Forests

खतरे में बाघों के ठिकाने फिर भी 12 सालों में संख्या हुई डबल

सर्वे का दायरा और कैमरों की संख्या बढ़ते ही भारत में बाघों की आबादी के आंकड़ों मे जबरदस्त सुधार हुआ है। दुनिया में 2006 में 3500 से कम बाघ थे 2019 में भी संख्या इसी आंकड़े के आस-पास है।

 
By Vivek Mishra
Published: Monday 29 July 2019
Photo : Sunita Narain

भारत सरकार के मुताबिक 2006 में बाघों की संख्या 1,411 थी जो 12 वर्षों बाद बढ़कर 2,967 (अनुमानित) हो गई है। केंद्र सरकार इसे उपलब्धि बनाकर इस बार के भारी-भरकम सर्वे को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज कराने की योजना बना रही है। इस तथ्य के साथ यह भी जानना दिलचस्प है कि बाघों की बस्ती (ऑक्यूपेंसी) 2006 में जहां 93,697 वर्ग किलोमीटर थी वहीं यह 2018 में घटकर 88,985 वर्ग किलोमीटर रह गई है। बाघों की आबादी बढ़ रही है जबकि उनकी बसेरा कम हो रहा है।

2014 में भारत में 2,226 बाघ थे। 2018 में 2,967 बाघ गिने गए। यानी बीते चार वर्षों में 741  बाघों की संख्या में वृद्धि हुई है। ऑक्यूपेंसी घटने के बावजूद बाघों की संख्या में वृद्धि का अनुमान यदि लगाए तो लगातार अपग्रेड होते सर्वे के तरीके ने इस आंकड़े को बढ़ाने में बड़ी वृद्धि की है। इस बार बाघों के सर्वे के लिए कैमरे 2 वर्ग किलोमीटर पर लगाए गए थे, जबकि पहले ये 4 वर्गकिलोमीट पर लगे थे। वहीं, 2014 में जहां 3,78,118 वर्ग किलोमीटर दायरे में सर्वे किया गया था, 2018 में 3,81,400 वर्ग किलोमीटर सर्वे किया गया है। कैमरों की संख्या भी 2014 के मुकाबले डबल कर दी गई। इस बार 3,282 वर्ग किलोमीटर अतिरिक्त सर्वे किया गया। इस अतिरिक्त क्षेत्र के सर्वे से क्या हासिल हुआ?

भारतीय वन्यजीव संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक वाईवी झाला ने 3,282 वर्ग किलोमीटर अतिरिक्त सर्वे के बारे में कहा कि टाइगर रिजर्व के बाहर 100 वर्ग किलोमीटर में एक बाघ मिलता है। ऐसे में अतिरिक्त सर्वे के मुताबिक अधिकतम सिर्फ 30 बाघों की संख्या ही जोड़ी जा सकती है। इसके अलावा सुंदरबन के करीब 180 बाघों की संख्या भी इस बार जोड़ी गई है। वहीं, उत्तराखंड में पश्चिमी सर्कल के वन संरक्षक पराग मधुकर धकाते ने डाउन टू अर्थ को बताया कि पहली बार पहाड़ी क्षेत्रों में नैनीताल, अल्मोड़ा, चंपावन वन प्रभाग की कुछ रेंज को टाईगर गणना में शामिल किया गया है। उत्तराखंड के पश्चिमी सर्कल को शामिल किए जाने से 100 से ज्यादा बाघों की संख्या गणना में जुड़ गई है। इसी तरह शहरी बाघों को भी गणना में शामिल किया गया है। यदि इन आंकड़ों को जोड़ा जाए तो करीब 300 से ज्यादा बाघ इस बार के सर्वे में नई जगह के जुड़ने से बढ़े हैं। हालांकि, वरिष्ठ वैज्ञानिक वाई वी झाला सर्वे का दायरा बढ़ने से बाघों की संख्या बढ़ने के तर्क को सही नहीं मानते हैं। उन्होंने कहा कि बाघों की संख्या बहुत अच्छी है लेकिन खतरा अभी टला नहीं है। शहरी बाघों को लेकर उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश के भोपाल को छोड़कर शहरी बाघ कही नहीं हैं। 

2014 की तुलना में इस बार के सर्वे में 3,282 वर्ग किलोमीटर बढ़ने को लेकर वन संरक्षक पराग मधुकर धकाते बताते हैं कि प्रत्येक 100 वर्ग किलोमीटर में बाघों की संख्या 1 से 27 तक हो सकती है। यह अलग-अलग क्षेत्र के मुताबिक होता है। उन्होंने बताया कि पश्चिमी घाट भू-भाग में सर्वाधिक करीब 27 बाघों का घनत्व है जबकि तमिलनाडु मुंडनथुरई में सबसे कम घनत्व 1 से 2 बाघ है। ऐसे में अतिरिक्त सर्वे के किलोमीटर में बाघों की संख्या में वृद्धि क्षेत्र के हिसाब पर निर्भर है। उन्होंने बताया कि दुनिया में बाघों के लिए इतना बड़ा सर्वे किसी देश में नहीं होता है। सर्वे का आकार छोटा था तो बाघों की संख्या भी भारत में कम थी। अब भी भारत में बाघों की संख्या बताए गए आंकड़ों से काफी ज्यादा हो सकती है। इसकी वजह यह है कि कई पहाड़ी क्षेत्र और खेतों में छुपने-रहने वाले बाघों की गिनती नहीं की जा सकी है। ऐसे में भविष्य में इनकी संख्या भी जब गणना में शामिल होगी तो बाघों के नंबर बढ़ सकते हैं। 

सर्वे के अलावा यदि बाघों के बसेरों की बात की जाए तो सुंदरबन दुनिया में बाघों के पर्यावास के लिए सबसे मुफीद जगहों में पांचवा स्थान रखता है। हालांकि, यहां भी मानवीय हस्तक्षेप के कारण बाघों के बसेरे पर बड़ा खतरा है। 2016 में पहली बार भारत और बांग्लादेश ने साझा प्रयास से रिपोर्ट जारी की थी। इस रिपोर्ट कहा गया था कि सुंदरबन में बढ़ते समुद्री स्तर के कारण 96 फीसदी जमीनों के डूबने का खतरा बना हुआ है। यह सिर्फ विशेष क्षेत्र में मौजूद जमीनों को ही नुकसान नहीं पहुंचाएगा बल्कि आबादी वाले इलाकों को भी इससे नुकसान होगा। समुद्री जलस्तर बढ़ने से बाघ आबादी वाले इलाकों की तरफ कूच करेंगे। इसके कारण आबादी और वन्यजीवों के बीच युद्ध की स्थिति तैयार हो सकती है। रिपोर्ट के मुताबिक सुंदरबन में 1973-2010 के दौरान 170 वर्ग किलोमीटर तटीय इलाके में मौजूद जमीन का कटाव हो चुका है। 2016 की इस रिपोर्ट के मुताबिक बांग्लादेश की सीमा में मौजूद सुंदरबन के जंगलों में कुल 106 बाघ थे, वहीं भारतीय सीमा में कुल 76 बाघ मौजूद थे।

भारत ने इससे पहले 2014 में बाघों की गिनती में बांग्लादेश की मदद की थी लेकिन इस बार बांग्लादेश ने बाघों की गिनती खुद की है, इसका विश्लेषण भारत ने किया है। हाल ही में बांग्लादेश में भी बाघों की आबादी का आंकड़ा बताया गया है। इस आंकड़े के मुताबिक सुंदरबन में अब 114 बाघ हैं। जबकि भारत में 29 जुलाई को जारी आंकड़े में कहा गया है कि सुंदरबन में भारत की तरफ अब 76 से बढ़कर 88 बाघ हैं। भारत और बांग्लादेश के आंकड़ों को अलग-अलग देखें तो कुल 8 से 12 बाघ बढ़े हैं। रिपोर्ट में ही सुंदरबन के भीतर तेल, राख, सीमेंट और यूरिया इत्यादि ढ़ोने वाले नावों के कारण हो रहे प्रदूषण के प्रति भी आगाह किया गया था। यह प्रदूषण अब भी जारी है।

29 जुलाई को बाघों की गिनती का आंकड़ा जारी करते हुए सरकार की ओर से यह दावा भी किया गया है कि 24 नवंबर, 2010 को रूस के सेंट पीटर्सबर्ग शहर में दुनिया के बाघ प्रमुख देशों ने बाघों की आबादी बढ़ाने का जो लक्ष्य तय किया था उससे चार साल पहले ही भारत ने यह लक्ष्य पूरा कर लिया है। 2010 में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग शहर में हुए तीन दिवसीय सम्मेलन में 13 देशों ने हिस्सा लिया था। इनमें भारत समेत बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, वियतनाम, म्यांमार, मलेशिया, इंडोनेशिया, चीन, रूस, थाईलैंड, लाओस शामिल थे। देशों ने 2022 तक बाघों की संख्या दोगुना करने का लक्ष्य तय किया था। तब दुनिया में 3500 से भी कम बाघ थे जबकि भारत में इनकी संख्या तब 1411 थी। तब के आंकड़ों के मुताबिक भी दुनिया के 70 फीसदी से ज्यादा बाघ तब भी भारत में ही थे। यदि इस आधार पर जांचे तो भारत में बाघों की संख्या अब दोगुनी हो चुकी है लेकिन दुनिया में बाघों की कुल संख्या अब भी 3500 के आस-पास ही बनी हुई है। 20वीं सदीं में बाघों की संख्या 1,00,000 थी।

इस वक्त नेपाल में 198, बांग्लादेश में 114, रूस में 480 से 540 के बीच, मलेशिया में 250 से 340 तक, चीन में 50, लाओस में 2010 में 17, थाईलैंड में 189, भूटान में 75, जबकि कंबोडिया, वियतनाम, म्यांमार में बाघ लुप्तप्राय हो चुके हैं। वरिष्ठ वैज्ञानिक वाई वी झाला ने कहा कि पलामू और अन्य क्षेत्रों में जहां बाघों की संख्या घटी है वहां नक्सल मूवमेंट काफी ज्यादा है। नई चुनौतियों के तौर पर यह है कि संरक्षण से पहले इस तरह के क्षेत्रों में लॉ एंड ऑर्डर को मेंटेन किया जाए। उन्होंने कहा कि इस बार का सर्वे काफी बेहतर है हालांकि, बाघों की तय संख्या कभी नहीं बताई जा सकती। वन संरक्षक पश्चिमी वन वृत्त पराग मधुकर धकाते ने सर्वे को लेकर डाउन टू अर्थ से कहा कि बीते चार वर्षों में बाघों के शिकार और दुर्घटना की संख्या में काफी कमी आई है। बढ़े हुए बाघों की संख्या से एक बात स्पष्ट है कि मानव और बाघों के बीच संघर्ष काफी बढ़ेगा। हाल ही में उत्तर प्रदेश के पीलीभीत की घटना को देखा जा सकता है।

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