पीने के पानी में बढ़ रहा है माइक्रोप्लास्टिक : डब्ल्यूएचओ
विशेषज्ञों का मानना है कि इस बात के सबूत नहीं मिले हैं कि माइक्रोप्लास्टिक स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हैं, लेकिन अंतिम निर्णय पर पहुंचने से पहले अभी और अधिक शोध की आवश्यकता है
On: Thursday 22 August 2019
विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा जारी 124 पेजों की नयी रिपोर्ट के अनुसार, माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी पीने के पानी में तेजी से बढ़ती जा रही है, लेकिन अभी तक इस बात के कोई पुख्ता सबूत नहीं मिले हैं कि इससे इंसानों को किसी तरह का खतरा है। हालांकि, इसके साथ विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यह बात भी मानी है कि इसको पूरी तरह से यह समझने के लिए अभी और अधिक शोध करने की आवश्यकता है । जिससे हम यह जान सके कि प्लास्टिक पर्यावरण में कैसे फैलता है और मानव शरीर को किस तरह प्रभावित कर करता है।
मूलतः माइक्रोप्लास्टिक की कोई सार्वभौमिक परिभाषा नहीं है, लेकिन डब्ल्यूएचओ के अनुसार,माइक्रोप्लास्टिक, प्लास्टिक के बहुत छोटे अंश या रेशे हैं। जिनका आकार सामान्यत: 5 मिमी से कम होता है। हालांकि पीने के पानी में यह कण 1 मिमी जितने छोटे भी हो सकते हैं। वास्तव में 1 मिमी से छोटे कणो को नैनोप्लास्टिक कहा जाता है।
जरूरी नहीं कि यह हानि रहित भी हो
रिपोर्ट में कहा गया है कि हाल के दशकों में प्लास्टिक का उत्पादन तेजी से बढ़ रहा है, एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि 1950 से लेकर अब तक 830 करोड़ टन से अधिक प्लास्टिक का उत्पादन कर चुका है और 2025 तक इसके दोगुना हो जाने का अनुमान है । वहीं दुनिया भर में हर मिनट 10 लाख पीने के पानी की बोतलें खरीदी जाती हैं जो कि प्लास्टिक से बनी होती है । जिसका सीधा अर्थ यह हुआ कि अब प्लास्टिक के छोटे अंश और रेशे बड़ी मात्रा में कणों के रूप में टूट रहे हैं और पानी की स्रोतों और पाइपों के जरिये अधिक मात्रा में हमारे शरीर में पहुंच रहे हैं ।
प्लास्टिक के छोटे कण कई तरह से हमारे पीने के पानी में मिल सकते हैं, लेकिन मुख्य रूप से बारिश या बर्फ, अपशिष्ट जल और उद्योंगों से निकले प्रदूषित जल से यह मुख्य तौर पर हमारे पाने में मिल जाते हैं । डब्ल्यूएचओ के अनुसार बोतलबंद पानी में बोतल और उसके ढक्कन के रूप में इस्तेमाल होने वाला पॉलिमर भी चिंता का विषय है।
माइक्रोप्लास्टिक सीधे तौर पर भले ही हमें नुकसान न पहुंचते हों, पर प्लास्टिक में प्रयुक्त होने वाले अन्य रसायनों से मनुष्य प्रभावित हो सकता है, वहीं माइक्रोप्लास्टिक की सहायता से रोग पैदा करने वाले सूक्ष्म जीव और बैक्टीरिया आसानी से फैल सकते हैं। साथ ही यह बैक्टीरिया को एंटीबायोटिक प्रतिरोधी होने में भी मदद करता है।
रिपोर्ट के अनुसार 150 माइक्रोमीटर (एक बाल की मोटाई के) से बड़े माइक्रोप्लास्टिक्स के मानव शरीर द्वारा अवशोषित किये जाने की संभावना न के बराबर है, वहीं नैनो आकार के प्लास्टिक और बहुत छोटे माइक्रोप्लास्टिक कणों के अवशोषित होने की अधिक सम्भावना है, लेकिन शोधकर्ताओं का मानना है कि उनके भी हानिकारक मात्रा में जमा होने की संभावना नहीं है। हालांकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस विषय में अभी डेटा सीमित है।
जरुरी है प्लास्टिक का सही उपयोग और कचरे का उचित प्रबंधन
रिपोर्ट में कहा गया है कि अपशिष्ट जल के उचित उपचार और फिल्टर के जरिये माइक्रोप्लास्टिक्स को 90 फीसदी तक कम किया जा सकता है । नीति निर्माताओं और जनता को चाहिए कि वो प्लास्टिक का बेहतर प्रबंधन और जहां तक संभव हो सके इसके के उपयोग को कम करने के उपाय करने चाहिए ।
शोधकर्ताओं ने माना है कि पीने के पानी में माइक्रोप्लास्टिक्स की नियमित निगरानी की आवश्यकता नहीं है, इसकी जगह हमें बैक्टीरिया और वायरस को दूर करने पर अधिक जोर देना चाहिए, क्योंकि इनसे हमें कही अधिक खतरा है। डब्ल्यूएचओ की मानें तो दुनिया भर में लगभग 200 करोड़ लोग दूषित पानी पीने के लिए मजबूर हैं। जिसका परिणाम है कि 2016 में दूषित पेयजल के चलते डायरिया से लगभग 485,000 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था ।
डब्ल्यूएचओ के सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग की निदेशक मारिया नीरा ने एक बयान में कहा कि, "हमें तत्काल माइक्रोप्लास्टिक्स और उसके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में अधिक जानने की आवश्यकता है क्योंकि वे हर जगह - हमारे पीने के पानी में हैं । साथ ही हमें दुनिया भर में प्लास्टिक प्रदूषण में होने वाली वृद्धि को भी रोकने की आवश्यकता है ।"