सोफ्ट ड्रिंक्स में कर की दर 40 प्रतिशत की गई है। इनमें सभी कोला और जंक पेय पदार्थ शामिल हैं जिनमें बड़ी मात्रा में चीनी और न के बराबर पौष्टिक तत्व होते हैं।
1 जुलाई 2017 की मध्यरात्रि से सरकार ने आजाद भारत के “सबसे बड़े टैक्स सुधार” को लागू कर दिया। वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) का मकसद पूरे देश को एकीकृत बाजार के अधीन लाना है। इसके तहत विभिन्न वस्तुओं की कर दरें तय की गई हैं। यह कर सुधार कितना कामयाब होगा, यह बहस का मुद्दा हो सकता है लेकिन यह साफ है कि इसका नीति निर्माण के दिशा निर्देशन में बड़ा योगदान होगा।
जन स्वास्थ्य पर जीएसटी का व्यापक असर दिखाई देगा। चीनी मिश्रित पेय पदार्थों (सोफ्ट ड्रिंक्स) में कर की दर 40 प्रतिशत की गई है। इन पेय पदार्थों में सभी कोला और जंक पेय पदार्थ शामिल हैं जिनमें बड़ी मात्रा में चीनी और न के बराबर पौष्टिक तत्व होते हैं। इन पेय पदार्थों पर विलासिता कर की श्रेणी का 12 प्रतिशत सेस लगाया गया है। यह सेस “पाप” श्रेणी (नुकसान पहुंचानी वाली) की वस्तुओं पर लगाया जाता है।
2014 में मैक्सिको ऐसा पहला देश बना था जिसने चीनी मिश्रित पेय पदार्थों या कोला पर कर लगाया था। अमेरिका एवं मैक्सिको के स्वास्थ्य विशेषज्ञों का हाल ही में जारी हुआ संयुक्त शोध बताता है कि इस कर से इन उत्पादों के उपभोग में दूसरे साल के अंत तक 10 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। अहम बात यह है कि उपभोग में यह गिरावट गरीब तबके में हुई। गौर करने वाली बात यह है कि बदलाव तब हुआ जब इस देश में कर की दर बेहद कम है- प्रति लीटर एक पैसो (प्रति लीटर करीब 3.5 रुपए)।
कैलिफोर्निया में बड़ा बदलाव देखा गया। यहां 0.33 यूएस डॉलर यानी 21 रुपये प्रति लीटर कर लगाया गया है। यूरोमोनिटर इंटरनेशनल की रिपोर्ट के मुताबिक, इस कर के बाद कोला का उपभोग 21 प्रतिशत घटा है जबकि पानी के उपभोग में 63 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। जबकि यूएस के बाकी हिस्सों में कोला के उपभोग में वृद्धि हुई है, इसलिए कर का काफी महत्व है। दुनियाभर के कई देश जंक फूड की विभिन्न श्रेणियों पर “पाप” कर लगाने की तैयारी में हैं।
हमारे लिए हानिकारक भोजन पर कर अहम है। जून 2017 में ब्रिटिश मेडिकल जर्नल लांसेट ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें भारत के 15 राज्यों में मधुमेह के फैलाव का विश्लेषण किया गया है। इस शोध को चिकित्सा के जानकारों ने अंजाम दिया और इसे इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने फंड दिया। शोध के मुताबिक, भारत में सात प्रतिशत लोगों को (15 राज्यों से प्राप्त आंकड़ों के हिसाब से) मधुमेह है। 10 से 15 प्रतिशत लोगों में बढ़ा हुआ ब्लड शुगर पाया गया। भारत जैसे गरीब देश के स्वास्थ्य पर यह मामूली बोझ नहीं है।
निष्कर्ष यह है कि हम बीमारियों के संक्रमण काल से गुजर रहे हैं। गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और चंडीगढ़ जैसे उच्च सकल घरेलू उत्पाद वाले राज्य बिहार और झारखंड के मुकाबले मधुमेह से ज्यादा पीड़ित हैं। दिल्ली और गोवा जैसे उच्च आय वर्ग वाले राज्य की स्थिति भी ठीक नहीं है। शहरी के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों में मधुमेह का असर कम है। रिपोर्ट के मुताबिक, हैरान करने वाली बात यह है कि अमीर राज्यों में गरीब अधिक आय वालों से ज्यादा पीड़ित हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो अमीर शहरों में रहने वाले अमीर अच्छी खाद्य आदतें सीख रहे हैं।
लेकिन गरीब नुकसान पहुंचाने वाले भोजन के जाल में फंस गए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि सामाजिक और आर्थिक रूप से संपन्न क्षेत्र भी मधुमेह के शिकार हो रहे हैं। शहरी क्षेत्रों में गरीबों का पीड़ित होना और ग्रामीण क्षेत्रों में संपन्न लोगों का इस बीमारी की जद में आना चिंताजनक है। हम खाने पीने की गलत आदतों के कारण कुपोषण का शिकार हो रहे हैं। यह वह संक्रमण काल है जिससे बचा जा सकता है।
इसी कारण जीएसटी के तहत उठाया गया कदम अहम है। 40 प्रतिशत “पाप” कर के कारण प्रति लीटर कोला के मूल्य में 15.60 रुपए का इजाफा होगा। यह मैक्सिको में लगाए गए टैक्स से ज्यादा है, इसलिए सकारात्मक सोच रखनी चाहिए।
जीएसटी में अन्य उच्च चीनी उत्पाद जैसे चॉकलेट को भी विलासिता की श्रेणी में रखा गया है। उम्मीद है कि कीमत बढ़ने पर इसके उपभोग में भी कमी आएगी। जंक फूड पर सख्ती के बाद जरूरत है कि इनके लेबलिंग के नियमों से भी सहयोग मिले जिससे हमें पता चले कि हम कितनी चीनी, नमक या चर्बी का सेवन कर रहे हैं। भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) इस मामले में अपने कदम पीछे खींच रहा है। इसे डोनल्ड ट्रंप प्रशासन की तरह काम नहीं करना चाहिए जिस पर बड़ी-बड़ी कंपनियों का दबाव है। अमेरिका के खाद्य एवं औषध प्रशासन ने कहा कि वह तय खाद्य लेवलिंग की जरूरतों को पूरा करने में देरी करेगा जिसका मकसद उपभोक्ताओं के खाद्य पदार्थों के बारे में सूचित करना है।
इतना ही नहीं, जीएसटी में उन खाद्य पदार्थों को राहत दी गई है जो ब्रांडेड, पैकिट बंद और प्रसंस्कृत नहीं है। आज हमारा खाद्य सुरक्षा तंत्र यह मानने पर मजबूर करता है कि जो खाद्य पदार्थ ब्रांडेड या प्रसंस्कृत हैं, वही सुरक्षित हैं। दुनियाभर में खाद्य पदार्थों के प्रति ऐसी सोच ने उन छोटे छोटे उत्पादकों की अनदेखी की है जो तय मानकों को पूरा नहीं कर पाते। आज एफएसएसएआई का नियम गैर ब्रांडेड खाद्य पदार्थ की इजाजत नहीं देता। उसके मुताबिक यह सुरक्षित नहीं है।
वित्त मंत्रालय के आला अधिकारियों ने महसूस किया है कि सुरक्षित भोजन का मतलब पौष्टिक भोजन है जो जीवनयापन से जुड़ा हो। ऐसे में हमें उम्मीद करनी चाहिए कि इस संदेश का दूरगामी असर होगा।
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