Health

वैज्ञानिकों को मिला प्रतिरोधी सूक्ष्मजीवों से लड़ने के लिए नया हथियार 

भारतीय वैज्ञानिकों ने एक नए पेप्टाइड का पता लगाया है, जो दवा प्रतिरोधी एसिनेटो बैक्टर बाउमानी बैक्टीरिया से लड़ने में मददगार हो सकता है।

 
By Umashankar Mishra
Published: Tuesday 30 July 2019
बैक्टीरिया के कोशिका समूह की इस माइक्रोस्कोपिकइमेज मेंहरे रंग के ओमेगा76 कोझिल्ली के साथ क्रिया करते देख सकते हैं। साइंस वायर

रोगजनक सूक्ष्मजीवों की दवाओं के प्रति बढ़ती प्रतिरोधक क्षमता के कारण अभी उपलब्ध एंटीबायोटिक बेअसर हो रहे हैं। भारतीय वैज्ञानिकों ने एक नए पेप्टाइड का पता लगाया है, जो दवा प्रतिरोधी एसिनेटो बैक्टर बाउमानी बैक्टीरिया से लड़ने में मददगार हो सकता है।

अमीनो एसिड की छोटी श्रृंखलाओं को पेप्टाइड कहा जाता है। कई पेप्टाइड मिलकर प्रोटीन का गठन करते हैं। पेप्टाइड के बारे में अब तक उपलब्ध जानकारी के उपयोग से बेंगलूरू स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान के शोधकर्ताओं नेओमेगा76 नामक इसनए पेप्टाइड को कंप्यूटर एल्गोरिथ्म की मदद से डिजाइन किया है।शोधकर्ताओं का कहना है कि यह सूक्ष्मजीवरोधी पेप्टाइडबैक्टीरिया की कोशिका झिल्ली को भेदकर उसे मार सकता है।

संक्रमित चूहों पर ओमेगा76 का परीक्षण करने पर पाया गया कि यह असरदार है और लंबी खुराक देने के बावजूद इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं देखा गया है।

एसिनेटोबैक्टर बाउमानीअस्पतालों में अधिकांश संक्रमणों के लिए जिम्मेदार छह प्रमुख सूक्ष्मजीव प्रजातियों में से एक है। इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता प्रोफेसर नागासुमा चंद्रा ने बताया कि “बैक्टीरिया संक्रमण के मामले में आमतौर पर उपयोग होने वाली दवाएं सूक्ष्मजीव कोशिकाओं में किसी खास मार्ग अथवा प्रक्रिया को बाधित करती हैं। लेकिन, प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने के लिए बैक्टीरिया रूपांतरित हो जाते हैं और दोबारा उभरने लगते हैं। जबकि, सूक्ष्मजीवरोधी पेप्टाइड बैक्टीरिया की कोशिका झिल्ली को भेदकर उसमें छेद कर देते हैं। ये पेप्टाइड बैक्टीरिया को कई तरीकों से अपना निशाना बनाकर उसे नष्ट कर देते हैं, जिससे दवाओं के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित होने की आशंका बेहद कम रहती है।”

भारतीय विज्ञान संस्थान से जुड़ी शोधकर्ता प्रोफेसर दीपशिखा चक्रवर्ती का कहना है कि “एसिनेटोबैक्टर बाउमानी के संक्रमण को अब तक पूरी तरह समझा नही जा सका था। इस बैक्टीरिया को वातावरण में पाया जाने वाला एक सामान्य सूक्ष्मजीव माना जाता था। लेकिन, अब यह स्वास्थ्य के लिए एक प्रमुख खतरा बनकर उभरा है। सघन चिकित्सा केंद्रों में भी इसका संक्रमण पाया जाना चिंताजनक है।”

शोधकर्ताओं की योजना पेप्टाइड के डिजाइन में सुधार करते रहने की है, ताकि इससे प्राप्त जानकारी का उपयोग मधुमेह रोगियों के घावों और सेप्सिस के उपचार में भी किया जा सके। यह अध्ययन शोध पत्रिका साइंस एडवांसेस में प्रकाशित किया गया है। शोधकर्ताओं में प्रोफेसर चंद्रा, प्रोफेसर चक्रवर्ती और दीपेश नागराजन के अलावा, नताशा रॉय, ओमकार कुलकर्णी, नेहा नानजकर, अक्षय दाते, सत्यभारती रविचंद्रन, चंद्रानी ठाकुर, संदीप टी. इंदुमति अपरामेया और सिद्धार्थ पी. शर्मा शामिल थे। (इंडिया साइंस वायर)

 

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