झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश (तेलंगाना) में बाघों की आबादी में बड़ी गिरावट है। इन चारों राज्यों में ही 2015 से 2018 के बीच खनन के लिए व्यापक वन भूमि का भी डायवर्जन हुआ है।
29 जुलाई, 2019 को केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की ओर से जारी की गई बाघों की स्थिति रिपोर्ट के मुताबिक छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में बाघों की संख्या काफी तेजी से घटी है। इसके साथ यह तथ्य भी गौर करने वाला है कि इन्हीं राज्यों में खनन के लिए बड़े पैमाने पर भूमि का डायवर्जन भी किया गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक छत्तीसगढ़ में बाघों की आबदी 2006 में जहां 26 थी वहीं 2018 में यह घटकर 19 पर आ गई है। ओडिशा में बाघों की आबादी 2006 में 45 थी जो घटकर 28 हो गई है। जबकि झारखंड में 2010 में 10 बाघ थे जो घटकर 5 तक पहुंच गया है। यदि रिपोर्ट के हिसाब से टाइगर रिजर्व की बात की जाए झारखंड के पलामू टाइगर रिजर्व में एक भी बाघ नहीं देखा गया। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में संयुक्त तौर पर बाघों की आबादी 2006 में 95 थी हालांकि यह अब 2018 में घटकर 74 पहुंच गई है। (48 आंध्र प्रदेश और 26 तेलंगाना में हैं)।
केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के डीआईजी निशांत वर्मा ने बताया कि “हम पूरी गंभीरता के साथ उन क्षेत्रों को देख रहे हैं जहां बाघों की संख्या में गिरावट आई है। इसके लिए विस्तृत अध्ययन की जरूरत होगी। इस अध्ययन के पूरा होते ही निश्चित तौर पर हम उन राज्यों को बाघों की आबादी बढ़ाने के लिए मदद देंगे।”
यदि 2015 से 2018 के बीच खनन के लिए डायवर्ट की गई भूमि के आंकड़े को जाचें तो यह दर्शाता है कि ओडिशा, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में बड़े पैमाने पर वन भूमि का डायवर्जन खनन गतिविधियों के लिए किया गया है। इस संबंध में आंकड़े दो फरवरी को केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की ओर से संसदीय प्रश्न के जवाब में प्रस्तुत किए गए थे।
इस आंकड़े के मुताबिक 2015 से 2018 के बीच 2,628 हेक्टेयर भूमि ओडिशा में और छत्तीसगढ़ में 1,657 हेक्टेयर वन भूमि डायवर्ट की गई। इसके अलावा आंध्र प्रदेश में खनन के लिए 1,241 हेक्टेयर व तेलंगाना में 1,930 हेक्टेयर वन भूमि का डायवर्जन किया गया। बाघों की स्थिति रिपोर्ट से जुड़े और भारतीय वन्यजीव संस्थान के यादवेंद्र झाला ने बताया कि “आप वन भूमि के डायवर्जन और बाघों की आबादी घटने को जोड़ सकते हैं। लेकिन हमने ऐसा अपनी रिपोर्ट में नहीं देखा है। यह सही है कि वन भूमि के नुकसान से वन्यजीव प्रजातियों पर नकरात्मक प्रभाव पड़ता है।”
वहीं, वाइल्डलाइफ फर्स्ट के प्रवीण भार्गव ने बताया कि वन भूमि के डायवर्जन का मतलब है कि सीधा पर्यावास या कॉरीडोर की क्षति। इससे नए वन किनारों का निर्माण हो रहा है। टुकड़ों में वन क्षेत्र का मतलब है खतरा। वन क्षेत्रों के भीतर सड़क का जाना शिकार और वन्यजीवों से संघर्ष के खतरे को कई गुना बढ़ा रहा। नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्डलाइफ एंड द फॉरेस्ट एडवाइजरी कमेटी परियोजनाओं को क्लीयरेंस दे रही है। इन सारे मुद्दों पर गौर किया जाना चाहिए। कम से कम प्रमुख बाघों के पर्यावास और कॉरीडोर को टुकड़ों में न बांटा जाए।
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