Governance

इंडियन पॉलिटिकल लीग

इस लीग में किसी टीम को रन नहीं बल्कि सीटें बटोरनी पड़ती हैं। खेल शुरू हो चुका है। 

 
By Sorit Gupto
Published: Friday 15 June 2018

सोरित/सीएसई

आईपीएल (इंडियन प्रीमियर लीग) की अपार लोकप्रियता और मार्केट को देखते हुए सरकार ने आईपीएल (इंडियन पॉलिटिकल लीग) शुरू करने के बारे में गंभीरता से विचार करना शुरू कर दिया है और इससे पहले वह किसी नतीजे पर पहुंचती, नोटबंदी की ही तरह अचानक ही इंडियन पॉलिटिकल लीग के मैचों की भी घोषणा हो गई। बीसीसीआई के पदचिन्हों पर चलते हुए ईसीआई (भारतीय चुनाव आयोग) ने पूरे जोरशोर के साथ इंडियन पॉलिटिकल लीग के पहले मैच की तैयारी शुरू कर दी।

यह मैच बेंगलुरु के विधानसभा-स्टेडियम में खेला जाना था।

मीडिया और विज्ञापन एजेंसियों की मानें तो बेरोजगारी, महंगाई, सांप्रदायिक तनाव के बोझ से दबी जनता में इस इंडियन पॉलिटिकल लीग मैचों के बारे में अपार उत्साह था। क्योंकि जनता को पूरा भरोसा था कि बेरोजगारी-महंगाई ही नहीं बल्कि देश का विकास इस बात पर टिका है कि आईपीएल कौन जीतेगा। आइए अब हम आपको विधानसभा-स्टेडियम ले चलते हैं।

स्टेडियम खचाखच भर चुका है। स्टेडियम को चारों ओर से अलग-अलग चुनावी वादों और एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करते विज्ञापनों ने ढंक रखा है।

वह देखिए सामने नेताओं की, हमारा मतलब है टिकटों की बोली लग रही है। टिकटों की खरीद फरोख्त पूरी होते ही टीमों की घोषणा कर दी जाएगी।

लो जी, देखते ही देखते तीन टीमें बन गईं हैं।

एक का नाम है केकेआर (कर्णाटक का रखवाला)। दूसरी टीम है सीएसके (चलो सीधे कर्णाटक) और तीसरी टीम है आरआर (रोता राजकुमार) और चौथी टीम है एमआई (मौके के इंतजार में)। यह टीम राजनीति के उन खिलाडियों से मिलकर बनी है जिनका जुगाड़ पहले की तीन टीमों में नहीं हो पाया। इंडियन पॉलिटिकल लीग के नियम अलग हैं। इसमें टिकट नहीं काटने पड़ते, बस एक मशीन में बटन दबाना पड़ता है। इस मशीन को जनता ने प्यार से ईवीएम या (इलेक्ट्राॅनिक विवादस्पद मशीन) का नाम दिया है ।

इंडियन पॉलिटिकल लीग में किसी टीम को रन नहीं बटोरने पड़ते बल्कि सीटें बटोरनी पड़ती हैं। खेल शुरू हो चुका है। और यह रहा आरआर को सीएसके का इतिहास का बाउंसर! गेंद ऑफ स्टम्प से होते हुए फिरकी खाती हुई लाहौर जेल में भगत सिंह की कोठरी की ओर जाती हुई...

कौन आया था भगत सिंह से मिलने? लाहौर जेल का जेलर चिल्ला कर पूछ रहा है। खिलाड़ियों से लेकर दर्शक तक सभी कन्फ्यूज हैं। कहां बेंगलुरु और कहां लाहौर? इसी आपाधापी में तीनों टीमें दनादन सीटें बटोर रही हैं। और तभी रेफरी की सीटी बज जाती है।

उधर अम्पायर भगवा-कार्ड शो करता है। जिसका मतलब है, “ अभी तो पार्टी शुरू हुई है!” और सीएसके को इस मैच में विजयी घोषित कर दिया जाता है। केकेआर और आरआर इस फैसले से नाराज हो जाते हैं। मैच की अगली इनिंग को देर रात तक अदालत में खेला जाएगा।

कहीं कोई चीख रहा है “आर्डर! आर्डर! आर्डर!”

तो कहीं कोई फोन पर फुसफुसा रहा है, “ एक लगाओ सौ पाओ! तदबीर से बिगड़ी हुई तकदीर बना ले /अपने पे भरोसा है तो दांव लगा ले।”

और तभी स्टेडियम में एक बस आ जाती है और केकेआर समेत आरआर के खिलाड़ियों को लेकर भाग जाती है। अब कैमरा दर्शकों की ओर... दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के नागरिक दर्शक दीर्घा में मूंगफली चबा रहे हैं। कुछ सेल्फी ले रहे हैं तो कुछ अपना व्हाट्सअप स्टेटस अपडेट कर रहे हैं।

इंडियन प्रीमियर लीग और इंडियन पॉलिटिकल लीग के नियम भले एक-दूसरे से थोड़े अलग हों पर एक बात में दोनों में बड़ी समानता है। हम आम नागरिक इंडियन प्रीमियर लीग के लिए महज एक टिकट हैं और इंडियन पॉलिटिकल लीग के लिए एक बटन का पुश।

पार्टी यूं ही चालेगी...

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