज तक इस तरह की कोई बात नहीं आई, न ही इस तरह की कोई शिकायत दर्ज करायी गई। वह कहते हैं कि उनके कार्य का क्षेत्र इतना बड़ा होता है जबकि होम स्टे बहुत छोटी गतिविधि होती है, इसलिए सामान्य तौर पर इस तरफ ध्यान भी नहीं दिया जा सका।

यदि आप उत्तराखंड में होम स्टे की जानकारी के लिए गूगल सर्च करें तो पर्यटन से जुड़ी वेबसाइट कई तरह के होम स्टे दर्शाएंगी। ऐसी जगहें भी जहां एक दिन ठहरने का किराया साढ़े सात हज़ार रुपये तक है। जिसमें पूल, जकोजी, हमाम बाथ, साइक्लिंग, नेचर व्यू, गोल्फ समेत तमाम सुविधाएं मिल जाएंगी। इतनी सारी चीजें यदि एक होम स्टे में है, जिसका किराया इतना अधिक है तो ये तय है कि यहां पर्यावरणीय अनुमति जरूरी है। घर में इस्तेमाल होने वाले पानी और पर्यटकों के लिए इस्तेमाल हो रहे पूल, जकोजी के पानी-सीवेज-कचरे के निस्तारण की दरें तो अलग ही होनी चाहिए।

हालांकि होम स्टे के कुछ सकारात्मक उदाहरण भी मौजूद हैं। ऐसे लोग जिन्होंने होम स्टे के तहत अपना स्वरोजगार शुरू किया और आज वे दूसरों के लिए उदाहरण भी साबित हो रहे हैं। दिल्ली में मल्टी नेशनल कंपनी की नौकरी छोड़कर वापस पौड़ी के अपने गांव में होम स्टे शुरू करने वाले दीपक नौटियाल इसके एक बेहतरीन उदाहरण हैं।

दीपक ने पौड़ी तहसील के क्यार्क गांव के अपने पैतृक मकान में चार कमरों का होम स्टे बनाया है। वह बताते हैं कि सोशल मीडिया के ज़रिये उन्होंने अपने होम स्टे को प्रमोट किया है। हालांकि सरकार के रवैये ने दीपक को निराश किया है। वह भी मानते हैं कि राज्य में पंजीकृत महज तीन-चार सौ ही लोगों के घरों में बने होम स्टे होंगे, जबकि ज्यादातर होटलियर्स के हैं। पर्यटन विभाग ने कभी भी मुझसे कोई फीड बैक नहीं लिया। पर्यटन विभाग का काम होम स्टे को पंजीकृत करने तक सीमित है, इसके बाद वे कभी इसके बारे में जानकारी नहीं लेते।

 

दरअसल राज्य सरकार ने वर्ष 2020 तक राज्य में 5000 होम स्टे तैयार करने का लक्ष्य तय किया है। जिसके लिए सरकार अनुदान भी देती है। लेकिन ये ध्यान नहीं रखा गया कि जो योजना ग्रामीण लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए थी, कहीं उसका दुरुपयोग तो नहीं हो रहा। न ही होम स्टे योजना से जुड़े पर्यावरणीय पहलुओं पर ध्यान दिया गया। एक बार होम स्टे पंजीकृत कर लेने के बाद कोई पड़ताल भी नहीं की जाती। इसलिए पर्यटन विभाग और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड इसके दूसरे पहलुओं से पूरी तरह अनजान है।

 

(पौड़ी के क्यार्क गांव में दीपक नौटियाल के होम स्टे की तस्वीर)

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