भू-जल और पानी की उपलब्धता को बनाए रखने वाली शिवना नदी यदि रूठ गई तो मंदसौर के निवासी जलसंकट से अभिशप्त हो जाएंगे।
विवेक मिश्रा/हरि नारायण गुप्ता
इस वक्त देश में छोटी नदियों पर बड़ा संकट मंडरा रहा है। मध्य प्रदेश के मंदसौर की शिवना नदी पूरी तरह उपेक्षा का शिकार है। औद्योगिक प्रदूषण के कारण नदी का पानी पूरी तरह से काला हो चुका है। हाथों में बांधा रक्षा धागा या कलावा तैयार करने वाली सूक्ष्म औद्योगिक इकाइयां बड़े पैमाने पर रंग और रसायन सीधा नदी में ही छोड़ रही हैं। चंबल से मिलने वाली शिवना नदी पर औद्योगिक प्रदूषण का सिर्फ इतना ही भार नहीं है। मक्का से स्टार्च बनाने वाली औद्योगिक इकाई अपना पूरा गंदा पानी सीधे नदी में गिरा रही है। नदी की सफाई न होने से जगह-जगह जलकुंभियां और शहर का कचरा भी मौजूद हैं। इसके चलते नदी का प्रवाह बाधित है। भू-जल और पानी की उपलब्धता को बनाए रखने वाली शिवना नदी यदि रूठ गईं तो मंदसौर के निवासी जलसंकट से अभिशप्त हो जाएंगे।
औद्योगिक प्रदूषण की मार झेलती शिवना नदी में घरेलू सीवेज की भी निकासी हो रही है। मंदसौर की नगर पालिका भले ही शिवना नदी को साफ करने का दावा करे लेकिन नदी में गंदगी का स्तर लगातार बढ रहा है। मसलन, शिवना सीवर लाइन प्रोजेक्ट भी दो टैंक बनाने के बाद बंद कर दिया गया। वर्ष 2002 में शिवना नदी को राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना में शामिल किया गया था। बावजूद इसके शिवना की स्थिति में कोई सुधार नहीं आया है।
लच्छा या कलावा उद्योग धागों को रंगने के लिए बड़े पैमाने पर रंग और डाई का इस्तेमाल करता है। इन उद्योगों का रंग और रसायन दोनों शिवना की जैवविविधता को प्रभावित कर रहा है। जिला विधिक न्यायालय में लीगल एडवाइजर और सामाजिक कार्यकर्ता माधुरी सोलंकी ने बताया कि उन्होने 11 दिसंबर, 2018 को शिवना नदी के प्रदूषण का मामला लोक अदालत में उठाया था। इसके बावजूद अभी तक कोई काम नहीं किया गया। करीब छह नाले सीवेज के नदी में गिर रहे हैं। 25 मई,2019 को लोक अदालत में सुनवाई थी। इस दौरान स्थानीय प्रशासन ने कहा कि वे सीवेज की निकासी रोकने के लिए सीवेज लाइन और अन्य काम इसलिए नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि उनके पास बजट नहीं है। वहीं, माधुरी सोलंकी ने डाउन टू अर्थ को बताया कि इतने महीने बीत चुके हैं लेकिन सिर्फ बहानेबाजी ही जारी है। सच्चाई यह है कि शहर में सीवेज लाइन डालने के लिए महज थोड़ी ही दूरी का गड़्ढ़ा खोदा गया है। राजाराम स्टार्च फैक्ट्री का गंदा पानी नदी में गिराया जा रहा है। पशुपति नाथ का दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं को नदी से उठने वाली बदबू का भी सामना करना पड़ता है। शहर का कचरा भी नदी में ही गिराया जा रहा है।
माधुरी सोलंकी का कहना है कि खानपुरा में ही लच्छा उद्योग का काम होता है। पूरा लाल पानी सीधे नदी में गिरा देते हैं जिससे नदी का रंग लाल हो गया है। 100 से अधिक परिवार रंगीन लच्छा तैयार करने में जुड़े हैं। यमुना जिए अभियान के संयोजक और नदियों के जानकार मनोज मिश्रा ने बताया कि बिना छोटी नदियों का ख्याल किए बड़ी नदियों की सफाई और संरक्षण असंभव है। शिवना में हो रहा औद्योगिक प्रदूषण न सिर्फ शिवना नदी को बल्कि चंबल नदी की जैवविविधता को नष्ट कर रहा है। नदी में जाने वाला डाई और खतरनाक रसायन आस-पास के भू-जल को भी प्रभावित करता है। ऐसे में नदी के आस-पास की आबादी भी प्रभावित होगी। उन्होंने कहा कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास काफी ताकत होती है वे चाहें तो ऐसे उद्योगों को बंद सकते हैं लेकिन ऐसा नहीं किया जा रहा है। एक नदी को मृतप्राय बनते हुए देखना बेहद शर्मनाक है। मनोज मिश्रा ने कहा कि यदि पर्यावरण के लिए प्रयास किए जा रहे होते तो भारत दुनिया में 180 देशों में 177वीं सूची पर न होता।
We are a voice to you; you have been a support to us. Together we build journalism that is independent, credible and fearless. You can further help us by making a donation. This will mean a lot for our ability to bring you news, perspectives and analysis from the ground so that we can make change together.
Comments are moderated and will be published only after the site moderator’s approval. Please use a genuine email ID and provide your name. Selected comments may also be used in the ‘Letters’ section of the Down To Earth print edition.