Forests

उत्तराखंड वन विभाग ने सहेजी बरगद-पीपल की 121 प्रजातियां

हल्द्वानी में स्वामी विवेकानंद, आदि शंकराचार्य, गुरु नानक देव से जुड़े वृक्षों की कटिंग लाकर नई पौध तैयार की जा रही है 

 
By Varsha Singh
Published: Wednesday 27 November 2019
उत्तराखंड के नैनीताल जिले के लालकुआं नगर पंचायत में फाइकस (बरगद-पीपल) के करीब 121 अलग-अलग प्रजातियों के पौधों को संरक्षित किया गया है। फोटो: वर्षा सिंह

उत्तराखंड वन विभाग का रिसर्च विंग पिछले कुछ वर्षों से अलग-अलग प्रजातियों के पौधों को संरक्षित करने का कार्य कर रहा है। ताकि इनमें दिलचस्पी रखने वाले लोग इन्हें देख सकें। इसके साथ ही इन पर वैज्ञानिक अध्ययन किया जा सके। इसी कड़ी में नैनीताल ज़िले के लालकुआं नगर पंचायत में करीब 3 हेक्टेयर क्षेत्र में फाइकस (बरगद-पीपल) के करीब 121 अलग-अलग प्रजातियों के पौधों को संरक्षित किया गया है। उत्तर भारत में ये सबसे बड़ा पीपल-बरगद उद्यान है। 

वर्ष 2013 में स्थापित फाइकस उद्यान में आने पर आपको एक ही जगह देश के अलग-अलग हिस्सों से लाकर संरक्षित किए गए फाइकस वृक्ष मिलेंगे। पर्वतीय और मैदानी हिस्सों के साथ ही अंडमान, त्रिपुरा, मेघालय, उत्तरपूर्वी राज्यों में पायी जाने वाली फाइकस की प्रजातियां और देश के दक्षिणी राज्यों से लाई गई प्रजातियां यहां सहेजी गई हैं।

चीफ कंजर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट (रिसर्च) संजीव चतुर्वेदी बताते हैं कि वन विभाग ने करीब 27 ऐसे प्रोजेक्ट शुरू किये हैं, जिसमें अलग-अलग प्रजातियों के पेड़-पौधों को संरक्षित किया गया है। फाइकस उद्यान में ऐसी प्रजातियां भी सहेजी गई हैं, जिनका अस्तित्व खतरे की जद में है। इसके साथ ही यदि कोई फाइकस पर किसी तरह का वैज्ञानिक शोध करना चाहे तो ये उद्यान उसके लिए एक मुफीद जगह होगी।

संजीव कहते हैं कि इस तरह के प्रोजेक्ट का मकसद लोगों में पेड़-पौधों के प्रति जागरुकता लाना और उन्हें संवेदनशील बनाना भी है। पीपल-बरगद जैसे वृक्ष चिड़ियों के जीवन के लिए जरूरी है। चिड़ियों के साथ छोटे-छोटे कितने ही जीवों के घर होते हैं। साथ ही वन्यजीवों के आहार का एक अहम हिस्सा हैं। ये वृक्ष जैव-विविधता का केंद्र है। हमारे पारिस्थतकीय तंत्र में इनकी भूमिका के बारे में लोगों को जागरुक करना जरूरी है। इसके लिए उद्यान में साधारण भाषा में इनके पर्यावरणीय महत्व को बताने की कोशिश की जा रही है।

इसी तरह, हल्द्वानी में वन विभाग ने लोगों की आस्था से जुड़े वृक्षों को सहेजने की कोशिश की है। इस उद्यान में आने पर एक किस्म की आध्यात्मिक अनुभूति भी मिलेगी। जब आपको ये पता चलेगा कि ऐसे ही पीपल के वृक्ष (फाइकस रिलीजिओसा) के नीचे वर्ष 1890 में अल्मोड़ा के काकड़ीघाट में स्वामी विवेकानंद ने ध्यान लगाया था। इसी तरह यहां जोशीमठ से करीब 1200 वर्ष पुराने बरगद वृक्ष की जड़ें और कटिंग लाकर पौध तैयार की जा रही है। जिसे कल्पवृक्ष भी कहा जाता है। माना जाता है कि आदि शंकराचार्य ने जोशीमठ में कल्पवृक्ष के नीचे तपस्या की थी। ऐसे ही चंपावत के रीठासाहिब में गुरुनानक देव ने जिस वृक्ष के नीचे ध्यान लगाया था, उसके बीज लाकर भी यहां सहेजने की कोशिश की गई है।

नैनीताल ज़िले के लालकुआं नगर पंचायत में करीब 3 हेक्टेयर क्षेत्र में फाइकस (बरगद-पीपल) उद्यान विकसित किया गया है। फोटो: वर्षा सिंह

इसमें अभी उत्तराखंड से जुड़े धार्मिक वृक्ष ही तैयार किये गये हैं। इसके साथ ही दूसरे राज्यों से भी इस तरह के पौधों को इकट्ठा करने की अनुमति मांगी जा रही है। संजीव चतुर्वेदी कहते हैं कि इस तरह हम इन वृक्षों को लोगों की आस्था से जोड़कर संरक्षित कर सकेंगे।

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