Mining

कायदा तोड़ने में फायदा

रेत खनन को नियंत्रित करने के लिए बने नए नियम असरदार साबित नहीं हो रहे हैं। नदियों के किनारे अवैध खनन बेरोकटोक जारी है। 

 
By Ishan Kukreti
Published: Sunday 15 October 2017
भिंड मध्य प्रदेश का प्रमुख रेत खनन केंद्र है (विकास चौधरी / सीएसई)

भारत में रेत का अवैध खनन सदाबहार समस्या है। मानसून से पहले यह चरम पर रहता है क्योंकि बरसात के दौरान रेत का खनन बेहद मुश्किल हो जाता है। इसलिए मानसून से पहले ही खनन मालिक या जमाकर्ता साम दाम दंड भेद से ज्यादा से ज्यादा रेत निकालने का प्रयास करते हैं। ऐसा इस साल भी हुआ है। मीडिया में आई खबरों के मुताबिक, इसमें इजाफा ही हुआ है। मई में पंजाब में नव निर्वाचित कांग्रेस सरकार उस वक्त मुश्किलों में घिर गई जब करोड़ों रुपये का रेत घोटाला चर्चा का विषय बन गया। पंजाब के ऊर्जा और सिंचाई मंत्री राणा गुरजीत सिंह पर आरोप लगा कि उन्होंने रेत खनन के पट्टे अपने संबंधियों, यहां तक की अपने पूर्व रसोइये अमित बहादुर को भी दिए। एक अन्य मामला जून में उत्तर प्रदेश में सामने आया। बहराइच के पयागपुर विधानसभा से भारतीय जनता पार्टी के विधायक सुभाष त्रिपाठी के बेटे निशांक त्रिपाठी पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने अवैध खनन के दौरान दो बच्चों को जिंदा दफना दिया।

रेत का कितना खनन अवैध होता है, इसके कोई आधिकारिक आंकड़े मौजूद नहीं हैं। पूर्व खनन मंत्री पीयूष गोयल ने लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में बताया था कि 2015-16 के बीच देश में 19,000 मामले लघु खनिज के अवैध खनन के सामने आए (देखें देशव्यापी शर्म, पृष्ठ 18)। लघु खनिज में रेत भी शामिल है। भारतीय खनन ब्यूरो के अनुसार, रेत चौथा सबसे अहम लघु खनिज है।

खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम 1957 के तहत लघु खनिजों का खनन राज्य द्वारा नियंत्रित किया जाता है। 2012 में हरियाणा के अधिवक्ता दीपक कुमार की जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने छोटे पैमाने पर हो रहे खनन (5 हेक्टेयर से कम में फैले) की तरफ ध्यान दिया था। उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुपालना में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने मार्च 2016 में सस्टेनेबल सैंड माइनिंग मैनेजमेंट गाइडलाइंस बनाईं। इसी साल मई में मंत्रालय ने पर्यावरण प्रभाव आकलन (एनवायरमेंट इम्पैक्ट असेसमेंट) अधिसूचना 2006 को में बदलाव कर छोटे पैमाने पर खनन के लिए भी पर्यावरण प्रभाव मंजूरी (इनवायरमेंट इम्पैक्ट क्लियरेंस) को अनिवार्य कर दिया। इस अधिसूचना में खनन समूह (एक दूसरे से 500 मीटर दूर) को एकल खनन माना गया और दो निकायों के गठन का प्रावधान किया गया। खनन का पर्यावरण पर प्रभाव का आकलन करने के लिए जिला स्तरीय एक्सपर्ट अप्रैजल कमिटी (डीईएसी) और जिला सर्वे रिपोर्ट बनाने के लिए जिला पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण  (डीईआईएए)। यह प्राधिकरण जिला कलेक्टर के अधीन होगी जो यह देखेगी कि रेत खनन के लिए जमीन उपयोगी है या नहीं। साथ ही मंजूरी भी देगी।

गरीबी और सामाजिक न्याय पर काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन एक्शन ऐड के कार्यक्रम अधिकारी बिरेन नायक का कहना है कि अधिसूचना में संशोधन को साल भर से ज्यादा हो गए हैं और अधिकांश राज्यों ने जिला स्तरीय निकाय भी बना लिए हैं लेकिन अवैध खनन की किसी को भी परवाह नहीं है। नियमों की खुलेआम धज्जियां उडाई जा रही हैं। ऐसे कई उदाहरण हैं जो नायक की बातों की पुष्टि करते हैं। मध्य प्रदेश के मुख्य खनन केंद्र भिंड के जिला खनिज अधिकारी (डीएमओ) के कार्यालय में यह रिपोर्टर राहुल तोमर और लकी राजंत से मिला जिनके ट्रक अवैध रेत ले जाने के आरोप में जब्त किए गए हैं। दोनों रिपोर्टर को सिंध नदी के नजदीक उस जगह ले गए जहां से वे अवैध खनन करते थे। यह जगह डीएमओ दफ्तर से मुश्किल से 25 किलोमीटर दूर होगी। दोनों ने पड़ोसी जिले दतिया के बिक्रमपुरा और राहेरा में वैध खनन की जगह भी दिखाई। पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना अंतिम पर्यावरण प्रभाव आकलन या पर्यावरण प्रबंधन योजना रिपोर्ट से पहले एक जन सुनवाई की बात कहती है ताकि लोग अपनी आपत्तियां दर्ज करा सकें। उन्होंने बताया “दतिया में इन दोनों जगह खनन के लिए कोई जनसुनवाई नहीं की गई। दूसरी तरफ उन्होंने हमारे ट्रक जब्त कर लिए जबकि हम नियमित रिश्वत देते हैं।” उन्होंने बताया कि भिंड में अब तक जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट तक नहीं बनाई गई है।

उत्तर प्रदेश में मुख्य जमाव और वितरण केंद्र इटावा में स्थिति थोड़ी जटिल है। यहां पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश से रेत आयात की जा रही है। 2016 की गाइडलाइन की अनुपालना में उत्तर प्रदेश सरकार ने इसी साल 19 मार्च को एक आदेश जारी कर पूरे राज्य में जुलाई, अगस्त और सितंबर के दौरान रेत खनन पर पाबंदी लगा दी है। लेकिन मई में ही सरकार ने इटावा समेत 200 जिलों में छह महीने के लिए खनन के पट्टे जारी कर दिए। न्यायालय में 2015 से चल रहे मामले के कारण इटावा में तीनों केंद्रों में खनन बंद है। इटावा के डीएमओ मनीष यादव का कहना है कि खनन के लिए ई नीलामी सितंबर में शुरू होगी। खनन बंद होने से यहां से रेत की भारी कमी है।



इटावा के शरद शुक्ला को रेत की कमी के कारण अपना निर्माण रोकना पडा है। उन्होंने बताया “पहले रेत करीब 5,000 रुपये प्रति 10 क्यूबिक फीट (एक क्यूबिक फीट 0.3 क्यूबिक मीटर के बराबर) थी, अब यह 10,000 रुपये पर पहुंच गई है। ऐसे में मैं अपने निर्माण कैसे करूं।”

इटावा और आसपास के क्षेत्रों की रेत की जरूरत पड़ोसी राज्यों से पूरी होती है। उदाई गांव में इटावा की रेत मार्केट है। यहां बने चेक पोस्ट पर खड़े कानपुर क्षेत्र के अतिरिक्त सड़क यातायात अफसर प्रभात पांडे बताते हैं “रोज करीब 1000 ट्रक रेत लेकर इस रोड से गुजरते हैं। इनमें से ज्यादातर ओवरलोड होते हैं।”  मध्य प्रदेश से आने वाले ट्रकों की जांच करने के लिए जून में यह पोस्ट बनाई गई थी। पांडे ने बताया कि जून से अब तक 530 क्यूबिक (800 ट्रक भरने के लिए पर्याप्त) रेत जब्त की जा चुकी है।

असंरक्षित अभ्यारण

राजस्थान का धौलपुर भी एक ऐसा जिला है जहां खनन से जुड़े नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है। यहां से बह रही चंबल नदी को 1979 में घडियाल संरक्षित अभ्यारण घोषित किया गया था। यहां नदी किनारे रेत खनन की अनुमति नहीं है। लेकिन धौलपुर में नदी के किनारे खोदकर बनाए गए रेत के बड़े बड़े टीले नजर आए। मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में स्थित देवरी रियरिंग सेंटर फॉर घडियाल के इंचार्ज ज्योति बडकोतिया ने बताया “घडियालों के घर (जहां मादा अंडे देता है) को रेत के अवैध खनन ने बर्बाद कर दिया है।” लेकिन धौलपुर वन विभाग के रैंज अधिकारी अतर सिंह अवैध खनन से इनकार करते हैं। उनका कहना है कि रेत के टीले तब से हैं जब चंबल को अभ्यारण घोषित नहीं किया गया था।  

पर्यावरण प्रभाव आकलन वाहनों के स्रोत से गंतव्य तक की निगरानी की बात कहता है। यह जांच नाके और रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन और जीपीएस से जरिए होती है। डाउन टू अर्थ ने इटावा, भिंड और धौलपुर के दौरे के दौरान ये जांचें काम करती नहीं पाई गईं।

मानव संसाधनों की कमी एक अन्य मुद्दा है। जिला स्तरीय एक्सपर्ट अप्रैजल कमिटी में 11 विशेषज्ञ होते हैं और इनमें जिला मजिस्ट्रेट, सब डिविजनल मजिस्ट्रेट शामिल होते हैं। इन्हें यह देखना होता है कि रेत का खनन संभव है या नहीं। भिंड में 57 रेत खनन केंद्र हैं। इन 11 सदस्यों पर अन्य प्राथमिक जिम्मेदारियां भी होती हैं, ऐसे में हर खनन केंद्र पर उनका जाना मुश्किल होता है।

रेत की बढ़ती मांग

भारत में शहरीकरण तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में रेत की मांग का बढ़ना तय है क्योंकि रेत को सीमेंट और कंक्रीट में मिलाया जाता है। निर्माण क्षेत्र में इस साल 1.7 प्रतिशत की विकास दर रही है। स्वच्छ भारत मिशन और 2022 तक सबको आवास जैसी सरकारी योजनाओं के कारण रेत की मांग और बढ़ेगी।

अमेरिकी की उद्योग बाजार रिसर्च कंपनी फ्रीडोनिया ग्रुप ने अपनी रिपोर्ट में अनुमान लगाया है कि 2020 तक भारत में रेत की मांग 1,43 करोड़ टन हो जाएगी। लेकिन चिंताजनक बात यह है कि रेत का उत्पादन पिछले पांच सालों में घटा है। भारतीय खनिज ब्यूरो की ओर से प्रकाशित इंडियन मिनिरल ईयरबुक 2015 के अनुसार, 2014-15 में रेत का उत्पादन 21 लाख टन था। नाम जाहिर न करने की शर्त पर इटावा के एक खनन ठेकेदार ने बताया “रेत की कमी अवैध खनन को काफी हद तक बढ़ा देगी।” कानूनी तरीकों से निकाली जाने वाली रेत से भरा ट्रक 50 प्रतिशत के लाभ पर 30000 से 40000 रुपये के बीच बेचा जाता है लेकिन अगर ट्रक अवैध तरीकों से भरा जाए तो लाभ दोगुना हो जाता है। उन्होंने यह भी बताया कि इटावा में अवैध खनन से उनके पिता ने मोटा लाभ कमाया है।

ऐसे में क्या कोई उपाय है? सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) में पर्यावरण एवं सामाजिक आकलन टीम में कार्यक्रम अधिकारी सुजीत कुमार सिंह का कहना है कि रेत निकालना तभी टिकाऊ होगा जब हमें नदी में रेत के पुनर्भरण की दर का पता होगा और इसी को ध्यान में रखते हुए पट्टे जारी किए जाएंगे। जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट में यह आंकड़ा जरूरी भी है लेकिन बहुत से जिले में यह रिपोर्ट नहीं बनाई जा रही। ऐसे में नियमों का मजाक बन गया है।

इंटरनेशनल यूनियर फॉर कन्जरवेशन ऑफ नेचर से जुड़े विपुल शर्मा का कहना है कि राज्य सरकारों को नए नियमों को लागू करने के लिए नया रास्ता खोजना होगा। उन्होंने यह भी बताया कि नदियों की पारिस्थितिकी को बचाने के लिए छोटे क्षेत्रों में लघु पट्टे दिए जाएं। इससे यह सुनिश्चित होगा कि नदी के जलविज्ञान में बदलाव न हो।

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