ब्रिटेन की अदालत ने वेदांता कंपनी की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें कंपनी ने ब्रिटेन के 1800 गांवों के लोगों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई न करने की अपील की थी।
वेदांता रिसोर्सेज और उसकी सहायक, कोंकोला कॉपर माइंस (केसीएम) के माध्यम से ज़ाम्बिया में खदानें चलाती है। परियोजना स्थल के आसपास के लगभग 1800 गांव के लोगों का कहना है कि चांगा कॉपर खदानों से होने वाले प्रदूषण के कारण उनकी आजीविका और जमीन तबाह हो गई है, साथ ही यह खदान नदी के प्रदूषण के लिए भी जिम्मेदार है।
इसके चलते लोगों ने अदालत का दरवाजा खटखटाया। लेकिन वेदांता ने लंदन की अदालत में चुनौती दी कि ग्रामीणों की याचिका पर सुनवाई न करे। जिसे अदालत ने खारिज कर दिया। इसके बाद अब करीब 2000 ज़ाम्बियावासी वेदांता के ऊपर लंदन की अदालत में मुकदमा ठोक कर दावा कर सकते हैं। बहुत संभव है कि उसे ज़ाम्बिया में प्रदूषण फैलाने और जिंदगियां तबाह करने का दोषी मान लिया जाए।
भारत में भी वेदांता लोगों और पर्यावरण को नुकसान पहुचाने में पीछे नहीं है। 22 मई 2018, को तमिलनाडु के तूतीकोरिन वेदांता के स्टरलाइट तांबा प्लान्ट को प्रदूषण के चलते बंद करने की मांग को लेकर हुए प्रदर्शन में 13 लोगों की मौत हुई थी, तथा 30 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे। इसके बाद तमिलनाडु सरकार ने इसे बंद करवा दिया।
2008 में तिरुनेलवेली मेडिकल कॉलेज की एक रिसर्चर टीम ने बताया था कि प्लांट के कारण आस-पास के 5-10 किलोमीटर का क्षेत्र प्रभावित हो रहा है, जिसका असर पानी और हवा पर भी पड़ रहा है। 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने स्टरलाइट प्लांट पर 100 करोड़ का जुर्माना लगाया था, लेकिन काम चालू रखने का निर्देश दिया था। इस पैसे का उपयोग इलाके के प्रदूषण को सुधारने के लिए किया जाना था।
एनजीटी ने दिसंबर 2018 में दोबारा प्लांट शुरू करने की इजाजत दी थी (तत्कालीन एनजीटी आदेश )। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की अपील पर एनजीटी के फैसले को पलट दिया।
ओडिशा में आदिवासियों और किसानों के दस वर्ष के संघर्ष ने उन्हें 2014 में वेदांता के खिलाफ एक ऐतिहासिक जीत हासिल दिलाई। गौरतलब है कि वेदांता कंपनी ओडिशा की नियमगिरी की पहाडि़यों में बॉक्साइट का खनन करना चाहती थी जहां करीब 10,000 डोंगरिया कोंढ और कुटिया कोंढ नाम के दुर्लभ आदिवासी रहते हैं। भारत की सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर ग्राम सभा बुलाने का फैसला दिया। ग्राम सभा की सुनवाइयों में नियमगिरी के आदिवासियों ने एक स्वर में वेदांता के खनन को नकार दिया था, जिसके बाद से वहां खनन का काम शुरू ही नहीं हो सका है।
भारत के विभिन्न राज्यों ओडिशा, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, राजस्थान और गोवा सहित – विदेशों में जाम्बिया, लाइबेरिया, दक्षिण अफ्रीका, नामीबिया, ऑस्ट्रेलिया और आयरलैंड में वेदांता की विभिन्न खानें, रिफाइनरी और कारखाने हैं। यह कंपनी पर्यावरण और आजीविका से खिलवाड़ करने के मामले में दुनिया भर में बदनाम है। इसके मालिक अनिल अग्रवाल नाम के प्रवासी भारतीय हैं।
कब क्या हुआ :
अगस्त 2009 में, उत्तरजीविता अंतर्राष्ट्रीय द्वारा दायर एक शिकायत के बाद, भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने उड़ीसा सरकार को लिखा कि वेदांता के साथ अपने संयुक्त उद्यम खनन परियोजना की पूरी रिपोर्ट दे।
अप्रैल 2013 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने नियामगिरी पहाड़ी क्षेत्र में खनन पर प्रतिबंध को बरकरार रखा और फैसला सुनाया कि खनन परियोजना आगे बढ़ाया जा सकता है या नहीं, यह तय करने में डोंगरिया कोंध समुदायों के अधिकारों को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
अगस्त 2013 में, सभी 12 आदिवासी गांवों ने नियामगिरी पहाड़ियों में वेदांता की परियोजना के खिलाफ मतदान किया। जनवरी 2014 में, पर्यावरण और वन मंत्रालय ने खनन परियोजना को आगे नहीं बढाने का फैसला किया। अप्रैल 2016 में, सर्वोच्च न्यायालय ने ओडिशा की राज्य सरकार द्वारा नियामगिरी पहाड़ियों में खनन शुरू करने के प्रयास को रोक दिया; स्थानीय सरकार का तर्क है कि 2013 जनमत संग्रह त्रुटिपूर्ण था।
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