Water

365 दिन 68 हजार लोगों को पानी दे सकते हैं थर्मल प्लांट

जलसंकट और सूखे के इस दौर में भी देश के तमाम थर्मल पावर प्लांट जल उपभोग सीमा का पालन नहीं कर रहे हैं। न ही इस संबंध में कोई स्पष्ट जानकारी दे रहे। 

 
By Shripad Dharmadhikary, Sehr Raheja
Published: Tuesday 02 July 2019

यह ऐसा समय है जब पुराने तापीय संयंत्र बिजली आपके घर में बिजली तो पहुंचा रहे हैं लेकिन हमारे पानी के स्रोत सूखते जा रहे हैं। नियमों के विरुद्ध पानी का अत्यधिक दोहन करने वाले कोयला आधारित बिजली संयंत्र इस सूखे और जलसंकट की स्थिति को बढ़ाने का बड़ा कारण भी बन सकते हैं।

देश में तमाम कोयला आधारित बिजली संयंत्र अब भी ऐसे हैं जो पानी के इस्तेमाल को सीमित करने में पूरी तरह विफल रहे हैं। 2015 में सभी कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को दो वर्ष का (1 जनवरी, 2017 से पहले) मौका दिया गया था कि वह अपने पानी के इस्तेमाल को सीमित करें साथ ही तकनीकी में परिवर्तन कर ताप से उड़ने वाली राख (फ्लाई ऐश) पर भी अंकुश लगाएं। लेकिन करीब 4 वर्ष बीतने को है और बड़ी संख्या में बिजली संयंत्र ऐसा करने में विफल रहे हैं।

केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की ओर से दिसंबर, 2015 में यह अधिसूचना जारी की गई थी। इसमें पहली बार यह सीमा तय की गई थी कि ताप बिजली संयंत्र प्रत्येक यूनिट पैदा करने के लिए पानी का आखिर कितना इस्तेमाल कर सकते हैं। इसे विशिष्ट जल उपभोग की संज्ञा दी गई थी।

क्या कहती है 2015 की  अधिसूचना ?

इस अधिसूचना में पहली बार यह तय किया गया था कि 1 जनवरी, 2017 से सभी पुराने कोयला आधारित बिजली संयंत्र 3.5 घन मीटर प्रति मेगावाट घंटे से अधिक पानी का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं। मतलब अधिकतम 3.5 लीटर पानी का इस्तेमाल प्रति यूनिट (किलोवाट घंटे) में कर सकते हैं। वहीं, इसी अधिसूचना में यह भी कहा गया कि इस तारीख के बाद बने ताप संयंत्रों को 3 घन मीटर प्रति मेगावाट घंटे से ज्यादा पानी के इस्तेमाल की इजाजत नहीं होगी। साथ ही ऐसे ताप बिजली संयंत्र जो समुद्र के पानी का इस्तेमाल कर रहे हैं उन्हें इन नियमों से छूट होगी।

ऐसे बचेगा जल

केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) ने 2012 को अपनी रिपोर्ट में यह लिखा था कि कोयला आधारित बिजली संयंत्र 5 से 7 घन मीटर प्रति मेगावाट घंटे पानी का इस्तेमाल कर रहे हैं। वहीं, प्रत्येक 0.5 घन मीटर प्रति मेगावाट घंटे पानी की खपत कम करने से 1000 मेगावाट वाले प्लांट साल भर में 700 हेक्टेयर भूमि को सिंचित करने भर का 68 हजार लोगों को पूरे वर्ष पीने का और घरेलू इस्तेमाल के लिए पानी मुहैया करा सकता है। इस कटौती से स्थानीय स्तर पर लोगों को पानी की भरपूर उपलब्धता भी हो सकती है।

सिर्फ 51 फीसदी संयंत्र कर रहे नियमों का पालन

मंथन अध्ययन केंद्र की ओर से सूचना के अधिकार के तहत हासिल की गई जानकारी से कई बेहद चिंताजनक तथ्य सामने आए हैं। 12 राज्यों में सिर्फ 51 फीसदी कोयला आधारित बिजली संयंत्र ऐसे हैं जो नियमों का पालन कर रहे हैं।

156 संयंत्रों की स्वत: घोषित  स्थितियों का आकलन करने के बाद यह पता चला कि इनमें 66 संयंत्र जल उपभोग नियमों का पालन कर रहे हैं जबकि 30 संयंत्र ऐसे हैं जिन्होंने स्वीकार किया है कि वे अब भी अधिसूचना के नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं। इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली यह बात पता चली कि 46 प्लांट ऐसे हैं जिनका कोई आंकड़ा ही उपलब्ध नहीं है। इनके जवाब या तो  अस्पष्ट हैं या फिर यह संयंत्र बंद हो चुके हैं। अन्य 14 प्लांट समुद्री जल का इस्तेमाल कर रहे हैं इसलिए उन्हें जलउपभोग नियमों से छूट है।यह गौर करने के लायक है कि अधिसूचना के तहत नियमों का अनुपालन सही से किया जा रहा है या नहीं। इस बारे में स्वयं बिजली संयंत्र ही बता रहे हैं। हालांकि इनके दावे को न तो राज्य  प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एसपीसीबी) या अन्य स्वतंत्र एजेंसियों के जरिए जांचा जा रहा है और न ही सत्यापित किया जा रहा है।

156 प्लांट में छोटो कैपटिव पावर प्लांट को भी शामिल किया गया है। यदि हम सिर्फ बड़े पावर प्लांट को ही देखे, जिनकी निगरानी केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) के जरिए की जा रही है तो भी बहुत कम प्लांट्स के बारे में जानकारी हासिल होती है।  सीईए की डेली जनरेशन लिस्ट यानी डीजीआर से सिर्फ हमें 75 पावर प्लांट के बारे में ही जानकारी मिलती है। इनमें 34 पावर प्लांट ही आदेशों और नियमों का पालन कर रहे हैं जबकि 22 प्लांट ऐसे हैं जो नियमों का पालन नहीं कर रहे।

 

राज्यों के कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों की स्थिति

12 राज्यों में मौजूद 159 विद्युत संयंत्रों से मिली जानकारी की यदि बात की जाए तो जानकारी हासिल होने के मामले में भी स्थिति बहुत खराब है। मसलन, गुजरात में कुल 13 ताप विद्युत संयंत्र हैं, यहां से सिर्फ 2 संयंत्रों की जानकारी मिली। यह दो संयंत्र नियमों का पालन नहीं कर रहे। इसी तरह मध्य प्रदेश में 14 संयंत्र हैं यहां से सिर्फ एक प्लांट की जानकारी मिली जो नियमों का पालन कर रही है। सबसे ज्यादा विद्युत संयंत्र छत्तीसगढ़ में हैं। यहां 30 विद्युत संयंत्रों में से सिर्फ 15 की जानकारी हासिल हुई। जिनमें 8 नियमों का पालन कर रही हैं जबकि 3 नियमों के विरुद्ध जल उपभोग कर बिजली बना रही। 4 विद्युत संयंत्रों के जवाब अस्पष्ट हैं। महाराष्ट्र में 24 विद्युत संयंत्र हैं यहां सिर्फ 5 की जानकारी  हासिल हुई। इन पांच में 1 समुद्री जल का और 4 के जवाब अस्पष्ट हैं। उत्तर प्रदेश में 19 विद्युत संयंत्रों से 10 की जानकारी मिली, इनमें 4 नियमों का पालन कर रहे जबकि 6 नियमों के विरुद्ध संचालन कर रहे हैं। उड़ीसा में कुल 11 विद्युत संयंत्रों में 7 नियमों का पालन कर रहे जबकि 6 नियमों के विरुद्ध हैं। तमिलनाडु में 11 में से 4 समुद्री जल और 4 नियमों का पालन कर रहे जबकि 2 प्लांट नियमों के विरुद्ध हैं और एक प्लांट बंद हो चुका है। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, बिहार, झारखंड और असम से भी आधी-अधूरी जानकारी हासिल हुई है।

कर्नाटक, राजस्थान और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों की ओर से विद्युत संयंत्रों का कोई जवाब नहीं मिला। ज्यादातर राज्यों के जवाब बेहद अस्पष्ट और ऐसे उलझे हुए हैं जिन्हें समझना बिल्कुल भी आसान नहीं है। कई राज्यों ने सभी पावर प्लांट की जानकारी भी नहीं दी। कई राज्यों के आंकड़े बेहद पुराने हैं, इन आंकड़ों से सिर्फ खानापूर्ति की जा रही है। किसी तरह की मशीनरी नहीं है जो विद्युत संयंत्रों के आंकड़ों को अपडेट करे या जांचे।

7 दिसंबर, 2017 को सभी कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों को पर्यावरण मंत्रालय की अधिसूचना के हिसाब से नियमों का पालन करना था लेकिन 11 दिसंबर, 2017 को प्रदूषण निगरानी की सर्वोच्च संस्था केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने ही स्वयं सभी विद्युत संयंत्रों को यह पत्र लिखा कि बिना आप लोगों की सलाह के अधिसूचना पालन की कोई आखिरी तारीख तय नहीं की जाएगी। ऐसे में न सिर्फ सीपीसीबी जैसी संस्थाएं नियमों के पालन को लेकर ढ़ील बरत रही हैं बल्कि स्थितियों को और नाजुक बना रही हैं।

मंथन अध्ययन केंद्र ने अपनी सिफारिशों में कहा है कि सभी राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को सितंबर, 2019 से पहले विद्युत संयंत्रों के जल उपभोग की सीमा का नियम पालन सुनिश्चित कराना चाहिए। इसके अलावा रोजमर्रा आंकड़ो को जुटाने और जांचने की व्यवस्था दुरुस्त करनी चाहिए। यह आंकड़े सार्वजनिक भी होने चाहिए ताकि लोग खुद भी इन आंकड़ों पर नजर रखें।

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