एनजीटी की यमुना प्रदूषण के लिए गठित निगरानी समिति ने यूपी के मुख्य सचिव समेत आला अधिकारियों से 30 अप्रैल और शुरुआती मई तक पूर्व के सभी आदेशों पर अमल की रिपोर्ट तलब की है।
उत्तर प्रदेश में यमुना नदी मैला ढोने के लिए अभिशप्त हैं। नदी की स्थिति दिनों-दिन दयनीय हो रही है। गाजियाबाद और लोनी के पास नालों के जरिए बिना शोधित औद्योगिक कचरा और मल-मूत्र सीधे यमुना नदी में गिराया जा रहा है। हैरानी की बात यह है कि यूपी के मुख्य सचिव समेत वरिष्ठ अधिकारी इस बात से पूरी तरह अनजान हैं। अधिकारियों के इस रवैये पर एक बार फिर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की निगरानी समिति ने कड़ी नाराजगी जाहिर की है। समिति ने कहा कि अधिकारी यदि सहयोग नहीं करेंगे तो वे प्रदूषण की रोकथाम में पूरी तरह असहाय हो जाएंगे।
एनजीटी की निगरानी समिति में दिल्ली की पूर्व मुख्य सचिव शैलजा चंद्रा और एनजीटी के पूर्व विशेषज्ञ सदस्य बीएस साजवान शामिल हैं। इस समिति ने एक बार फिर यूपी के मुख्य सचिव समेत आला अधिकारियों को गाजियाबाद में नालों के जरिए हो रहे प्रदूषण को रोकने और यमुना के डूब क्षेत्र के संरक्षण और संवर्धन के साथ वेटलैंड यानी नमभूमि को विकसित करने का आदेश दिया है। यूपी में इसके बाद अधिकारियों के गलियारे में हड़कंप मचा हुआ है। मुख्य सचिव ने बैठक कर शुरुआती कोरम पूरा कर दिया है। निगरानी समिति के आदेशों पर तफसील से जाएं। इससे पहले यमुना के प्रति असंवेनशील अधिकारियों की बैठक वाले तथ्य भी जान लीजिए।
इसी 9 अप्रैल को यूपी के शीर्ष अधिकारियों का एक प्रतिनिधि मंडल दिल्ली में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की ओर से गठित यमुना प्रदूषण की निगरानी करने वाली समिति के पास पहुंचा। यहां ये बताना जरूरी है कि यह प्रतिनिधिमंडल अपनी मर्जी से नहीं बल्कि पूर्व में हाजिर होने का आदेश दिए जाने के बाद पहुंचा था। बावजूद इसके कुछ अधिकारी इस बैठक में भी नहीं पहुंचे। एनजीटी की निगरानी समिति की ओर से पूछे गए हर सवाल पर अधिकारियों ने या तो चुप्पी साधना बेहतर समझा या फिर वे जानकारियों से अनजान ही बने रहे। इतना ही नहीं, कुछ अधिकारी बरसों पुराने आदेशों पर अमल न होने के लिए अपने ट्रांसफर-पोस्टिंग की दलीलें भी देने लगे।
दरअसल, गाजियाबाद में लोनी और इंदिरापुरम नाला कई अवैध औद्योगिक ईकाइयों का प्रवाह और अवैध कालोनियों से निकलने वाला मल-मूत्र लेकर साहिबाबाद नाले में मिल जाता है। यह साहिबाबाद नाला सीधा यमुना में जाकर गिरता है। बीच में नाले के पानी को रोककर शोधन के लिए न कोई व्यवस्था है और न ही व्यवस्था की कोई कोशिश। पूरा औद्योगिक प्रवाह और मल-मूत्र यमुना नदी में जाकर घुल-मिल जाता है। यह बात करीब एक बरस से चल रही है। अधिकारियों को बैठक करने और कार्रवाई करने का आदेश मिलता है लेकिन न तो समय पर बैठक होती है और न ही कोई कार्रवाई। एनजीटी की यमुना प्रदूषण निगरानी समिति ने आदेश दिया था कि नमभूमि विकसित करने के साथ ही डूब क्षेत्र का सीमांकन होना चाहिए। इसके अलावा हर उस अवैध औद्योगिक ईकाई के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए जो बिना मंजूरी के चल रही है या फिर उसके पास औद्योगिक प्रवाह के शोधन को लेकर औद्योगिक प्रवाह शोधन संयंत्र (ईटीपी) नहीं संचालित है।
9 अप्रैल को बैठक में साहिबाबाद नाले के प्रदूषण की शिकायत करने वाली याची सुशील राघव और यूपी जल निगम व सिंचाई विभाग, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) आदि विभागों के अधिकारी मौजूद थे। बैठक की निचोड़ में एनजीटी गठित निगरानी समिति ने कहा कि सभी अधिकारियों से ज्यादा याची सुशील राघव को जमीनी जानकारी मालूम है। समिति ने कहा कि सर्वे और कार्रवाई के काम में सुशील राघव की मदद ली जा सकती है।
बैठक में सिलसिलेवार तरीके से हर विषय पर अधिकारियों से स्थिति और कार्रवाई की जानकारी तलब की गई। पहले चर्चा का विषय रहा डूब क्षेत्र के सीमांकन, संरक्षण और संवर्धन के साथ नमभूमि के विकास का। यूपी के सिंचाई विभाग के (ईएनसी प्रोजेक्ट) अधिकारी पीपी पांडेय ने कहा कि दिल्ली से सटे हुए यूपी क्षेत्र के यमुना दायरे में नमभूमि विकसित करने के लिए उन्हें दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) से साथ काम करने का निमंत्रण मिला था। हालांकि, अनुमान और अधिकारियों की मंजूरी आदि का पहलू साफ नहीं था। वहीं, निगरानी समिति ने कहा कि बीते चार महीनों से डीडीए कह रहा है कि यूपी के सिंचाई विभाग की ओर से कोई जवाब नहीं मिला। ऐसे में इस आरोप-प्रत्यारोप के बजाए बिना देरी यूपी का सिंचाई विभाग डीडीए के वाइस चेयरमैन को यह काम सौंप दे। समिति ने अधिकारियों से कहा, अगली बैठक से पहले यूपी के हिस्से में नम भूमि विकसित करने और जैवविविधता पार्क बनाने का खाका तैयार हो जाना चाहिए। समिति ने इस काम के लिए सिंचाई विभाग के प्रधान सचिव और डीडीए के वाइस चेयरमैन और यूपी सिंचाई विभाग के (ईएनसी) को इस पर काम करने के लिए कहा है।
वहीं, साहिबाबाद नाले में गंदगी फैला रहीं औद्योगिक ईकाइयों के खिलाफ कार्रवाई और सीवेज प्रबंधन के लिए सीवेज शोधन संयंत्र (एसटीपी) लगाने की जगह आदि को लेकर भी बैठक में बातचीत हुई। न तो औद्योगिक ईकाइयों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर संतुष्टि पूर्ण जवाब निगरानी समिति को मिला और न ही सीवेज प्रबंधन के लिए एसटीपी के कामकाज संबंधी जवाब के लिए शहरी विकास विभाग की ओर से कोई अधिकारी हाजिर हुआ। शहरी विकास विभाग को इसके लिए तीन बार बुलावा भी निगरानी समिति ने भेजा था।
एनजीटी की निगरानी समिति ने अपने आदेश में कहा है कि यूपीपीसीबी का कहना है कि 108 औद्योगिक ईकाइयों में से 102 औद्योगिक ईकाईयां मानकों का पालन कर रही हैं। यदि ऐसा है तो इसके बावजूद काफी उच्च स्तरीय औद्योगिक प्रदूषण साहिबाबाद नाले में मौजूद है। समिति ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, यूपीपीसीबी, यूपीएसआईडीसी के अधिकारियों की एक समिति गठित की है। इस समिति को साहिबाबाद औद्योगिक क्षेत्र में पानी की जांच कर अपनी रिपोर्ट एक महीने में सौंपनी होगी। निगरानी समिति ने कहा है कि यह रिपोर्ट 10 मई से पहले ही तैयार हो जानी चाहिए। रिपोर्ट में गठित अधिकारियों की समिति को यह भी बताना होगा कि औद्योगकि ईकाइयों में संचालित ईटीपी से प्रवाहित होने वाला औद्योगिक प्रवाह मानकों के हिसाब से दुरुस्त है या नहीं। इसके अलावा सामूहिक औद्योगिक प्रवाह शोधन संयंत्र (सीईटीपी) की भी जांच करनी होगी। समिति ने कहा कि इस वर्ष जनवरी से लेकर 19 अप्रैल तक कितनी औद्योगिक ईकाइयों के खिलाफ कार्रवाई की गई यह भी देखना होगा। औद्योगिक ईकाइयों के खिलाफ कार्रवाई कर रिपोर्ट भी 10 मई तक देनी होगी।
इसके अलावा साहिबाबाद नाले में सीवेज निकासी की जांच के लिए यूपी जल निगम और गाजियाबाद नगर निगम को भी आदेश दिया गया है। निगरानी समिति ने कहा है कि दोनों प्राधिकरण संयुक्त तौर पर यह जांचे कि कहां-कहां बरसाती नाले में सीवेज की निकासी की जा रही है और यह नाले कहां पर साहिबाबाद नाले से आकर जुड़ते हैं।
निगरानी समिति ने यूपी सिंचाई विभाग और डीडीए को चेताया है कि डूब क्षेत्र पर काबिज लोगों को हटाने या कोर्ट में केस लंबित होने की दलील वे नहीं सुनेंगे। नमभूमि और जैवविविधता पार्क विकसित करने के बारे में साझा निर्णय और समयसीमा के बारे में ही जानकारी ली जाएगी।
एनजीटी की निगरानी समिति की डांट-फटकार और आदेशों के बाद 12 अप्रैल को यूपी में मुख्य सचिव अनूप चंद्र पांडेय ने भी इस मसले पर बैठक की थी। इसमें पर्यावरण विभाग की प्रमुख सचिव कल्पना अवस्थी भी शामिल थीं। इसमें कहा गया कि एनजीटी की निगरानी समिति अधिकारियों के जवाब से असंतुष्ट रही और 4 अप्रैल को दिल्ली में हुई बैठक में पूर्व सूचना के बावजूद कई अधिकारी 09 अप्रैल को बैठक में नदारद रहे। इन पर कार्रवाई करने का भी आदेश है। 16 अप्रैल को भी इस मामले पर एक बैठक की गई। बहरहाल यूपी की राजधानी में यमुना प्रदूषण रोकने के लिए कागजी कार्रवाई जारी है। जब तक जमीनी सर्वे और रोकथाम की पहल होगी तब तक यमुना में मैला गिरता रहेगा।
बैठक में शामिल व याची सुशील राघव ने "डाउन टू अर्थ" को बताया कि एक भी अधिकारी को जमीनी हकीकत का कोई अंदाजा नहीं है। यमुना प्रदूषण रोकने का काम आदेशों में ही बंद है। अब निगरानी समिति ने समस्या और बात को ध्यानपूर्वक सुना है ऐसे में कुछ उम्मीद जरूर जगी है।
एनजीटी ने 13 जनवरी, 2015 को मैली से निर्मल यमुना पुनरुद्धार योजना-2017 मामले में विस्तृत फैसला सुनाया था। इस मामले में याची यमुना जिये अभियान के संयोजक व पर्यावरणविद् मनोज मिश्रा थे। यह मामला सुप्रीम कोर्ट से एनजीटी को सुनवाई के लिए भेजा गया था। इस आदेश में यमुना की सफाई और डूब क्षेत्र के सीमांकन व डूब क्षेत्र में स्थायी और अस्थायी निर्माण पर रोक आदि कई अहम आदेश समाहित थे। इन्हीं आदेशों के उल्लंघन को लेकर सुशील राघव ने 2015 में एनजीटी में याचिका दाखिल की, इसमें आरोप था कि औद्योगिक क्षेत्र साहिबाबाद में नाले के जरिए मैला और औद्योगिक प्रवाह की निकासी यमुना में की जा रही है जबकि अधिकारी बेखबर हैं।
एनजीटी ने यमुना में प्रदूषण की रोकथाम के लिए बीते वर्ष दो सदस्यीय निगरानी समिति का गठन किया था। अब यमुना प्रदूषण मामले पर यही समिति बारी-बारी बैठकें कर रही है। हालांकि, समिति ने कहा है कि उन्हें जैसा सहयोग राज्यों के जरिए मिलना चाहिए, वह नहीं मिल रहा है।
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