भारत सरकार ने 20 फरवरी को कोयला खनन के दरवाजे निजी कंपनियों के लिए खोल दिए। इसी के साथ सरकारी खनन कंपनी कोल इंडिया का एकाधिकार खत्म हो गया। इसी मुद्दे पर दस सवाल
कोल इंडिया की स्थापना कब की गई थी?
सत्तर के दशक में कोयले की खदानों का राष्ट्रीयकरण करने के बाद 1973 में कोल इंडिया की स्थापना की गई थी।
कोल इंडिया की स्थापना का क्या उद्देश्य था?
सत्तर के दशक में तेल की ऊंची कीमतों ने ऊर्जा के विकल्पों की खोज के लिए बाध्य कर दिया था। इसके परिणामस्वरूप ईंधन नीति समिति का गठन किया गया। इस समिति ने ऊर्जा के प्राथमिक स्रोत के रूप में कोयले का चिन्हित किया। सीपीएम नेता और बाद में कांग्रेस में शामिल होने वाले मोहन कुमार मंगलम ने कोयले के राष्ट्रीयकरण में अहम भूमिका निभाई। राष्ट्रीयकरण का मुख्य उद्देश्य अपव्ययी, चयनात्मक और विध्वंसक खनन को रोकने के अलावा कोयला संसाधनों का सुनियोजित विकास और सुरक्षा मानकों में सुधार करना था।
कोयले के राष्ट्रीयकरण की जरूरत क्यों पड़ी?
राष्ट्रीयकरण से पहले कोयले का खनन निजी हाथों में था। उस समय मजूदरों के शोषण और अवैज्ञानिक खनन ने सरकार को चिंतित कर दिया था। निजी खनन मालिकों के पास इतने संसाधन नहीं थे कि वे ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त निवेश कर पाएं। इसलिए सरकार ने कोयले के राष्ट्रीयकरण का फैसला किया। कोयला खदानों में दुर्घटनाएं भी आम थीं। हालांकि राष्ट्रीयकरण के बाद 27 दिसंबर 1975 को धनबाद के नजदीक चासनाला में बड़ी खान दुर्घटना हुई। खदान में पानी भर जाने से करीब 375 लोग मारे गए। बाद में इस दुर्घटना पर काला पत्थर नामक फिल्म भी बनी।
ताजा फैसला कोयले के खनन पर क्या असर डालेगा?
केंद्र सरकार के वर्तमान फैसले के बाद निजी कंपनियां कोयला खदानों से खनन की बोली में हिस्सा लेंगी। एंड यूज व मूल्य पर कोई प्रतिबंध नहीं होगा। कंपनियां खुले बाजार में कोयले की बिक्री कर सकती हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो उन्हें घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयला बेचने की अनुमति होगी।
इस कदम के पीछे सरकार का क्या तर्क है?
कोयला मंत्री पीयूष गोयल का कहना है कि इससे व्यवस्था में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, उत्पादन में दक्षता और कोयला आयात में कमी आएगी। इसके अलावा विदेशी मुद्रा की बचत होगी और रोजगार के अवसर पैदा होंगे। उनका यह भी कहना है कि नीलामी पारदर्शी तरीके से ऑनलाइन होगी।
अब कोल इंडिया का क्या होगा?
भले ही सरकार के इस निर्णय के बाद कोल इंडिया का खनन से एकाधिकार खत्म हो जाएगा लेकिन वह आम कंपनियों की तरह खदानों की बोली लगाएगी और कोयले का खनन चालू रखेगी।
क्या कोल इंडिया कोयले की मांग को पूरा करने में असमर्थ साबित हुआ?
कोल इंडिया कोयले की मांग के अनुसार, उत्पादन लक्ष्य को हासिल करने में संघर्ष करता रहा है। अप्रैल से दिसंबर 2017 के बीच कोल इंडिया ने 385.6 मिलियन टन कोयले का उत्पादन किया जबकि लक्ष्य 406.6 मिलियन टन था।
खदानों की बोली की प्रक्रिया में क्या बदलाव आएगा?
पहले सबसे कम बोली लगाने वाली कंपनी को खनन की अनुमति मिलती थी लेकिन सरकार के नए फैसले के बाद सबसे ज्यादा बोली लगाने वाली कंपनी को खनन का अधिकार मिलेगा। पहले कंपनियों खुले बाजार में कोयला नहीं बेच सकती थीं। केवल निजी उत्पादन के लिए खनन किया जाता था लेकिन अब ऐसा प्रतिबंध नहीं होगा।
क्या कोयला ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने का सबसे बेहतर विकल्प है?
पर्यावरणविद कोयले को ऊर्जा के बेहतर विकल्प के तौर पर नहीं देखते। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी ने 2016 की वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक रिपोर्ट में अनुमान लगाया है कि 2040 तक वैश्विक कोल उपभोग की दर में ठहराव आ जाएगा। सीएसई का विश्लेषण बताता है कि भारत में अंतिम कोयला संयंत्र 2050 तक बंद हो जाएगा। विश्व की ऊर्जा जरूरतें भविष्य में नवीकरणीय स्रोतों से पूरी होंगी। प्रदूषण और पर्यावरण पर असर डालने के कारण कोयले का भविष्य उज्ज्वल नहीं है।
कोयला खदानों को निजी हाथों में देने के पीछे कौन से कानूनी प्रावधान रहे?
मार्च 2015 को संसद ने कोयला खनन (विशेष प्रावधान) विधेयक पास किया था। इस विधेयक में निजी क्षेत्र द्वारा व्यवसायिक खनन का प्रावधान था। इसी विधेयक ने कोल इंडिया का एकाधिकार खत्म करने और खनन में निजी भागीदारी सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाई।
प्रस्तुति: भागीरथ
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