उत्तराखंड के 43 फीसदी इलाकों में पानी की न्यूनतम उपलब्धता भी नहीं
नदियों के घर में रहने वाले लोग पानी के लिए तरस रहे हैं। गंगा-यमुना, भागीरथी, अलकनंदा, मंदाकिनी, शारदा, सरयू, गोरी-काली नदियां जिस राज्य की पहचान हैं, उस उत्तराखंड में गर्मी और पानी की जरूरत बढ़ने के साथ ही इसकी किल्लत शुरू हो गई है। जल स्रोतों का स्तर नीचे गिर रहा है, पानी के लिए लोग एक नल के चारों ओर अपनी बाल्टियां लेकर खड़े हो रहे हैं। पानी के टैंकरों का इंतज़ार कर रहे हैं। पेयजल संकट से निपटने के लिए जल संस्थान की ओर से किए जा रहे इंतज़ाम नाकाफी साबित हो रहे हैं।
देहरादून, नैनीताल, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, चंपावत, टिहरी, पौड़ी, रुद्रप्रयाग समेत तकरीबन सभी जिलों में तापमान बढ़ने के साथ ही जल संकट बढ़ गया है। ऐसे ग्रामीण इलाके जहां अब तक पानी की पाइप लाइनें ही नहीं पहुंचीं हैं, वहां जलस्रोतों के सूखने से स्थिति बेहद गंभीर हो गई है।
राज्य के पेयजल सचिव अरविंद ह्यांकी कहते हैं कि राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में वाटर कवरेज 57 प्रतिशत है। यानी 43 प्रतिशत क्षेत्र ऐसे हैं जहां एक व्यक्ति को न्यूनतम उपलब्ध पानी (40 लीटर प्रति दिन/ प्रति व्यक्ति) नहीं मिल पा रहा है। अरविंद ह्यांकी कहते हैं कि इस मुश्किल को दूर करने के लिए हमें नई योजनाओं की आवश्यकता है। इसके लिए केंद्र सरकार से भी पैसा ले रहे हैं। राज्य के आर्थिक आय के साधन सीमित हैं इसलिए एशियन डेवलपमेंट बैंक जैसे संस्थाओं से हम कर्ज लेने की भी कोशिश करते हैं। पेयजल सचिव कहते हैं कि राज्य में पानी की स्थिति धीरे-धीरे बेहतर हो रही है। वह बताते हैं कि पहाड़ के गांवों में ग्रेविटी बेस्ड योजनाएं चलायी जा रही है। लेकिन जलस्तर कम होने से इसमें दिक्कत आती है। ऐसी सूरत में हम नदियों से पानी लेते हैं। इसके लिए लिफ्ट स्कीम चलायी जाती है। जो अपने में बहुत महंगी योजना है।
पानी की चुनौतियां
पानी को लेकर नगरीय क्षेत्रों की स्थिति भी बेहद चिंताजनक है। राज्य में कुल 92 स्थानीय निकाय हैं। इनमें 71 नगरों में जला आपूर्ति 70 लीटर प्रति व्यक्ति प्रति दिन से कम है। इन क्षेत्रों में पेयजल आपूर्ति के लिए राज्य को 2860 करोड़ रुपये की जरूरत है। जबकि पहले चरण में 32 नगरों में वाह्य सहायतित परियोजनाओं के तहत 1014.70 करोड़ रुपये लागत की परियोजनाएं प्रस्तावित हैं। राज्य में मौजूद कुल 39,311 बस्तियों में से 22,781 बस्तियों में मानक के आधार पर पेयजल आपूर्ति की जा रही है। बाकी 16,530 बस्तियों में मानक से कम पानी उपलब्ध है। इस दिक्कत को दूर करने के लिए राज्य को करीब 4 हजार करोड़ की जरूरत है। लेकिन सीमित वित्तीय संसाधनों के चलते राज्य सरकार इसक लिए कुछ विशेष कार्य नहीं कर पा रही है।
सूख रही जल धाराएं
नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक पर्यावरण में आ रहे बदलावों की वजह से हिमालय से निकलने वाली 60 प्रतिशत जलधाराएं सूखने के कगार पर हैं। इन्हीं जल धाराओं से गंगा-यमुना जैसी नदियां बनती हैं। रिपोर्ट के अनुसार राज्य में पिछले 150 सालों में ऐसी जल धाराओं की संख्या 360 से घटकर 60 तक आ गई है।
झीलों की नगरी में पानी की कहानी
गर्मियां शुरू होते ही नैनीताल में पानी की समस्या गहरा गयी है। बढ़ते तापमान के चलते जल स्रोतों, नदियों, नहरों, तालाबों, गदेरों और चाल-खाल के जलस्तर में गिरावट आ रही है। लोग पानी के लिए प्रदर्शन करने लगे हैं।
नैनीताल के जिलाधिकारी विनोद कुमार सुमन ने इस स्थिति से निपटने के लिए 30 जून तक पानी के उपयोग को लेकर नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इसके तहत नए पानी के कनेक्शन पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाई गई है। भवन निर्माण के लिए पानी के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया गया है। सर्विस सेंटरो पर वाहनों की धुलाई पर रोक लगाई गई है, सिर्फ ड्राईवॉश की अनुमति दी गई है। ऐसी जरूरतों के लिए पानी का इस्तेमाल करने पर कार्रवाई की बात कही गई है। इसके साथ ही सर्विस कनेक्शन में सीधे पम्प का प्रयोग प्रतिबन्धित किया गया है। पेयजल का सिंचाई, धुलाई, जैसे कार्यों में इस्तेमाल प्रतिबन्धित किया गया है। साथ ही छत की टंकियों से पानी गिरता पाए जाने पर दण्डात्मक कार्रवाई और पानी का कनेक्शन काटने के निर्देश दिये गये हैं। पानी की पाइप लाइनों में लीकेज बंद करने को कहा गया है। जिलाधिकारी का कहना है कि उन्होंने सभी उप जिलाधिकारियों और सिटी मजिस्ट्रेट को पानी की निगरानी के लिए कहा है।
पानी के प्रबंधन के लिए राज्य में पेयजल संसाधन विकास एवं निर्माण निगम, उत्तराखंड जल संस्थान, जलागम और उत्तराखंड ग्रामीण पेयजल आपूर्ति और स्वच्छता परियोजना (स्वजल) जैसी संस्थाएं कार्य कर रही हैं। लेकिन पानी के प्राकृतिक जल स्रोतों को हम संभाल नहीं पा रहे। पानी की उपलब्ध के लिए राज्य के पास पैसों की किल्लत है। पानियों के घर में रहने वाले लोग प्यासे हैं।
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