आधुनिक चिकित्सा के इतिहास में अनुसंधान प्रयोग हमेशा लैगिंक भेदभाव से भरपूर रहे हैं। लेकिन अब इस सोच में बदलाव की शुरुआत होने लगी है
लिंगभेद आधुनिक चिकित्सा के स्थायी सिद्धांतों में से एक है और यह मानसिकता पुरुषों के पक्ष में झुकी है। इस मानसिकता के तहत माना जाता है कि पुरुषों के लिए जो चिकित्सकीय रूप से सच है, वह महिलाओं के लिए भी सही होगा। इसे ‘डिफॉल्ट सेक्स’ के नाम से परिभाषित किया गया है। इसलिए दशकों से तमाम तरह की दवाओं, जिसमें दर्द निवारक, एंटीथिस्टेमाइंस और अवसादरोधी दवाएं शामिल हैं, की खुराक, प्रभाव और दुष्प्रभाव के चिकित्सकीय परीक्षण के लिए नर चूहों और हट्टे-कट्टे पुरुषों का चयन किया जाता है। अमेरिका में चिकित्सा अनुसंधान को लेकर किए गए एक विश्लेषण के अनुसार, तंत्रिका विज्ञान में एक मादा पशु की तुलना में 5.5 नर, औषध विज्ञान में एक मादा पशु के मुकाबले 5 नर और शरीर विज्ञान में एक मादा पशु के मुकाबले 3.7 नर पशुओं पर चिकित्सकीय परीक्षण किए जाते हैं। यह मामला इतना हास्यास्पद है कि पिछले साल बाजार में आने वाली पहली महिला कामोत्तेजक ‘अड्डयी’ का परीक्षण अधिकतर पुरुषों पर किया गया था।
पिछले एक दशक में हुए शोध इस यौन असमानता को तेजी से खतरनाक बना रहे हैं। और पता चला है कि यह महिलाओं के लिए कितना अन्यायपूर्ण है। अब हम जानते हैं कि महिलाएं जिस तरह से दर्द को महसूस करती हैं, या उनका शरीर दवाओं, टीकों, विषों और रोगाणुओं को प्रति जिस तरह व्यवहार करता है, वह पुरुषों के अनुभव से अलग होता है। यह सुझाव देने के लिए पर्याप्त सबूत मौजूद हैं कि महिला मस्तिष्क और शरीर की कुछ खास विशिष्टताएं हैं, जिसकी वजह से दिल की बीमारी से महिलाओं की मौतें अधिक होती हैं, या उनमें अल्जाइमर होने का खतरा अधिक रहता है।
पिछले महीने ऑस्ट्रेलिया के तस्मानिया विश्वविद्यालय के द्वारा अफ्रीकी देश गांबिया के नवजात शिशुओं पर किए गए एक अध्ययन के नतीजों ने भी इस तथ्य को बल दिया है। अध्ययन के दौरान इन नवजात शिशुओं को तपेदिक के टीके लगाए गए। इनमें से लड़कियों में एक खास एंटी-इंफ्लेमेट्री प्रोटीन के लक्षण उभरने लगे, लेकिन लड़कों में इस तरह का कुछ नहीं हुआ। पिछले साल प्रकाशित एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि दर्द की अतिसंवेदनशीलता को नियंत्रित करने वाले तंत्र नर और मादा चूहों के लिए अलग-अलग हैं। नर में जहां प्रतिरक्षा कोशिकाओं के एक समूह, माईक्रोग्लिया, की वजह से दर्द से राहत मिलती है, वहीं महिलाओं में इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इसके मद्देनजर यह माना जा सकता है कि चूहों की ही तरह मुनष्य में भी दर्द निवारक का असर पुरुषों और महिलाओं पर अलग-अलग तरह से होगा।
पिछले साल ही आए एक और अध्ययन में पाया गया कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में शब्दों को अधिक दिनों तक याद रख सकती हैं। यह अल्जाइमर से जुड़े अनुसंधान के लिए महत्वपूर्ण है। इससे यह संकेत मिलता है कि जब महिलाएं शब्दों को भूल जाती हैं, तब वह शायद वह पुरुषों के मुकाबले ज्यादा गंभीर परेशानी में होती हैं। क्या यही कारण है कि अल्जाइमर उम्रदराज महिलाओं के बीच अधिक आम है? हालात इससे भी ज्यादा बिगड़ सकते हैं यदि महिलाओं में समय रहते रोग की पहचान न हो और वे एक प्रभावी उपचार से वंचित रह जाएं।
अब यह बिलकुल स्पष्ट हो गया है कि चिकित्सकीय शोध में लैंगिक समानता की अनदेखी महिलाओं पर बुरा असर डाल सकती है जिसमें रोगों की गलत पहचान और इसके चलते अधूरा या गलत उपचार इत्यादि शामिल हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि सभी प्रकार के कैंसर को मिलाकर भी उतनी महिलाओं की मौत नहीं होती जितनी केवल हृदय रोग से हो जाती है। बोस्टन स्थित ब्रिघम एंड वीमन हॉस्पिटल की वर्ष 2014 में आई एक रिपोर्ट के अनुसार, हृदय रोगों के निदान से सबंधित शोधों में महिलाओं की भागीदारी अब तक सिर्फ पैंतीस प्रतिशत ही है।
लेकिन इस नजरिये में बदलाव की शुरुआत होने लगी है। वर्ष 1993 में, यूएस नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ ने मानव चिकित्सा परीक्षणों में महिलाओं और अश्वेत, हिस्पैनिक और एशियाई मूल के लोगों के समावेश को अनिवार्य करते हुए लिंग असंतुलन को सुधारने की कोशिश की है। यद्यपि यह एक अच्छा संकेत है, फिर भी आलोचकों का कहना है कि बदलाव की गति अभी भी बेहद सुस्त है और जैसा कि ब्रिघम हॉस्पिटल की रिपोर्ट में कहा गया है, “शोधकर्ता अक्सर लैंगिक विषमता और इसके कारण दवाओं के असर को समझने में अब तक विफल रहे हैं।”
दरअसल, नर और मादा का जैविक विकास अलग-अलग तरीके से हुआ है इसलिए इनके इलाज का तरीका भी अलग-अलग हो सकता है। केवल लैंगिक विविधता ही नहीं बल्कि अन्य कारकों जैसे भिन्न भौगोलिक परिवेश, संस्कृति और प्रजातीय भिन्नता भी किसी व्यक्ति के शरीर पर असर डाल सकती है।
We are a voice to you; you have been a support to us. Together we build journalism that is independent, credible and fearless. You can further help us by making a donation. This will mean a lot for our ability to bring you news, perspectives and analysis from the ground so that we can make change together.
Comments are moderated and will be published only after the site moderator’s approval. Please use a genuine email ID and provide your name. Selected comments may also be used in the ‘Letters’ section of the Down To Earth print edition.